Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

हम पहले भी चुप और तमाशबीन थे, आज भी वही हैं, उठिए और सत्‍ता से सवाल कीजिए

दुनिया से लेकर इंदौर तक की चिंता व्‍यक्‍त की वरिष्‍ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने

Shravan garg
webdunia

नवीन रांगियाल

  • हमने अपनी विरासत की गुल्‍लक को फोड़ दिया है
  • अब इंदौर में हमारे पास दिखाने के लिए कुछ नहीं बचा
  • हमारे अंदर एक अज्ञात डर रिस रहा है कि कहीं हम कुछ ऐसा न बोल दें कि सत्‍ता को बुरा लग जाए
हम में से ज्‍यादातर लोगों ने वरिष्‍ठ पत्रकार श्रवण गर्ग को एक सख्‍त संपादक के तौर पर देखा और एक अखबार अच्‍छा कैसे निकले इस बात के लिए मंथन करते सुना है, लेकिन जब वे किसी मंच पर बोलते हैं तो उनकी स्‍मृतियों में गांधी और जयप्रकाश नारायण की चिंताएं छलक आती हैं। उनके चेहरे पर गांधी के ग्राम-स्‍वराज्‍य की रेखाएं भी उभरती हैं और तत्‍कालीन सत्‍ता के खिलाफ अपना स्‍वर ऊंचा करने वाले जयप्रकाश नारायण के सवाल भी सुनाई देते हैं। उनकी याद में ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ भी बहता हुआ दिखता है।

जाहिर है, यह सब उन पर गांधी के असर और जेपी की संगत की वजह से नजर आता होगा। लेकिन, खास बात यह है कि इस दौर में जब हर कोई सवाल उठाने से बचना चाहता है, वे सवाल करने से गुरेज नहीं करते हैं- वे यह भी चाहते हैं कि उन्‍हें सुनने वाले भी सवाल उठाना सीखें।

उनकी स्‍मृति में जेपी का आंदोलन है, क्‍योंकि गुजरे वक्‍त में वे भी इस आंदोलन का हिस्‍सा रह चुके हैं। सवाल पूछने और सवाल उठाने की इसी तबीयत के साथ वरिष्‍ठ पत्रकार श्रवण गर्ग गुरुवार को इंदौर के श्री मध्‍यभारत हिंदी साहित्‍य समिति के मंच पर मौजूद थे। वे यहां स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी काशिनाथ त्रिवेदी की स्‍मृति में ‘50 साल का सफर और बदलते हुए सत्‍य’ विषय पर बोल रहे थे। इस आयोजन में डॉ करुणाकर त्रिवेदी, अरविंद जवलेकर, गांधीवादी विचारक अनिल त्रिवेदी और डॉ सुरेश पटेल उपस्‍थित थे। पत्रकार श्री गर्ग को सुनने के लिए हॉल में बड़ी संख्‍या में गणमान्‍य नागरिक मौजूद थे।
webdunia

अपनी विरासत को बिसरा दिया : श्री गर्ग के व्‍याखान में देश-दुनिया के साथ ही अपने शहर इंदौर को लेकर चिंता साफ नजर आई। उन्‍होंने इंदौर का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे पास क्‍या नहीं था। लता मंगेशकर से लेकर एमएफ हुसैन और सीके नायडू से लेकर पंडित कुमार गंधर्व, बाबू लाभलंद छजलानी, विष्‍णु चिंचालकर, प्रभाष जोशी से लेकर वैद प्रताप वैदिक तक कितने नाम थे- और कितने नाम लूं? अगर एकाध नाम छूट गया तो मुझसे अवमानना हो जाएगी। लेकिन हमने इन सारी विरासतों और विभूतियों को बिसरा दिया। इंदौर की इस वैचारिक गुल्‍लक को हमने खाली कर दिया। आज हमारे पास इंदौर में दिखाने के लिए कुछ नहीं बचा है। अब हमारे पास दिखाने के लिए सिर्फ इंदौर के पोहे-जलेबी और कचोरी रह गए हैं। कभी हमने देखा ही नहीं कि अब विभूतियां क्‍यों नहीं हैं हमारे बीच। उन्‍होंने कहा कि कभी हम सोचें कि और कुछ साल बाद किस तरह के लोग होंगे हमारे बीच।

कई साल बाद कुछ नहीं बदला : इंदौर से लेकर देश और दुनिया के परिदृश्‍य पर एक नजर डालते हुए श्री गर्ग ने कहा— आज दुनिया के एक छोटे से देश यूक्रेन पर रूस मिसाइलें बरसा रहा है, और हमारी सत्‍ता रूस के साथ खड़ी है। 37 साल बाद आज भी नर्मदा की लड़ाई चल रही है। समाज में अत्याचार के साथ धार्मिकता बढ़ रही है। तीर्थस्‍थलों पर अब पालकियां बढ़ती जा रही हैं। लोगों को बैसाखियां की जरूरत बढ़ती जा रही हैं। तानाशाही सराकारें नहीं चाहतीं कि लोग अपने पैरों पर खड़े हों।

अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में भोपाल में मेरा एक्‍सीडेंट हो गया था और में कई घंटों तक सड़क पर घायल पड़ा रहा, लेकिन किसी ने अस्‍पताल नहीं भेजा, इतने साल बाद आज भी कुछ नहीं बदला है, लोग आज भी तमाशबीन और चुप हैं। हमने बोलना और सवाल उठाने बंद कर दिए हैं। कमाल की बात यह है कि हम बदल रहे हैं और हमे पता ही नहीं चल रहा है कि हम बदल रहे हैं।

अज्ञात डर रिस रहा अंदर : श्री गर्ग ने एक कातर भाव के साथ अपनी बात को रखा और कहा कि एक अज्ञात भय हमारे अंदर रिस रहा है। हम चुप हो गए हैं। हम ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहते जो सत्ता को बुरी लग जाए। हमने सवाल करना बंद कर दिए हैं और यह ठीक नहीं है। नहीं बोलने के परिणाम हमने कोरोना संक्रमण के दौरान भोगे हैं। हमने जिंदा लोगों को क्षणभर में शेयर बाजार के सूचकांक की तरह आंकड़ों में बदलते देखा है। जीते-जागते लोग मौत के आंकड़ों में बदल गए। लेकिन हम चुप रहे। हम सब सत्‍ता के ईको प्‍वॉइंट के सामने खड़े हैं, लेकिन लोग ईको प्‍वॉइंट के सामने बोलने की हिम्मत खो चुके हैं। अगर अब भी नहीं बोले तो हम ईको प्‍वॉइंट की चट्टानों की ही तरह क्रूर हो जाएंगे। लेकिन मैं सवाल करता रहूंगा। मैं गांधी की जन्‍मस्‍थली पोरबंदर गया तो उसकी जर्जर हालत देखकर डर गया। जबकि दुनिया के किसी भी कोने में चले जाइए, गांधी के प्रति और अन्‍य कलाकारों, चित्रकारों के प्रति अगाध प्रेम और सम्मान देखने को मिलेगा। लेकिन हमारे यहां कुछ नहीं बदला, इन सबके लिए हमें बोलना होगा।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

CM योगी आदित्यनाथ के आवास के पास बम की सूचना से हड़कंप