Mahavir jayanti 2024: महावीर स्वामी का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 21 अप्रैल को महावीर जयंती मनाई जाएगी। उनके जन्मोत्सव को जन्म कल्याणक के रूप में मनाया जाता है। वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर में उनका जन्म हुआ था। कुंडलपुर बिहार के नालंदा जिले में स्थित है। उनके पिता कुंडलपुर के राजा थे जिनका नाम सिद्धार्थ था। उनकी माता त्रिशला (प्रियकारिणी) लिच्छवि राजा चेटकी की पुत्र थीं।
ऐसे मनाते हैं महावीर जयंती? | how do they celebrate Mahavir Jayanti
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महावीर जयंती बहुत ही शुद्ध, पवित्र एवं निर्मण तरीके से मना जाती है।
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सभी जैन अनुयायी सफेद वस्त्र पहनते हैं। कई लोग एक ही धोती पहनते हैं।
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इस दिन सभी स्नान आदि से निवृत्त होकर मंदिर में जाते हैं।
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मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और ध्यान किया जाता है।
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महावीर स्वामी को भोग लगाया जाता है।
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महावीर स्वामी के समक्ष अष्टद्रव्य अर्पित करते हैं।
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जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल यह आठ प्रकार का द्रव्य अष्टद्रव्य है
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इसके अलावा छिलके वाली बादाम, चंदन की लकड़ी, नारियल की गिरी, लौंग, कमलगट्टा आदि अर्पित करते हैं।
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सभी मिलकर शोभा यात्राएं निकालते हैं।
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लोग भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लेते हैं।
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महावीर स्वामी ने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) जैसे अनमोल सिद्धांत दिए।
जैन मंदिर में चावल ही क्यों चढ़ाए जाते हैं?
महावीर स्वामी के समक्ष किसी जीव को अर्पित नहीं करती हैं। चावल का छिलका जब उतर जाता है तो वह अक्षत होकर अजीव हो जाता है। इस चावल को बोने पर यह उगता नहीं है। जैन दर्शन के अनुसार ऐसे चावल अजीव की श्रेणी में आते हैं जिससे उनको हिंसा का दोष नहीं लगता है। इसी अहिंसक प्रणाली को ध्यान में रखते हुए अजीव चावल को जैन मन्दिर में चढाए जाने की परम्परा है। दूसरा यह भी कामना रहती है भगवान से कि हमें भी चावल की तरह बनाना ताकी हम भी दूसरा जन्म न ले सकें। चावल बोने पर अंकुरित नहीं होता है। इस तरह से ये अक्षत कहलाता है। इसी तरह हम भी अक्षय पद अर्थात मोक्ष प्राप्त करें।