भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान ठीक पहले आज प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी प्रदेश के दौरे पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज जबलपुर में - वीरांगना रानी दुर्गावती स्मारक का भूमिपूजन करने के साथ जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके साथ ही प्रधानमंत्री जबलपुर में विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास, भूमिपूजन, लोकार्पण करेंगे। वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने धार जिले के मोहनखेड़ा तीर्थ टंट्या मामा की मूर्ति का अनावरण करने के साथ एक जनसभा को भी संबोधित कर रही है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले सियासी दल आदिवासी वोटर्स को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहे है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए आदिवासी वोटर्स क्यों जरुरी है, आइए इसको विस्तार से समझते है।
आदिवासी वोटर्स पर भाजपा का पूरा फोकस- मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा आदिवासी वोटर्स को साधने के लिए आदिवासी समाज से आने महापुरुषों को सहारा ले रही है। आज प्रधानमंत्री रानीदुर्गावती स्मारक का भूमिपूजन करेंगे. वहीं पिछले दिनों प्रधानमंत्री रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के समापन कार्यक्रम में शहडोल में शामिल हुए थे। दरअसल भाजपा यात्रा के जरिए आदिवासी क्षेत्रों में घर-घर तक पहुंचकर केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की शिवराज सरकार की ओर से आदिवासी समाज के हितों के लिए किए गए कामों को बताने की कोशिश में है।
कांग्रेस के लिए आदिवासी ही सहारा-दूसरी ओर प्रदेश में सत्ता की वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस के लिए आदिवासी ही सबसे बड़ा सहारा है। चुनाव से पहले आदिवासी वोटरों को साधने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाधी धार जिले के मोहनखेड़ा तीर्थ में दर्शन कर टंट्या मामा की मूर्ति का अनावरण कर आदिवासी वोटर्स को साधने की पूरी कोशिश करेगी। दरअसल कांग्रेस चुनाव में आदिवासी वोटरों को साधकर 2018 से जैसी सफलता प्राप्त करना चाहती है। 2018 के विघानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 30 सीटें जीती थी।
विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स गेमचेंजर?-मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के आदिवासी वोटरों पर फोकस करने का बड़ा कारण आदिवासी वोटर्स का विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित होना है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी, अनुसूचित जातियां (एससी) क़रीब 15.6 प्रतिशत हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।
आदिवासी वोटर्स जिसके साथ उसकी बनी सरकार-अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी।
इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।