Mahabharat: दुर्योधन के पास युद्ध को नहीं करने के लिए कई प्रस्ताव आए लेकिन उसने शांति के सभी समझौतों को ठुकरा दिया। युद्ध तय होने के बाद भी उस पर युद्ध नहीं करके पांडवों से समझौता करने के प्रस्ताव थे। युद्ध में भारी जनहानी होने के बाद भी उसके पास मौका था कि वह शांति समझौता करके बाकी सभी की जान बचा ले। लेकिन जिद्दी दुर्योधन तो किसी भी किमत पर पीछे नहीं हटना चाहता था क्योंकि उसे यह लगता था कि अंत में जीत उसी की सेना की होगी। लेकिन जब ऐसे नहीं हो पाया तो अंत में उसने श्री कृष्ण तो तीन अंगुलिया दिखाकर कुछ कहना चाहा।
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युद्ध के अंत के बाद भीम ने दुर्योधन की जंघा उतार दी थी। वह खून में लथपथ होकर रणभूमि पर गिरा हुआ था। बस, कुछ ही समय में दम तोड़ने वाला था लेकिन भूमि पर गिरे हुए ही उसने श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए अपने हाथ की 3 अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बताने का प्रयास किया। पीड़ा के कारण उसके मुंह से आवाज धीमी धीमी ही निकल रही थी।
ऐसे में श्रीकृष्ण उसके पास गए और कहने लगे कि क्या तुम कुछ कहना चाहते हो?
तब उसने कहा कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका और उसका यह हाल हुआ है। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।
2. दूसरी गलती उसने यह बताई की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था।
श्रीकृष्ण ने विनम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी, फिर उन्होंने उससे कहा, 'तुम्हारी हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा।'.... श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य यह था कि तुम अपनी इन 3 गललियों के कारण नहीं हारे बल्कि तुम अधर्मी हो इसलिए हारे। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का अहसास हो गया।