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महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

मतदाता की उदासीनता से बढ़ी सभी राजनीतिक दलों की चिंता

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
सोमवार, 29 अप्रैल 2024 (20:10 IST)
Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा सीटों के मामले में देश दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। यहां 2 शिवसेना और 2 एनसीपी के चलते असली नकली की जंग है, वहीं शरद पवार और उद्धव ठाकरे की विरासत भी दांव पर है। 48 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में भाजपा समेत 6 पार्टियों की और कई दिग्गजों की साख दांव पर है। बीजेपी के सामने 2019 से बेहतर प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी है तो कांग्रेस के सामने खाता खोलने की चुनौती।
 
एनसीपी और शिवसेना की दोनों पार्टियों में असली और नकली की जंग चल रही है। हालांकि चुनाव आयोग अजित पवार के नेतृत्व वाली पार्टी को असली चुनाव चिह्न दिया है। वहीं, उद्धव ठाकरे से भी शिवसेना का असली चुनाव चिह्न 'तीर-कमान' छिन गया है। इससे राज्य का मतदाता भ्रमित नजर आ रहा है। असली-नकली की लड़ाई के साथ ही चुनाव में आरक्षण जैसे मुद्दे भी हावी हैं। 
 
मोदी की चुनावी रैलियां : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं। मोदी 6 और 10 मई को भी राज्य में चुनावी रैलियां करेंगे। 6 मई को बीड में वे पंकजा मुंडे के लिए मैदान में उतरेंगे। 10 मई को कल्याण नगर और डिंडोरी के भाजपा और गठबंधन प्रत्याशियों के लिए पीएम की सभा होगी। उद्धव ठाकरे, शरद पवार, अजित पवार, एकनाथ शिंदे अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं और सभाएं कर रहे हैं।
 
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को 5 सीटों पर 63.70 फीसदी वोटिंग हुई थी, जबकि दूसरे चरण में 26 अप्रैल को 8 सीटों पर 59.63 फीसदी वोटिंग हुई थी। दोनों ही चरणों में 13 सीटों पर राज्य में कम मतदान हुआ।
 
अब तीसरे चरण में 7 मई को रायगढ़, बारामती, धाराशिव, लातूर, सोलापुर, माधा, सांगली, सतारा, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर, हातकणंगले और चौथे चरण में 13 मई को नंदुरबार, जलगांव, रावेर, जालना, छत्रपति संभाजीनगर, मावल, पुणे, शिरूर, अहमदनगर, शिरडी, बीड और पांचवें चरण में 20 मई को छह सीटों- धुले, डिंडोरी, नासिक, पालघर, भिवंडी, कल्याण, ठाणे, मुंबई में चुनाव होंगे।
 
2 की चार पार्टियां हुईं : भाजपा ने 2019 में जीते 23 सांसद में से 7 सांसदों का टिकट काट दिया है। पिछले चुनाव में कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। अब शिवसेना और एनसीपी दो नहीं बल्कि चार पार्टियां हैं और इनका कांग्रेस और बीजेपी के साथ गठबंधन है। एक तरफ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का अजित पवार की एनसीपी और भाजपा के साथ गठबंधन है। ये दल एनडीए का हिस्सा हैं। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी जिसमें कांग्रेस, राकांपा (शरद चंद्र पवार) और शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं। 
 
दोनों मोर्चों में सीटों के बंटवारे को लेकर भी तनाव की स्थिति देखने को मिली थी। महाविकास अघाड़ी में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी ने क्रमशः 21, 17 और 10 सीटें आपस में बांट ली हैं। महागठबंधन में बीजेपी को 28 सीटें, शिवसेना को 14 सीटें और एनसीपी को 5 सीटें हिस्से में आई हैं। महादेव जानकर की राष्ट्रीय समाज पार्टी (आरएसपी) को एक सीट देने के फॉर्मूले पर सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है। वंचित बहुजन अघाड़ी भी मैदान में है, जो दूसरी पार्टियों के वोट काट सकता है। इधर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी बीजेपी का समर्थन किया है। ऐसे में अब मतदाताओं में असमंजस की स्थिति है।
 
शिंदे मूल रूप से बाला साहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना के चुनाव चिन्ह तीर-कमान को हासिल करने में सफल रहे थे। साथ ही अजित पवार को एनसीपी का मूल चुनाव चिन्ह यानी घड़ी मिल गई। नतीजा यह हुआ कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी को तुतारी (तुरही) नया चुनाव चिह्न मिला, जिसे अब लोगों को मानस में बिठाना जरा मुश्किल हो रहा है। यही स्थिति है शिवसेना (यूबीटी) की। उद्धव ठाकरे दावा कर रहे हैं कि मशाल का चुनाव चिन्ह उनके हाथ में आ गया है और अब शिवसेना की 'मशाल' निरंकुश शासन को नष्ट कर देगी। 
 
भाजपा में भी नाराजी : वहीं, भाजपा में कई लोग दूसरी पार्टी के भष्टाचारी नेताओं के स्वागत किए जाने पर न तो ठीक से नाराजगी जाहिर कर पा रहे हैं और न ही सवाल उठा पा रहे हैं। शिवसेना और एनसीपी कार्यकर्ताओं के बीच भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। एनसीपी के कुछ कार्यकर्ता और परिवार के कई सदस्य भी पूरे दिल से शरद पवार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इधर, अजित पवार बारामती में बेटी की बजाय बहू को वोट देने की अपील कर रहे हैं, जहां उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार और बहन सुप्रिया सुले आमने-सामने लड़ रही हैं।
 
शिवसेना कार्यकर्ताओं की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। हिंदुत्व का मुद्दा हो या असली शिवसेना कौनसी? या बालासाहेब का उत्तराधिकारी कौन? इस बात को लेकर असमंजस बरकरार है कि बीजेपी के साथ गठबंधन करना सही निर्णय है या हिंदुत्व के मुद्दे पर कभी कांग्रेस पर तीखा प्रहार करने वाली पार्टी को साथ में जोड़ना सही है।
 
मराठा आरक्षण बड़ा मुद्दा : विकास के मुद्दे से तो मानो सभी भटक गए हैं परंतु यहां बड़ा मुद्दा मराठा आरक्षण है। इसका सीधा असर कई जगहों पर देखने को मिल रहा है। एम्बुलेंस में स्ट्रेचर पर लेटकर वोट डालने पहुंचे आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व करने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने हित के लिए लड़ने वालों को वोट देने की अपील की है। मराठों के बाद राज्य में ओबीसी, मुस्लिम और दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। 
 
दूसरी ओर, छगन भुजबल के इस बयान ने कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए सहानुभूति लहर है, हलचल पैदा कर दी है। साथ ही छगन भुजबल का कहना है कि एनडीए का नारा अबकी बार 400 पार असंभव है और इस दफा उनकी राह बहुत कठिन है और बारामती की लड़ाई दुर्भाग्यपूर्ण है।
 
पिछले अनुभव और स्थिति को देखते हुए, मतदाताओं को लगता है कि उनका वोट बर्बाद हो गया है क्योंकि उन्होंने जिनके खिलाफ वोट किया था वे सत्ता में आ गए हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद मतदाताओं की उदासीनता का नजारा ही देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ समय से राजनीतिक घटनाओं की वजह से मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं जो यह दर्शाता है कि नेताओं की विश्वसनीयता खत्म हो रही है।
 

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