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ममता को हराने के लिए भाजपा को मिला लेफ्ट और कांग्रेस का 'गुप्त' समर्थन

विकास सिंह
लोकसभा चुनाव में बंगाल में इस बार सबसे अधिक हिंसा की घटनाएं हुईं। कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो में हिंसा की घटना के बाद चुनाव आयोग ने कठोर निर्णय लेते हुए बंगाल में चुनाव प्रचार एक दिन पहले खत्म कर दिया, लेकिन चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद भी तनाव बना हुआ है।
 
 
आखिरी चरण के चुनाव के लिए बंगाल में उन्नीस मई को 9 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। बंगाल में इस बार लोकसभा चुनाव को भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने जिस तरह अपनी अस्मिता का चुनाव बनाया है, उसको देखते हुए आखिरी चरण में बहुत ही महत्वपूर्ण है। रविवार को कोलकाता उत्तर, कोलकाता दक्षिण, दमदम, बारासात, बशीरहाट, जादवपुर, डायमंड हार्बर, जयनगर और मथुरापुर सीट पर मतदान होगा। इनमें से डायमंड हार्बर सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक के चुनाव लड़ने से ये चरण ममता की साख की लड़ाई में बदल गया है।
 
 
वेबदुनिया ने इन नौ सीटों पर मतदान के ठीक पहले वर्तमान सियासी माहौल को लेकर कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से बात की। पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर आनंद पांडे मानते हैं कि अगर चुनावी समीकरणों को देखा जाए तो भाजपा इस बार बंगाल में काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। भाजपा के नेताओं ने जो मेहनत की है उसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ेगा।
 
 
वेबदुनिया से बातचीत में आनंद पांडे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का तुष्टीकरण की नीति को काफी गलत ठहराते हुए कहते हैं कि इससे बंगाल का माहौल खराब हुआ है और चुनाव में इसका खमियाजा ममता बनर्जी को उठाना पड़ सकता है जो अब चुनावी नतीजों से पता चलेगा।
 
 
ममता ने अकेले लड़ी लड़ाई : वहीं कोलकाता में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी और चुनावी विश्लेषक डॉक्टर सुनील कुमार 'सुमन' कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को बंगाल से बड़ी उम्मीदें हैं, इसलिए भाजपा ने चुनाव में यहां पूरी ताकत झोंक दी है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के सहारे भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बंगाल में अपने को स्थापित करने की कोशिश की है।
 
 
सुनील कुमार मानते हैं कि चुनाव में जो भी हिंसा हुई है वो दोनों तरफ से हुई है और इसके लिए जितनी जिम्मेदारी टीएमसी की है उससे अधिक भाजपा की है। सुमन कहते हैं कि बंगाल में जितनी अधिक हिंसा और नफरत होगी उतना ही फायदा भाजपा को मिलेगा और इसी का फायदा उठाते हुए भाजपा ने बंगाल में अपने पैर जमाने के लिए इस बार जमकर ध्रुवीकरण का कार्ड खेला है।
 
 
भाजपा ने राम के नाम से लेकर बालाकोट हमले का पूरा का पूरा सियासी फायदा लेने की कोशिश की है। वहीं सुनील कुमार एक चौंकाने वाली बात कहते हैं कि ममता को हराने के लिए पूरे चुनाव के दौरान लेफ्ट और कांग्रेस अंदरखाने से एक तरह से भाजपा का समर्थन करते नजर आए। इसके पीछे कारण बताते हुए वो कहते हैं कि लेफ्ट और कांग्रेस कभी भी नहीं चाहेंगे की ममता और मजबूत हो क्योंकि ममता उनके ही वोट बैंक में सेंध लगाकर सत्ता तक पहुंची हैं। इसलिए ममता को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर एक साथ नजर आए।
 
 
क्लब वोट बैंक पर अब भी ममता की मजबूत पकड़ : वहीं कोलकाता में पत्रकारिता के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर ललित कुमार कहते हैं कि पिछले दिनों कोलकाता में जो हिंसा की घटनाएं हुईं उससे पूरे देश में बंगाल की छवि को तगड़ा झटका लगा है। वो मानते हैं कि बंगाल में भाजपा ने जो हिंदुत्व का कार्ड खेला है, उससे झारखंड और बिहार से लगने वाले बंगाल के सीमावर्ती जिलों में असर चुनावी नतीजों में देखने को मिल सकता है।
 
 
ललित कहते हैं कि ममता भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी इस बार भी अपने चुनावी मैनेजमेंट में बहुत हद तक कामयाब होती दिख रही हैं। बंगाल में अपनी जड़ जमाने के लिए ममता ने स्थानीय स्तर पर कॉलोनियों के क्लबों के जरिए जो बूथ मैनेंजमेंट किया था उसमें कामयाब होती दिख रही हैं।
 

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