Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

'सुप्रीम' फैसले के बाद मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण के बिना पंचायत-निकाय चुनाव की तैयारी, पढ़ें पूरी खबर

पंचायत-निकाय चुनाव कराने के लिए राज्य निर्वाचन पूरी तरह तैयार, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का होगा पालन: राज्य निर्वाचन आयुक्त

'सुप्रीम' फैसले के बाद मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण के बिना पंचायत-निकाय चुनाव की तैयारी, पढ़ें पूरी खबर
webdunia

विकास सिंह

, मंगलवार, 10 मई 2022 (14:10 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य चुनाव आयोग को बिना ओबीसी आरक्षण के दो सप्ताह में चुनाव की अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बंसत प्रताप की ओर से जारी बयान में कहा गया कि आयोग सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी समय सीमा में चुनाव की अधिसूचना जारी कर देगा।
 
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?- मध्यप्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव प्रकिया पूरी करने के निर्देश दिए। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में हर 5 साल के अंदर चुनाव कराने की व्यवस्था है, लिहाजा चुनावों में देरी नहीं की जा सकती। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2 सप्ताह के अंदर पंचायत एवं नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करने के चुनाव आयोग को निर्देश दिए। इसके साथ ही कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को लेकर भी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि जो भी पॉलिटिकल पार्टी ओबीसी की पक्षधर हैं, वो सभी सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उम्मीदवार उतारने के लिए स्वतंत्र है। 
 
‘सुप्रीम’ फैसले पर CM शिवराज का बयान-ओबीसी आरक्षण को लेकर लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सरकार अब रिव्यू पिटीशन दायर करने पर विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है, जिसका विस्तृत अध्ययन अभी नहीं किया है। ओबीसी आरक्षण के साथ ही मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव हो इसके लिए रिव्यू पिटीशन दायर करेंगे और पुनः आग्रह करेंगे कि स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ हों।
 
‘सुप्रीम’ फैसले पर सुपर सियासत- मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण वर्तमान समय में सियासत का सबसे बड़ा मुद्दा है। पंचायत चुनाव में ओबीसी वर्ग के लिए पंच, सरपंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य के करीब 70 हजार पद आरक्षित है और यहीं कारण है कि पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पह हमलावर है। भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर पिछड़ा वर्ग विरोधी होने का आरोप लगाते है।

आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने कहा कि शिवराज सरकार की वजह से प्रदेश की 56 प्रतिशत आबादी को भाजपा सरकार के षणयंत्र के कारण अपने वाजिब अधिकारों से वंचित होना पड़ेगा, पिछड़ा वर्ग से ही संबध मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह सौदा और षणयंत्र भविष्य में आपके लिए घातक होगा। हमें इसी बात की आशंका थी, अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर सरकार की घोर लापरवाही केकारण, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का वह एजेंडा लागू हो गया है जिसमें "आरक्षण समाप्ति" की बात की गई थी,
 
पंचायत चुनाव का मामला कैसे उलझा?– शिवराज सरकार ने 21 नवंबर 2021 को मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संसोधन) अध्यादेश 2021 लाकर कमलनाथ सरकार के समय 2019 में हुए पंचायत के परिसीमन (Delimitation डिलिमिटेशन) और आरक्षण को समाप्त कर दिया था। सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया था कि यदि परिसीमन एक साल के भीतर लागू न हो तो एमपी पंचायत एक्ट के अनुसार वह स्वत: ही समाप्त हो जाता है। संविधान के अनुच्छेद 213 क्लॉज 1 की शक्तियों(राज्यपाल को शक्ति प्रदान करता है) का प्रयोग करते हुए शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संसोधन) अध्यादेश 2021 लाकर मध्यप्रदेश पंचायती राज अधिनियम की मूल धारा 9 में नई धारा 9A जोड़ दी है, जिसमें दो बिंदुओं को जोड़ा गया है। पहला 2019 के परिसीमन को समाप्त करना और रोटेशन प्रकिया का ज़रूरी नहीं होना। 
 
पंयाचत चुनाव की तारीखों का एलान- सरकार के इस फैसले के बाद 4 दिसंबर 2021 को मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रदेश के सभी 52 जिलों में पंचायत चुनाव को तीन चरणों में कराने की घोषणा कर देता है जिसके बाद ग्राम पंचायतों में आचार संहिता लागू हो जाती है और चुनाव का माहौल शुरू हो जाता है।
webdunia
सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट पहुंची कांग्रेस-चुनाव आयोग के चुनाव की घोषणा होते हुए शिवराज सरकार के आरक्षण और परिसीमन रद्द करने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने जबलपुर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 9 दिसंबर को जबलपुर हाईकोर्ट में पंचायत चुनाव पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इस बीच जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले से पहले ही 7 दिसंबर को कांग्रेस प्रवक्ता सैयद जाफर और जया ठाकुर ने पंचायत चुनाव में रोटेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते है। वहीं जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस से राज्यसभा सांसद और पूरे मामले की पैरवी करने वाले वकील विवेक तनखा की ओर से सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल की जाती है।
 
सुप्रीम कोर्ट पहले पूरे मामले को जबलपुर हाईकोर्ट भेजता है लेकिन वहां से एक बार फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट में 17 दिसंबर को सुनवाई होती है और सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग से पूछता है कि क्या ओबीसी को 27% आरक्षण देकर पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, राज्य सरकार के पास कोई ऐसा पुख्ता डेटा नहीं है तो फिर सरकार पंचायत चुनाव में ओबीसी को 27% आरक्षण देकर पंचायत चुनाव क्यों करा रही है। 
 
राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से ठोस जवाब न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र फैसले (महाराष्ट्र निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराए जाएं) के संदर्भ में ही एमपी पंचायत चुनाव पर अहम फैसला सुनाता है और मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग को कड़ी फटकार लगाते हुए निर्देश देता है कि आप चुनाव जारी रखें, लेकिन जहां ओबीसी आरक्षित पदों पर चुनाव होने हैं उनको सामान्य सीट करके चुनाव कराए जाएं, नहीं तो हम चुनाव रद्द भी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद निर्वाचन आयोग 17 दिसंबर की शाम को ही एक नोटिफिकेशन जारी करता है। जिसमें ओबीसी आरक्षित पंच, सरपंच, जनपद, जिला पंचायत सदस्य के चुनाव पर रोक लगा दी जाती है।
 
सरकार ने वापस लिया अध्यादेश, रद्द हुए चुनाव- इस बीच शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव को लेकर शिवराज सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए डिलिमिटेशन संबंधी अध्यादेश वापस ले लिया और चल रहीं चुनाव प्रक्रिया को निरस्त का प्रस्ताव राज्यपाल को भेज दिया है। जिसके बाद मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर चल रही पूरी प्रक्रिया को रोक दिया जाता है। 
 
35 फीसदी OBC आरक्षण की सिफारिश-वहीं सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले पर 5 मई को हुई सुनवाई के  तुरंत बाद पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने अपनी रिपोर्ट जारी कर दावा किया कि प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79 प्रतिशत है। आयोग में अपनी अनुशंसा में कहा राज्य सरकार त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कम से कम 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित करे। इसे साथ राज्य सरकार समस्त नगरीय निकाय चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कम से कम 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित करे। त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों एवं नगरीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण सुनिश्चित किये जाने हेतु संविधान में संशोधन करने के लिए राज्य सरकार की ओर से भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा जाये।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

सड़क दुर्घटना में आदमी मर जाते हैं तो क्या लोग आदमी मांगते हैं? हादसे का शिकार महिला पर भड़के SHO