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ग्राउंड रिपोर्ट: पृथ्वीपुर उपचुनाव में मुद्दों पर हावी जाति, कांग्रेस सहानुभूति तो भाजपा परिवारवाद को मुद्दा बनाकर परिवर्तन के लिए लगा रही जोर

ग्राउंड रिपोर्ट: पृथ्वीपुर उपचुनाव में मुद्दों पर हावी जाति, कांग्रेस सहानुभूति तो भाजपा परिवारवाद को मुद्दा बनाकर परिवर्तन के लिए लगा रही जोर
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विकास सिंह

, मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021 (15:30 IST)
मध्यप्रदेश में उपचुनाव का चुनावी शोर अब अंतिम दौर में है। 30 अक्टूबर को होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में अब प्रचार अभियान अपने चरम पर है। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल के तौर पर देखे जा रहे उपचुनाव में पूरे प्रदेश की निगाहें निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर टिकी हुई है। इसका पहला कारण निवाड़ी का उत्तर प्रदेश सीमा से सटे होना और दूसरा इस सीट पर इतिहास में कांग्रेस का बोलबाला बने रहना।
 
कांग्रेस विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर के निधन के बाद पृथ्वीपुर विधानसभा सीट में हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे नितेंद्र सिंह राठौर पर अपना भरोसा जताया है तो भाजपा ने डॉक्टर शिशुपाल यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। शिशुपाल यादव 2018 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। 
 
चुनाव प्रचार में सियासी दलों ने झोंकी ताकत- भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस सीट को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तक आधा दर्जन से अधिक सभाएं कर चुके हैं और वहीं सरकार के बड़े मंत्री चुनाव शुरु होने से अब तक यहां डेरा डाले हुए हुए है और वह गांव-गांव चुनाव प्रचार कर भाजपा की जीतने की कोशिश में जुटे हुए है। वहीं कांग्रेस के तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित कांग्रेस के स्टार प्रचारक लगातार सभाएं कर रहे हैं। 
 
उपचुनाव में कौन सा मुद्दा हावी?-पृथ्वीपुर कांग्रेस की पारंपरगत सीट के रुप में पहचानी जाती है। 2018 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस से बृजेंद्र सिंह राठौर ने बड़ी जीत हासिल की थी। वहीं करीब पौने तीन साल बाद हो रहे उपचुनाव में तस्वीर काफी कुछ बदली-बदली नजर आ रही है। 
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चुनाव में भाजपा ने क्षेत्र के पिछड़ेपन का मुद्दा जोर शोर से उठाते हुए इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। पृथ्वीपुर में भाजपा की चुनावी कमान संभालने वाले शिवराज सरकार के मंत्री भारत सिंह कुशवाह कहते हैं कि 25 सालों से पृथ्वीपुर में कांग्रेस का विधायक होने के बावजूद भी यहां पर जो विकास होना चाहिए थे, लोगों को जो मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए थी वह मूलभूत सुविधाएं अभी तक नहीं मिल पाई हैं। चाहे वो खेतों के लिए सिंचाई का पानी हो,यहां की खस्ताहाल सड़कें या फिर लचर स्वास्थ्य व्यवस्था हो इसलिए पृथ्वीपुर की जनता ने यहां परिवर्तन का मन बना लिया है। इसके अलावा उपचुनाव में बेरोजगारी और शिक्षा का मुद्दा भी जोर शोर से उठाया जा रहा है।
 
सहानुभूति लहर के सहारे कांग्रेस-वहीं कांग्रेस इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के सहानुभूति लहर के सहारे है। कांग्रेस पार्टी ने पूर्व विधायक और कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे बृजेंद्र सिंह राठौर के पुत्र नितेंद्र सिंह राठौर को मैदान में उतारा है। कांग्रेस बृजेंद्र सिंह राठौर के क्षेत्र के कामकाज को मुद्दा बनाकर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। 
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मुद्दों पर हावी जाति फैक्टर!- पृथ्वीपुर उपचुनाव में मुद्दों पर जाति हावी है। विधानसभा सीट की जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर सबसे ज्यादा यादव और कुशवाहा समाज के वोटर हैं जो हमेशा निर्णायक की भूमिका निभाते हैं तो वहीं अगर बात करें दलितों की तो यहां पर अहिरवार समाज भी अच्छी खासी संख्या में मौजूद है। जिसका असर कुशवाहा और यादवों के बराबर तो नहीं होता पर फिर भी यह अपना अलग महत्व रखते हैं।
 
जातियों को रिझाने की कोशिश-कुशवाहा वोटरों को अपनी ओर से मोड़ने के लिए भाजपा ने प्रदेश सरकार के उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री भारत सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा है जो एक महीने से अधिक समय से पृथ्वीपुर में अपना डेरा जमाए हुए हैं और कुशवाहा वोटरों को रिझाने का कार्य कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं है कांग्रेस ने भी अपने सबलगढ़ विधायक बैजनाथ कुशवाहा और सुमावली विधायक अजब सिंह कुशवाहा को मोर्चे पर तैनात किया हुआ है।
 
दलबदल का भी दौर-सोमवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चुनावी सभा में बसपा के पूर्व प्रत्याशी नंदराम कुशवाहा का अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने से भाजपा ने आखिरी समय जनता को एक मैसेज देने की कोशिश की है। 2018 के विधानसभा चुनाव में नंदराम कुशवाहा को इस सीट से 30,000 वोट प्राप्त हुए थे और वह तीसरे नंबर पर थे। 

अब जब वोटिंग में चंद दिन शेषबचे है तब देखना होगा कि 30 अक्टूबर को पृथ्वीपुर की जनता क्या एक बार फिर परंपरागत नतीजों पर ही मुहर लगाती है या परिवर्तन का नया इतिहास लिखती है।
 

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