अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। उनके शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध 8 दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने शरीर नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह शरशय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था। आओ जानते हैं कि इस दौरान उन्होंने जो शिक्षा दी उसमें से 11 खास सीख।
1. ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें। दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ, यह अवगुण है।
2. त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
3. सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है। उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं। वह पुरुष सुखी है, जो मन को साम्यावस्था में रखता है, जो व्यर्थ चिन्ता नहीं करता। जो सत्य बोलता है। जो सांसारिक पदार्थों के मोह में फंसता नहीं, जिसे किसी काम के करने की विशेष चेष्टा नहीं होती।
4. जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।
5. सनातन काल से जब-जब किसी ने स्त्री का अपमान किया है, उसका निश्चित ही विनाश हुआ है। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि, स्त्री का पहला सुख उसका सम्मान ही है। उसी घर में लक्ष्मी का वास रहता है, जहां स्त्री प्रसन्न रहती है। जिस घर में स्त्री का सम्मान न हो और उसे कई प्रकार के दुःख दिए जाते हो, उस घर से लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवता भी चले जाते हैं।
6. भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि जब नदी पूरे वेग के साथ समुद्र तक पहुंचती है तो बड़े से बड़े वृक्ष को बहाकर अपने साथ ले जाती है। एक बार समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम्हारा जल प्रवाह इतना तेज और शक्तिशाली है कि उसमें बड़ा से बड़ा पेड़ बह जाता है लेकिन ऐसा क्या है कि छोटी घास, कोमल बेल और नरम पौधों को बहाकर नहीं ला पाती? नदी ने कहा कि जब मेरे जल का बहाव आता है तो बेलें अपने आप झुक जाती है। किंतु पेड़ अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते हैं, इसीलिए मेरा प्रवाह उन्हें उखाड़कर बहा ले आता है। अत: जब भी विपरित पस्थिति हो तो प्राणी को झुककर ही रहना चाहिए।
7. संसार को बुढ़ापे ने हर ओर से घेरा है। मृत्यु का प्रहार उस पर हो रहा है। दिन जाता है, रात बीतती है। तुम जागते क्यों नहीं? अब भी उठो। समय व्यर्थ न जाने दो। अपने कल्याण के लिए कुछ कर लो। तुम्हारे काम अभी समाप्त नहीं होते कि मृत्यु घसीट ले जाती है।
8.भोजन अकेले न खाएं। धन कमाने का विचार करे तो किसी को साथ मिला लें। यात्रा भी अकेला न करे। जहां सब सोए हुए हों, वहां अकेला जागरण न करे।
9. श्रेष्ठ और सज्जन पुरुष का चिह्न यह है कि वह दूसरों को धनवान देख कर जलता नहीं। वह विद्वानों का सत्कार करता है और धर्म के सम्बन्ध में प्रत्येक स्थान से उपदेश सुनता है।
10. जो मनुष्य व्यर्थ अपने आपको सन्तप्त करता है, वह अपने रूप रंग, अपनी सम्पत्ति, अपने जीवन और अपने धर्म को भी नष्ट कर देता है। जो पुरुष शोक से बचा रहता है, उसे सुख और आरोग्यता, दोनों प्राप्त हो जाते हैं।
11. सत्य ब्रह्म है, सत्य तप है, सत्य से मनुष्य स्वर्ग को जाता है। झूठ अन्धकार की तरह है। अन्धकार में रहने से मनुष्य नीचे गिरता है। स्वर्ग को प्रकाश और नरक को अन्धकार कहा है। सत्य धर्म सब धर्मों से उत्तम धर्म है। सत्य ही सनातन धर्म है। तप और योग, सत्य से ही उत्पन्न होते हैं। शेष सब धर्म, सत्य के अंतर्गत ही हैं।