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महात्मा गांधी की लंबी उम्र और सेहत के 4 राज, जानिए

अनिरुद्ध जोशी
गांधीजी को यदि गोली नहीं मारी जाती तो अनुमानित रूप से कम से कम 5 से 10 साल के बीच तक अवश्‍य जीवित रहते अर्थात उनकी उम्र 85 से 90 वर्ष के बीच होती, परंतु ओशो रजनीश ने अपने किसी प्रवचन में कहा था कि महात्मा गांधी 110 वर्ष तक जीना चाहते थे। अब बात करते हैं उनके रोग और उनकी सेहत की।
 
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गांधीजी की बीमारी : महात्मा गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था। उनका निधन 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारने से हुआ था। उस वक्त उनकी उम्र 79 थी। तब वे पूर्ण रूप से स्वस्थ थे। न उन्हें डायबिटीज थी, ना ब्लड प्रेशर और ना ही अन्य किसी प्रकार का कोई रोग। उन्हें कोई गंभीर रोग नहीं था परंतु फिर भी कुछ रोग तो थे।
 
गांधीजी के स्वास्थ्य पर आधारित भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'गांधी एंड हेल्थ@150' में कहा गया है कि गांधीजी अपने भोजन के साथ कई प्रयोग करते थे और कठिन एवं लंबे उपवासों को अपनाते थे और कुछ भी होने पर वे चिकित्सीय सहायता लेने में हिचकिचाहट करते थे जिसके कारण उनकी सेहत खराब हो चली थी। इस दौरान उन्हें अपने जीवन के विभिन्न चरणों के दौरान कब्ज, मलेरिया और प्लुरिसी (ऐसी स्थिति जिसमें फेफड़ों में सूजन आ जाती है) सहित कई बीमारियों का सामना करना पड़ा था परंतु उन्होंने इस पर काबू पा लिया था। उन्होंने 1919 में बवासीर और 1924 में अपेंडिसाइटिस का ऑपरेशन भी कराया। यह सभी हुआ था उनके द्वार किए गए बार बार भोजन को बदलने और लंबे उपवास के कारण। यह सभी हुआ था उनके द्वारा किए गए बार-बार भोजन को बदलने और लंबे उपवास के कारण लेकिन उन्होंने जल्द ही इस चीज़ को समझा और मध्यम मार्ग अपनाया।
 
 
1. शाकाहरी भोजन और व्यायाम : उपरोक्त पुस्तक के अनुसार शाकाहारी भोजन और नियमित व्यायाम उनकी अच्छी सेहत का राज था। गांधीजी के अच्छे स्वास्थ्य का श्रेय ज्यादातर उनके शाकाहारी भोजन और खुली हवा में व्यायाम करने को दिया गया।
 
2. पैदल चलना : महात्मा गांधी अपने जीवन में प्रत्येक दिन 18 किलोमीटर चलते थे जो कि उनके जीवन काल में धरती के 2 चक्कर लगाने के बराबर था। पुस्तक के अनुसार लंदन में छात्र जीवन में गांधीजी हर दिन शाम को लगभग आठ मील पैदल चलते थे और बिस्तर पर जाने से पहले 30-40 मिनट के लिए फिर से टहलने जाते थे। 
 
3. घरेलूउपचार और प्राकृतिक चिकित्सा : पुस्तक में उनके दृढ़ विश्वास का भी उल्लेख किया गया है कि बचपन में मां का दूध पीने के अलावा लोगों को अपने दैनिक आहार में दूध को शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने गाय या भैंस का दूध नहीं पीने की प्रतिज्ञा की थी जो घरेलू उपचार और प्राकृतिक चिकित्सा पर उनके विश्वास को रेखांकित करता है। वह अपने पेट की गर्मी छांटने के लिए उस पर गिली मिट्टी की पट्टियां बांधते थे। एक सूती कपड़े में गिली काली मिट्टी को लपेटकर उससे पेट कर रखे रहते थे।
 
 
4. गीता का पालन : कहते हैं कि रोग की उत्पत्ति सबसे पहले मन और मस्तिष्‍क में ही होती है और सकारात्मक विचार रोग को पैदा होने से रोक देते हैं। महात्मा गांधी को भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध और भगवान श्रीकृष्ण पसंद थे। उनके पास हमेशा गीता रहती थी। महात्मा गांधी महावीर स्वामी के पंचमहाव्रत, महात्मा बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग, योग के यम और नियम और गीता के कर्मयोग, संख्‍ययोग, अपरिग्रह एवं समभाव भाव सहित उसके दर्शन पर विश्वास करते थे। मानसिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए यह बहुत जरूरी था जिसके चलते उनका शरीर भी निर्मल, शांति और निरोगी रहता था।

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