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कांग्रेसी मंडप में एक पांच साला स्यापा

अजय बोकिल
बुधवार, 11 दिसंबर 2013 (14:35 IST)
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को खां, पूरे कांग्रेसी मंडप में स्यापा मचा हे। चुनावी हार को लेके जूतम पेजार चल रई हे। तेरी वजह से हारे। उसकी वजह से हारे। इसकी वजह से हारे। हारे ओर जम कर हारे। जहां जीत रिए थे, वहां भी आखिरी वक्त में हारे। मगर ये कोई नई समझ पा रिया के हारे क्यों। दो महीने पेले लग रिया था के हवा अपने हक में चल रई हे। पब्लिक अपन को माला पिन्हाने के वास्ते उधार बेठी हे। लोगों में गुस्सा हे, पर किसके खिलाफ हे, ये किलीयर नई हो पा रिया था। इसी भरोसे पे अपनी नैया चुनाव में उतार दी थी। पर वो यों गुड़गुड़ गोते खा जाएगी, ये तो अपने युवराज ने भी नई सोचा था।

मियां, चुनाव पेले भी लड़े थे। जीते थे। कभी हारे भी थे। मगर इत्ती खामोशी कभी नई देखी। कोई कुछ हवा ई नई लगने दे रिया था। न शोर शराबा, न नारे न जुलूस। कुछ भी नई था। इससे ज्यादा हंगामा तो गरीब की बिटिया की शादी में रेता हे। भले मैयत वाले हों पर बाजे बजते तो हें। पर इधर तो गजब हो गया। सेहरा सजा के बेठे थे, जनाजा निकलने की नोबत आ गई। शादी का घोड़ा चार कदम भी ठीक से नई चल पाया। नाचना तो दूर की बात हे। बारातियों की जो भीड़ नामजदगी पर्चा भरने तक थी, बाद में छंटने लगी। समझ नई आया के ये क्या हो गया।

खां, इस बार पूरी उम्मीद थी कि सियासत में दस साल बाद अपनी दुकान सजेगी। सरकार बनना तो ते था ई। चिंता तो खाली इस बात की थी के मंतरी बनेंगे के नई। महकमा कोन सा मिलेगा। मलाई कहां से निकलेगी। पुराना कमाया हुआ इन सालों में निकल गया। लोकल लेविल पे थोड़ी भोत सेटिंग करी थी। मगर उससे क्या होता हे। टिकट के वास्ते कित्ती जुगाड़ भिड़ाई थी। साब को सलाम करा था। भैया के पेर पड़े थे। दलालों को भेंट चढ़ाई थी। जो फार्मूला चले, उसी में फिट होने को जमीन आसमान एक करा था। मगर चला भी तो पब्लिक का फार्मूला चला। अब क्या करें। कोन को दोष दें।

आप यकीन मानो के पिरजा को सेट करने अपन महाराज तक को ले आए। खून-पसीना एक करा। शिवराज को पानी पी-पी के कोसा। बीजेपी को हर मुमकिन लतियाया। मोदी को नकारा। मंच पे हाथों में हाथ लेके, खींसे निपोरते फोटू खिंचवाए। हम सब साथ हे के बयान जारी करवाए। भीतर ई भीतर एक होने का हर मुगालता दूर करते रिए। इसको टांग मारी तो उसको धोबीपाट। दांव ये रिया के सरकार बनी तो अगला सीएम न बन जाए। राहुल भैया को बताते रिए के सब उम्दा चल रिया हे। सबने हवा यूं बनाई के बस सरकार बनने ई वाली हे। अफवाहबाजों को भी मेनिज करा। माहोल बना के कांटे की टक्कर हे। टक्कर तो थी, मगर हाथी ओर चूहे की। अरे, दगा तो इस पब्लिक ने करा हे, जो सब जान रई थी। मगर अपन ई पब्लिक के मन को ई नई पिचान रिए थे। अब पांच साल यूं ई कटेंगे।

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