Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

गांधी जयंती : पढ़ें बापू के जीवन से जुड़ें 5 रोचक प्रसंग

गांधी जयंती : पढ़ें बापू के जीवन से जुड़ें 5 रोचक प्रसंग
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके जीवन के प्रेरणादायी प्रसंग बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद है। आइए यहां पढ़ें गांधीजी के जीवन से जुड़े 5 खास प्रसंग-
 
प्रसंग 1. एक अंग्रेज का गांधी को पत्र
 
एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पत्र लिखा। उसमें गालियों के अतिरिक्त कुछ था नहीं। गांधीजी ने पत्र पढ़ा और उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। उसमें जो ऑलपिन लगा हुआ था उसे निकालकर सुरक्षित रख लिया। वह अंग्रेज गांधीजी से प्रत्यक्ष मिलने के लिए आया। आते ही उसने पूछा- महात्मा जी! आपने मेरा पत्र पढ़ा या नहीं?
महात्मा जी बोले- बड़े ध्यान से पढ़ा है।
 
उसने फिर पूछा- क्या सार निकाला आपने? गांधीजी ने कहा- एक ऑलपिन निकाला है। बस, उस पत्र में इतना ही सार था। जो सार था, उसे ले लिया। जो असार था, उसे फेंक दिया।

प्रसंग 2. जब मारवाड़ी सज्जन ने झुकाया शर्म से सिर
 
एक बार एक मारवाड़ी सज्जन गांधीजी से मिलने आए। उन्होंने सिर पर बड़ी-सी पगड़ी बांध रखी थी।
 
वे गांधीजी से बोले- 'आपके नाम से तो 'गांधी टोपी' चलती है और आपका सिर नंगा है। ऐसा क्यों?
 
इस पर गांधीजी ने हंस कर जवाब दिया, '20 आदमियों की टोपी का कपड़ा तो आपने अपने सिर पर पहन रखा है। तब 19 आदमी टोपी कहां से पहनेंगे? उन्हीं 19 में से एक मैं हूं।' गांधीजी की बात सुनकर उस मारवाड़ी सज्जन ने शर्म से अपना सिर झुका दिया।

प्रसंग 3. स्वदेशी का संदेश
 
महात्मा गांधी सन् 1921 में खंडवा गए। वह लोगों को स्वदेशी का संदेश यानी अपने देश में बनी वस्तुओं का प्रयोग और विदेशी वस्तुओं का त्याग करने को कह रहे थे। वहां उनकी सभा में चमकीले कपड़े पहने हुए कुछ बालिकाओं ने स्वागत गीत गाया। तत्पश्चात वहां उपस्थित स्थानीय नेताओं ने गांधी जी को भरोसा दिलाया कि वे हर तरह से स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार करेंगे। 
 
इस पर गांधीजी ने उनसे कहा, 'मुझे अब भी सिर्फ भरोसा ही दिलाया जा रहा है, जबकि यहां गीत गाने वाली बालिकाओं ने किनारी गोटे वाले विदेशी कपड़े पहनकर मेरा स्वागत किया। मुझे तो स्वदेशी प्रचार खादी के बारे में दृढ़ निश्चय चाहिए।'

प्रसंग 4. जब एक बुढ़िया ने धोए गांधीजी के पांव
 
यह घटना 25 नवंबर, 1933 की है, जब गांधी जी रायपुर से बिलासपुर जा रहे थे। रास्ते में अनेक गांवों में उनका स्वागत हुआ, किंतु एक जगह लगभग 80 साल की एक दलित बुढ़िया सड़क के बीच में खड़ी हो गई और रोने लगी। उसके हाथों में फूलों की माला थी। उसे देखकर गांधी जी ने कार रुकवाई। 
 
लोगों ने बुढ़िया से पूछा- वह क्यों खड़ी है? बुढ़िया बोली- 'मैं मरने से पहले गांधीजी के चरण धोकर यह फूल माला चढ़ाना चाहती हूं तभी मुझे मुक्ति मिलेगी। गांधीजी ने कहा- 'मुझे एक रुपया दो तो मैं पैर धुलवाऊं।' गरीब बुढ़िया के पास रुपया कहां था? फिर भी वह बोली- 'अच्छा! मैं घर जाकर रुपया ले आती हूं, शायद घर में निकल आए।' पर गांधी जी तो रुकने वाले न थे। बुढ़िया एकदम निराश हो गई। उसकी पीड़ा के आगे गांधीजी को झुकना पड़ा और उन्होंने पांव धुलवाना स्वीकार कर लिया।

 
बुढ़िया ने बड़ी श्रद्धा से गांधीजी के पांव धोए और फूल माला चढ़ाई। उस समय उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे उसे अमूल्य संपत्ति मिल गई हो। फिर गांधी जी बिलासपुर पहुंचे। वहां उनके लिए एक चबूतरा बनाया गया था, जिस पर बैठकर उन्होंने जनसभा को संबोधित किया। जब सभा समाप्त हुई और गांधीजी चले गए तो लोग उस चबूतरे की ईंट, मिट्टी-पत्थर, सभी कुछ उठा ले गए। चबूतरे का नामोनिशान तक मिट गया था। उस चबूतरे का एक-एक कण लोगों के लिए पूज्य और पवित्र बन गया था।

प्रसंग 5. रामराज और हिन्दूराज 
 
यह सन् 1929 की बात है। गांधीजी भोपाल गए। वहां की जनसभा में उन्होंने समझाया, 'मैं जब कहता हूं कि रामराज आना चाहिए तो उसका मतलब क्या है?'
 
रामराज का मतलब हिन्दूराज नहीं है। रामराज से मेरा मतलब है ईश्वर का राज। मेरे लिए तो सत्य और सत्यकार्य ही ईश्वर हैं। प्राचीन रामराज का आदर्श प्रजातंत्र के आदर्शों से बहुत कुछ मिलता-जुलता है और कहा गया है कि रामराज में दरिद्र व्यक्ति भी कम खर्च में और थोड़े समय में न्याय प्राप्त कर सकता था। यहां तक कहा गया है कि रामराज में एक कुत्ता भी न्याय प्राप्त कर सकता था।'

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

सिक्योरिटी गार्ड ने सुपरवाइजर को गोली मारी, आरोपी गिरफ्तार