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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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क्या सिंधु घाटी के शहर थे महाभारत काल में प्राचीन सिंधु देश के हिस्से?

क्या सिंधु घाटी के शहर थे महाभारत काल में प्राचीन सिंधु देश के हिस्से?

अनिरुद्ध जोशी

आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत काल का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था। लगभग इसी काल में सिंधुघाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी। पहले की खुदाई और शोध के आधार पर माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व हड़प्पा और मोहनजोदेडो नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है।
 
 
आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थी। शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं। इसका मतलब यह कि यह सभ्यता तब विद्यमान थी जबकि भगवान श्रीराम (5114 ईसा पूर्व) का काल था और श्रीकृष्ण के काल (3228 ईसा पूर्व) में इसका पतन होना शुरू हो गया था।
 
 
जो भी हो लेकिन यह तो तय था कि सिंधु सभ्यता महाभारत काल में मौजूद थी। महाभारत में इस जगह को सिन्धु देश कहते थे। इस सिन्धु देश का राजा जयद्रथ था। जयद्रथ का विवाह धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला के साथ हुआ था। महाभारत के युद्ध में जयद्रथ ने कौरवों का साथ दिया था और चक्रव्युह के दौरान अभिमन्यू की मौत में उसकी बड़ी भूमिका थी।
 
 
सिंधु देश का तात्पर्य प्राचीन सिन्धु सभ्यता से है। यह स्थान न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए विख्यात था, बल्कि वाणिज्य और व्यापार में भी यह अग्रणी था। वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत को प्राचीनकाल में सिंधु देश कहा जाता था। रघुवंश में सिंध नामक देश का रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए जाने का उल्लेख है। युनान के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आकमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सिंधु देश के दो बड़े नगर थे।
 
 
एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि करीब चार हजार साल पुरानी सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के पीछे का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है। इस नए अध्ययन में हिन्दू मान्यता की पवित्र नदी सरस्वती के स्रोत और अस्तित्व को लेकर लंबे समय से जारी बहस को सुलझाने का भी दावा किया गया है।
 
 
इस अध्ययन में पुरातत्व विभाग और अत्याधुनिक भू-विज्ञान तकनीकों से जुड़े नए आंकड़े भी पेश किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि मानसून बारिश में आई कमी नदी के प्रवाह को कमजोर करने का कारण बनी, जिसने हड़प्पा संस्कृति के विकास और पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हड़प्पा संस्कृति अपने कृषि कार्यों के लिए पूरी तरह से नदी के प्रवाह पर निर्भर थी।
 
 
'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ आफ साइंसेज' पत्रिका में छपे निष्कर्षों में अंतरराष्ट्रीय दल ने उपग्रह से हासिल तस्वीरों और स्थलाकृतिक आंकड़ों का उपयोग किया और सिंधु तथा उसके आसपास बहने वाली नदियों के प्रभाव क्षेत्र के डिजिटल मानचित्रों का विश्लेषण किया।
 
 
समय के साथ भू-भाग में आए बदलाव का पता लगाने के लिए तलछट के मूल स्रोतों का पता लगाने के लिए नमूने एकत्रित किए गए। इन नमूनों से यह भी पता लगाने की कोशिश की गई कि तलछट में नदियों या हवा के कारण समय के साथ क्या-क्या परिवर्तन आए।

 
अमेरिका में 'वुड्स होल ओसियनोग्राफिक इंस्टीट्यूट' में भू-विज्ञानी और इस अध्ययन के प्रमुख लिविउ जियोसन ने कहा कि हमने मैदानी क्षेत्र के भू-भाग को फिर से बनाने का प्रयास किया, जहां 5200 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता विकसित हुई, इसके शहर बने और 3900 से 3000 वर्ष पहले धीरे-धीरे उनका पतन हो गया।
 
 
उन्होंने कहा कि हमारे अध्ययन में संकेत मिलते हैं कि मानसूनी बारिश में कमी आने से नदी का प्रवाह कमजोर पड़ा और इसने हडप्पा संस्कृति के विकास और पतन दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 2003 से 2008 के बीच किए गए शोध में यह भी दावा किया गया कि पौराणिक सरस्वती नदी में हिमालय के ग्लेशियरों से पानी नहीं आता था जैसा कि माना जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि सरस्वती नदी में पानी मानसून की बारिश से आता था और जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा स्थिति से यह खास मौसम में बहने वाली नदी बनकर रह गई। (भाषा से इनपुट)
 

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