कोरोना काल में मध्यप्रदेश में मनरेगा योजना मजदूरों के लिए वरदान साबित हो रही है। सरकार के मुताबिक प्रदेश में अब तक 80 लाख श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराए गए है। वहीं पूरे प्रदेश में एक दिन में अधिकतम 25 लाख 30 श्रमिकों का काम देकर एक रिकार्ड बनाया गया है। रिकॉर्ड संख्या में रोजगार देने वाली योजना में मनरेगा मजदूरों का हुनर भी देखने को मिल रहा है। मनरेगा में फॉसिल पार्क, सैकड़ों साल पुरानी बावड़ियों का जीर्णोद्धार और नक्षत्र वाटिका का निर्माण हो रहा है।
900 साल पुरानी बावड़ी का जीर्णोद्धार –श्योपुर के रायपुरा में गौड़ राजवंश की 900 साल पुरानी बावड़ी का जीर्णोद्धार किया गया है। श्योपुर जिले में इस प्रकार की 9 बावड़ियों के जीर्णोद्धार एवं सौन्दर्यीकरण का कार्य कराया जा रहा है।
फॉसिल पार्क का निर्माण – मनरेगा योजना के तहत धार के सुलीबर्डी "फॉसिल पार्क" बनाया गया है। जिले के आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में फॉसिल (जीवाश्म) उपलब्ध हैं, जिन्हें इस पार्क में संग्रहित किया गया है। यहां डायनासोर के अंडों सहित अन्य दुर्लभ जीवाश्म (फॉसिल) हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फॉसिल पार्क बनाए जाने की तारीफ करते हुए कहा कि यह अद्भुत कार्य है। मैं इसे देखने जरूर आऊंगा।
मनरेगा से तैयार की नक्षत्र वाटिका - बैतूल जिले के ग्राम कान्हाबाड़ी मनरेगा से नक्षत्र वाटिका तैयार की गई है जिसमें 27 नक्षत्र, 12 राशि एवं 9 गृहों के पौधे लगाए गए हैं। वाटिका में एक्यूप्रेशर ट्रेक एवं पाथ-वे भी बनाया गया है। इसमें गांव की महिलाओं ने मिस्त्री का काम किया है।
ग्वालियर में गौ-शाला का निर्माण - कोरोनाकाल में मजदूरों के लिए रोजगार का साधन बनी मनरेगा योजना में गौ-शाला का निर्माण बने पैमाने पर हुआ है। ग्वालियर के ग्राम बन्हेरी में मनरेगा के तहत 15 सौ गौवंश को रखने के लिए गौशाला का निर्माण किया जा रहा है। यहां गो-शाला के साथ ही मंदिर सरोवर का निर्माण भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौशाला निर्माण की तारीफ करते हुए कहा कि वह खुद गौशाला का शुभारंभ करने के लिए बन्हेरी आएंगे।
लॉकडाउन के चलते प्रदेश में लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा एक वरदान साबित हुई। लॉकडाउन के दौरान कसाराघाट कल्याण महाराष्ट्र से वापस लौटे प्रवासी मजदूर रामचरण के मुताबिक वे लॉकडाउन के दौरान अपने गांव रोशिया जिला खंडवा लौट आए थे। गांव लौटकर आने पर मनरेगा योजना के तहत उन्हें काम मिला और खंती खुदाई (कंटूर ट्रेंचिंग) का काम कर रहे हैं। रमचरण कहते हैं कि वह अबग आगे भी अपने गांव में रहकर ही काम करना चाहते हैं और पैसों के लिए वारस परदेश नहीं जाना चाहते है।