Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

कांग्रेस को फूलपुर में खोई जमीन की तलाश, पटेल पर लगाया दांव

Webdunia
शनिवार, 30 मार्च 2019 (16:26 IST)
प्रयागराज। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित फूलपुर लोकसभा सीट पर अपना दल (अद) के साथ गठबंधन कर 35 सालों से खोई जमीन तलाशने के लिए पटेल बिरादरी पर दांव लगाया है।

कांग्रेस ने फूलपुर संसदीय सीट से अपना दल (कृष्णा गुट) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल के दामाद पंकज निरंजन सिंह को गुरुवार को अपना प्रत्याशी घोषित किया। इस सीट पर जीत और हार में पटेल मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस सीट को हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी पटेल बिरादरी के ही किसी कद्दावर नेता को चुनाव मैदान में उतारकर वर्ष 2017 में हुए उपचुनाव में मिली हार का बदला लेना चाहेगी।

कुर्मी बहुल इस सीट पर अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की प्रतिष्ठित फूलपुर संसदीय क्षेत्र से जीतकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने का सपना कभी पूरा नहीं हो सका। उन्होंने 1996 से लेकर 2004 तक चार बार चुनाव लड़े लेकिन जीत से कोसों दूर रहे।

फूलपुर संसदीय क्षेत्र में कुल 19,75,219 मतदाता हैं। जिसमें पुरुष मतदताओं की कुल संख्या 1083213 जबकि 891797 महिला एवं 209 अन्य है। इस सीट पर फूल कम कांटे ज्यादा हैं। यहां जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है।


फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी वोटर सबसे अधिक हैं। इनमें भी पटेल मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। ऐसे में राजनीतिक दल पटेल मतदाताओं को अपने खेमे में लाने की भरसक कवायद करेंगे। कांग्रेस ने पटेल पर दांव लगाकर खेल की शुरुआत कर दी है।

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में यह सीट सपा के पास है। सपा और भाजपा भी यदि किसी पटेल उम्मीदवार पर दांव खेलेंगे तो सियासी जंग दिलचस्प बन जाएगी। फूलपुर की सोरांव, फाफामऊ, फूलपुर और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट ओबीसी बाहुल्य हैं। इनमें कुर्मी, कुशवाहा और यादव वोटर सबसे अधिक हैं।

फूलपुर की जनता ने आजादी के बाद से पंडित जवाहरलाल नेहरू को तीन बार संसद में पहुंचाया था। यहीं से जीत कर वे प्रधानमंत्री बने। पंडित नेहरू ने यहां से 1952, 1957 और 1962 में चुनाव जीता था। यह सीट हमेशा से भाजपा के लिए चुनौती बनी रही। अयोध्या आंदोलन के समय 'राम लहर' में भी भाजपा यहां से जीत का स्वाद नहीं चख पाई थी, लेकिन पंड़ित नेहरू के चुनाव लड़ने के कारण ही इस सीट को 'वीआईपी सीट' का दर्जा मिला। यह एक प्रकार से कांग्रेस का गढ़ भी रहा है।

फूलपुर संसदीय क्षेत्र ने कुल 18 चुनाव देखे हैं जिनमें दो उप-चुनाव भी शामिल हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यहां से लगातार 1952, 1957 और 1962 का चुनाव जीते और दूसरे रामपूजन पटेल जो 1984, 1989 और 1991 में इस सीट से हैट्रिक बनाई है। यह रिकॉर्ड अभी तक तीसरा कोई नहीं तोड़ पाया। पटेल एक बार कांग्रेस के टिकट पर और दो बार जनता दल के टिकट से विजयी रहे।

पंडित नेहरू के निधन के बाद 1964 में हुए उप चुनाव में उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने यहां से जीत दर्ज की। उसके बाद 1967 में लोकसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को पराजित किया था। 1968 में उनके इस्तीफा देने के बाद हुए 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जनेश्वर मिश्र विजयी हुए थे। वर्ष 1971 में कांग्रेस के टिकट पर विश्वनाथ प्रताप सिंह चुने गए थे। इसके लंबे समय बाद अन्तिम बार वर्ष 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस के राम पूजन पटेल ने जीत दर्ज की थी। उसके बाद से इस सीट पर कांग्रेस पलट कर फिर कभी नहीं आई।

वर्ष 2009 तक तमाम कोशिशों और समीकरणों के बावजूद भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करने में नाकाम रही। इस सीट पर मंडल का असर तो पड़ा लेकिन कमंडल का असर नहीं हुआ था। राम लहर में भी यहां से भाजपा जीत हासिल नहीं कर सकी।

आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' में केशव प्रसाद मौर्य ने यहां कमल खिलाया था और सपा प्रत्याशी को 62,009 मतों से हार मिली थी। इस जीत का सुख लंबे समय तक भाजपा नहीं ले सकी। मौर्य ने उपमुख्यमंत्री बनने के बाद फूलपुर लोकसभा सीट से त्याग पत्र दे दिया था। उनके त्याग पत्र से रिक्त सीट को भरने के लिए यहां 2017 में हुए उपचुनाव में सपा के नागेन्द्र सिंह पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को पराजित कर अपने खाते में जीत दर्ज की थी।

गौरतलब है कि आज़ादी के बाद से ही दुनियाभर में चर्चित रहने वाला फूलपुर संसदीय क्षेत्र देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का चुनावी क्षेत्र तो रहा ही है, कई बार अप्रत्याशित परिणाम देने ही नहीं बल्कि कई दिग्गजों को धूल चटाने के लिए भी मशहूर रहा है।

प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया हों, छोटे लोहिया (जनेश्वर मिश्र) हों, अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम एवं राम पूजन पटेल जैसे कई नाम हैं, लेकिन विकास के नाम पर आज भी यह क्षेत्र बाट जोह रहा है। यहां सिर्फ इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफ़को) की यूरिया फैक्ट्री भर है। इसके अलावा विकास की किरण दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती।

सम्बंधित जानकारी

जरूर पढ़ें

प्रियंका गांधी ने वायनाड सीट पर तोड़ा भाई राहुल गांधी का रिकॉर्ड, 4.1 लाख मतों के अंतर से जीत

election results : अब उद्धव ठाकरे की राजनीति का क्या होगा, क्या है बड़ी चुनौती

एकनाथ शिंदे ने CM पद के लिए ठोंका दावा, लाडकी बहीण योजना को बताया जीत का मास्टर स्ट्रोक

Sharad Pawar : महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों से राजनीतिक विरासत के अस्तित्व पर सवाल?

UP : दुनिया के सामने उजागर हुआ BJP का हथकंडा, करारी हार के बाद बोले अखिलेश, चुनाव को बनाया भ्रष्टाचार का पर्याय

सभी देखें

नवीनतम

संभल मामले में अखिलेश यादव का बड़ा बयान, हिंसा के लिए इन्‍हें ठहराया जिम्मेदार

LIVE: राज्‍यपाल से मिले हेमंत सोरेन, पेश किया सरकार बनाने का दावा

बावनकुले ने बताया, कौन होगा महाराष्‍ट्र का अगला मुख्‍यमंत्री?

संसद सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक, सरकार ने सभी दलों से की यह अपील

अजित पवार बने विधायक दल के नेता, राकांपा की बैठक में हुआ फैसला

આગળનો લેખ
Show comments