Uddhav Thackeray News: अपनी सहयोगी भाजपा को 2019 में चुनौती देने का साहसिक दांव चलने और कांग्रेस व राकांपा के साथ अप्रत्याशित गठबंधन करने वाले उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) शनिवार को महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों (Maharashtra Assembly Elections) में उनकी पार्टी को मिली करारी हार की वजह समझने के लिए संघर्ष करते नजर आए।
ठाकरे ने नेतृत्व वाली शिवसेना (उबाठा) ने 95 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 20 सीटों पर जीत हासिल की। ठाकरे ने स्वीकार किया कि वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जिस मतदाता ने 5 महीने पहले ही लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा नीत गठबंधन को करारी शिकस्त दी थी, उसने अपना मन कैसे बदल लिया?
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एक करिश्माई और तेजतर्रार हिन्दुत्ववादी राजनेता, शिवसेना संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के शर्मीले बेटे से लेकर उद्धव ने एक लंबा सफर तय किया है। शुरुआत में वह पार्टी के दिग्गज नेता नारायण राणे और चचेरे भाई राज ठाकरे से मिल रही चुनौतियों से निपटते रहे और नवंबर 2019 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, जब उन्होंने विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ दशकों पुराना गठबंधन समाप्त कर दिया।
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जल्द ही कोविड-19 महामारी फैल गई और उद्धव उस मुश्किल दौर में लोगों से आसानी से जुड़ गए, क्योंकि उन्होंने फेसबुक लाइव जैसे सोशल मीडिया मंच का इस्तेमाल करके सीधे लोगों को संबोधित किया। वह एक मिलनसार नेता के रूप में सामने आए जो लोगों को आश्वस्त कर सकता था।
एकनाथ शिंदे के विद्रोह ने उन्हें चौंका दिया : महामारी के दौरान उनके नेतृत्व के लिए उनकी सराहना की गई, लेकिन उद्धव ठाकरे पार्टी के एक बड़े वर्ग में पनप रहे असंतोष से अनभिज्ञ रहे, जो कभी वैचारिक विरोधी रही कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन से नाराज था। जून 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह ने उन्हें चौंका दिया जिसके कारण उनकी सरकार गिर गई और पार्टी में विभाजन हो गया।
उद्धव ने हालांकि अपना रुख नहीं बदला और भाजपा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित इसके शीर्ष नेतृत्व पर हमला जारी रखा तथा शिंदे का साथ देने वाले 'गद्दारों' के खिलाफ तीखा हमला बोला। उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 21 पर चुनाव लड़ा था, जो महा विकास आघाडी सहयोगियों में सबसे ज्यादा था, लेकिन उसे 9 सीटें ही मिलीं। सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान उनके अड़ियल रुख के लिए उनकी आलोचना की गई थी।
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कम सुलभ होने का भी आरोप लगाया गया : उन पर कम सुलभ होने का भी आरोप लगाया गया है, यह आरोप 2022 में उनके खिलाफ विद्रोह करने वाले विधायकों ने लगाया था। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान घर से काम करने के लिए भी उन पर कटाक्ष किया, और यहां तक कि उनके सहयोगी शरद पवार ने भी इस पर टिप्पणी की।
उद्धव ठाकरे (64) और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के सामने चुनौती यह होगी कि वे पार्टी के बचे हुए नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने साथ बनाए रखें और यह साबित करें कि शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना (जिसे पहले ही बाल ठाकरे की पार्टी का आधिकारिक नाम और चुनाव चिह्न मिल चुका है) असली नहीं है।
उन्हें इस सवाल का भी जवाब देना होगा कि क्या 'धर्मनिरपेक्ष' कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाले राकांपा के धड़े के साथ हाथ मिलाने का उनका फैसला एक समझदारीभरा कदम था?(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta