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मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव के नतीजों पर लगी रोक,निर्वाचन आयोग का बड़ा फैसला,पढ़ें पंचायत चुनाव पर सस्पेंस की पूरी कहानी

OBC सीटों पर पहले ही चुनाव प्रक्रिया की जा चुकी है स्थगित

मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव के नतीजों पर लगी रोक,निर्वाचन आयोग का बड़ा फैसला,पढ़ें पंचायत चुनाव पर सस्पेंस की पूरी कहानी
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विकास सिंह

, बुधवार, 22 दिसंबर 2021 (18:25 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर जारी घमासान के बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने बड़ा फैसला लेते हुए चुनाव परिणाम की घोषणा पर रोक लगा दी है। राज्य निर्वाचन आयोग के आदेश के मुताबिक पंचायत चुनाव में सभी सीटों पर मतगणना का सारणीकरण और निर्वाचन परिणाम की घोषणा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार स्थगित रहेगी। आयोग अलग से मतगणना का सारणीकरण और निर्वाचन परिणाम के संबंध में निर्देश जारी करेगा।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी सीटों पर चुनाव प्रक्रिया पहले ही रोक दी है। निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित पंच, सरपंच, जनपद पंचायत सदस्य एंव जिला पंचायत सदस्य के पदों की निर्वाचन प्रक्रिया स्थगित कर दी थी। वहीं अब चुनाव आयोग ने सभी सीटों पर मतगणना और चुनाव परिणाम की घोषणा पर रोक लगा दी है।

निर्वाचन आयोग के सचिव बीएस जामोद के मुताबिक आयोग द्वारा जारी निर्वाचन कार्यक्रम के अनुसार पंच और सरपंच के लिये मतदान केन्द्र और विकासखंड मुख्यालय पर की जाने वाली मतगणना तथा जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत सदस्य के लिए विकासखंड मुख्यालय पर ईव्हीएम से की जाने वाली मतगणना की जाएगी। मतगणना से संबंधित समस्त अभिलेख उपस्थित अभ्यर्थियों/अभिकर्ताओं की उपस्थिति में सील बंद कर सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे। किसी भी पद पर निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति निर्मित होने पर रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा अभ्यर्थी को न ही निर्वाचित घोषित किया जाएगा और न ही निर्वाचन का प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा।
 
निर्वाचन आयोग के इस फैसले के एक दिन पहले ही विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि प्रदेश में पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे। पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उठा। विधानसभा में कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए स्थगन प्रस्ताव पेश किया। जिस पर बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला।
 
मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर जारी सस्पेंस को लेकर आखिरी क्या है पूरा घटनाक्रम, आइए समझते हैं।
 
पंचायत चुनाव में सबसे बड़े विवाद की शुरुआत- 21 नवंबर 2021 को मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संसोधन) अध्यादेश 2021 लाकर शिवराज सरकार ने कमलनाथ सरकार के समय 2019 में हुए पंचायत के परिसीमन (Delimitation डिलिमिटेशन) और आरक्षण को समाप्त कर दिया था। भाजपा सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया था कि यदि परिसीमन एक साल के भीतर लागू न हो तो एमपी पंचायत एक्ट के अनुसार वह स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
 
संविधान के अनुच्छेद 213 क्लॉज 1 की शक्तियों(राज्यपाल को शक्ति प्रदान करता है) का प्रयोग करते हुए शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संसोधन) अध्यादेश 2021 लाकर मध्यप्रदेश पंचायती राज अधिनियम की मूल धारा 9 में नई धारा 9A जोड़ दी है, जिसमें दो बिंदुओं को जोड़ा गया है. 2019 के परिसीमन को समाप्त करना और रोटेशन प्रकिया का ज़रूरी नहीं होना।

भाजपा सरकार के इस फैसले पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने एतराज जताया और फैसले को संवैधानिक प्रावधानों ंके खिलाफ बताया। 
 
पंचायत चुनाव की तारीखों का एलान- 4 दिसंबर को मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रदेश में तीन चरणों में पंचायत चुनाव कराने का एलान कर देता है। जिसके बाद ग्राम पंचायतों में आचार संहिता लागू हो जाती है और चुनाव का माहौल शुरू हो जाता है। दिसबंर से शुरु हुई प्रदेश में पंचायत की चुनाव प्रक्रिया 23 फरवरी तक पूरी होगी। पंचायत चुनाव में पहले चरण का मतदान 6 जनवरी को, दूसरे चरण का 28 जनवरी और तीसरी चरण का 16 फरवरी को मतदान होगा। 
 
हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला- परीसीमन और रोटेशन के शिवराज सरकार के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने जबलपुर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 9 दिसंबर को जबलपुर हाईकोर्ट में पंचायत चुनाव को लेकर बड़ा फैसला आता है, इस फैसले में कोर्ट ने पंचायत चुनाव में रोक लगाने से इंकार कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद कांग्रेस से राज्यसभा सांसद और पूरे मामले की पैरवी करने वाले एडोवेकट विवेक तनखा सुप्रीम कोर्ट का रूख करते है।
 
इस बीच जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले से पहले ही 7 दिसंबर को कांग्रेस प्रवक्ता सैयद जाफर और जया ठाकुर ने पंचायत चुनाव में रोटेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते है। इस बीच जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस को झटका लगता है और सुप्रीमकोर्ट ने सुनवाई से इंकार करते हुए पूरा मामला फिर जबलपुर हाईकोर्ट को भेज दिया। वहीं जबलपुर हाईकोर्ट ने पूरे मामले की अर्जेंट हियरिंग से मना कर दिया था और अगली सुनवाई के लिए कोर्ट की शीतकालीन अवकाश के बाद की तारीख दी।
 
इस बीच याचिकाकर्ताओं को जब राहत नहीं मिलती है तो एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है जिसकी सुनवाई 17 दिसंबर को होती है और सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग से पूछता है कि क्या ओबीसी को 27% आरक्षण देकर पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, राज्य सरकार के पास कोई ऐसा पुख्ता डेटा नहीं है तो फिर सरकार पंचायत चुनाव में ओबीसी को 27% आरक्षण देकर पंचायत चुनाव क्यों करा रही है।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश-राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से ठोस जवाब न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र फैसले (महाराष्ट्र निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराए जाएं) के संदर्भ में ही एमपी पंचायत चुनाव पर अहम फैसला सुनाता है और मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग को कड़ी फटकार लगाते हुए निर्देश देता है कि आप चुनाव जारी रखें, लेकिन जहां ओबीसी आरक्षित पदों पर चुनाव होने हैं उनको सामान्य सीट करके चुनाव कराए जाएं, नहीं तो हम चुनाव रद्द भी कर सकते हैं। 
 
OBC सीटों पर चुनाव प्रक्रिया रोकी गई- सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद निर्वाचन आयोग 17 दिसंबर की शाम को ही एक नोटिफिकेशन जारी करता है। जिसमें ओबीसी आरक्षित पंच, सरपंच, जनपद, जिला पंचायत सदस्य के चुनाव पर रोक लगा दी जाती है। मीडिया से बातचीत में निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट कर दिया था कि एससी-एसटी व सामान्य सीट पर चुनाव जारी रहेंगे। सरकार को 7 दिन में जवाब देना है ताकि ओबीसी सीटों को सामान्य सीट करके नया रिनोटिफिकेशन जारी कर सकें और चुनाव आयोग कोर्ट की अवमानना से भी बच सके।
 
पंचायत में OBC आरक्षण पर राजनीति-पंचायत चुनाव में ओबीसी वर्ग के लिए पंच, सरपंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य के करीब 70 हजार पद आरक्षित है और यहीं कारण है कि पंचायत चुनाव में ओबीसी सीटों पर निर्वाचन प्रक्रिया रोके जाने के निर्वाचन आयोग के फैसले के साथ ही सियासत की एंट्री हो जाती है। भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर पिछड़ा वर्ग विरोधी होने का आरोप लगाते है।
 
विधानसभा में OBC आरक्षण की गूंज- पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी उठा। विधानसभा में कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए स्थगन प्रस्ताव पेश किया। जिस पर बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला। सदन में स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज ने ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का एलान कर दिया। वहीं नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने तो यहां तक कह दिया है कि 'मर जाऊंगा लेकिन ओबीसी को पंचायत चुनाव में 27% आरक्षण दिला के रहूंगा।'
 
तो वहीं प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा है कि पंचायत चुनाव में बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराना प्रदेश की 70% आबादी के साथ अन्याय करने जैसा है, ये चिंता का विषय है।
 
ओबीसी आरक्षण को लेकर शिवराज सिंह चौहान ने साफतौर पर ये कह दिया है कि हम बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव में नहीं जाएंगे। ओबीसी आरक्षण को बरकरार रखने के लिए हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
 
गांव से लेकर शहर तक भ्रम- मध्यप्रदेश में पिछले 2 साल से भी अधिक समय से अधर में लटके पंचायत चुनाव पर हर नए दिन के साथ सस्पेंस बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट और सरकार से लेकर निर्वाचन आयोग के बीच झूलते पंचायत चुनाव का पूरा मामला इस वक्त मध्यप्रदेश की सियासत में सबसे बड़ी सुर्खियों मे है। पंचायत चुनाव में अपनी किस्मत अजमाने के इंतजार में बैठे लाखों प्रत्याशियों को अपना भविष्य भी अंधकार में नजर आ रहा है।
 
गौरतलब है कि पंचायत चुनाव में दो चरणों की चुनाव प्रक्रिया जारी है और नामांकन भी हो गए है।  23 दिसंबर को सभी प्रत्याशियों की चुनाव चिन्ह वितरित कर दिए जाएंगे लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर तस्वीरें साफ़ होती नज़र आ रही हैं। नेताओं की बयानबाजी और सीएम के विधानसभा में दिए बयान से प्रत्याशी भी संशय में पड़ गए हैं कि प्रचार-प्रसार करने के लिए पैसा खर्च करें या अभी भी इंतजार करें।
 

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