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चुनाव नतीजों के बाद किंग या किंगमेकर बन सकते हैं ये 7 बड़े सियासी चेहरे

विकास सिंह
शनिवार, 18 मई 2019 (12:58 IST)
भोपाल। दिल्ली में नई सरकार किसकी बनेगी इसको लेकर उठापटक तेज हो गई है। चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया कि पार्टी को अकेले के दम पर 300 से अधिक सीटें मिलेंगी और एनडीए के साथ एक बार फिर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे।
 
वहीं अमित शाह ने नए क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लाने के कवायद में बड़ा बयान देते हुए कहा कि अगर कोई अन्य दल जो उनकी विचारधार के साथ हो उसका भी एनडीए में स्वागत है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने भी नतीजे आने से पहले गठबंधन की कोशिशें तेज कर दी हैं। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी सहयोगी दलों के साथ चर्चा शुरु कर दी है। इस बीच भाजपा को रोकने के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने के लिए तेलुगूदेशम पार्टी के अध्यक्ष और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी दिल्ली में डेरा डाल दिया है।
 
नायडू ने शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की तो आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मिले। ऐसे में सवाल यही है कि अगर किसी एक दल और गठबंधन को मौका नहीं मिला तो क्या एक बार फिर क्षेत्रीय दल के नेता किंग या किंगमेकर की भूमिका निभाएंगे।
 
ममता बनर्जी : लोकसभा चुनाव नतीजों में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने की सूरत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाएगी। बंगाल की 42 लोकसभा सीटों के परिणाम ममता बनर्जी के दिल्ली की भूमिका का फैसला करेंगे। 2014 के चुनाव में 32 सीटें लाने वाली ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी अगर अपना पिछला प्रदर्शन दोहराती है तो ममता दिल्ली की कुर्सी की तगड़ी दावेदार हो जाएंगी।
 
पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से सीधी भिंड़त लेने वाली ममता के समर्थन में जिस तरह 14 से अधिक दल समर्थन में आ खड़े हुए थे उससे इसकी संभावना और अधिक हो गई है।
 
अखिलेश यादव और मायावती : दिल्ली की सत्ता का रास्ता जिस उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, इस बार उस यूपी के दो बड़ी पार्टी सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अखिलेश–मायवाती के इस महागठबंधन ने चुनाव में भाजपा को तगड़ी टक्कर दी है। 
 
भाजपा जिसने अपने सहयोगी दलों के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 73 सीटों पर कब्जा जमाया था उसके सामने इस बार महागठबंधन बड़ी दीवार बनकर खड़ा हो गया है और अगर चुनाव नतीजे महागठबंधन के पक्ष में गए तो दिल्ली की कुर्सी पर कौन बैठेगा इसका का फैसला महागठबंधन के ये दोनों नेता ही करेंगे। वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषक महागठबंधन के किसी नेता को दिल्ली की कुर्सी पर बैठने की संभावना से भी इंकार नहीं कर रहे हैं।
 
नवीन पटनायक : ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक अभी न तो एनडीए के साथ हैं और न ही यूपीए के साथ। ऐसे में चुनाव के बाद उनका और उनकी पार्टी का क्या रुख रहेगा इस पर सबकी नजरें टिकी हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही चुनाव के बाद उनको अपने-अपने पाले में लाने की कोशिश तेज कर दी है।
 
पिछले दिनों ने फेनी तूफान के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओडिशा के दौरे पर पहुंचे तो उन्होंने नवीन पटनायक की तारीफ भी की थी, वहीं कांग्रेस की ओर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के उनके संपर्क में होने की खबरें आ रही हैं।
 
चंद्रबाबू नायडू : आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगूदेशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू चुनाव नतीजे आने से पहले विपक्ष को एकजुट करने में जुट गए हैं। चंद्रबाबू नायडू ने शनिवार को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की तो शाम को लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती से मिल सकते हैं। इसके साथ ही चंद्रबाबू नायडू के अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मिलने की संभावना है। सूत्र बताते हैं कि नायडू सभी विपक्षी दलों के महागठबंधन की कवायद में जुटे हुए हैं।
 
जगनमोहन रेड्डी : चुनाव नतीजों मे किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर आंध्रप्रदेश के क्षेत्रीय दल वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी की पार्टी का चुनाव में प्रदर्शन और उसके बाद उनका रुख बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। कांग्रेस के नेता कोशिश में हैं कि चुनाव के बाद अब जगमोहन रेड्डी भाजपा से दूरी बनाते हुए यूपीए को अपना समर्थन दें। इसके लिए पार्टी ने कोशिश भी तेज कर दी है।
 
के चंद्रशेखर राव : अगर चुनाव नतीजे किसी एक दल या गठबंधन के पक्ष में नहीं गए तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की भूमिका दिल्ली में नई सरकार के गठन में बहुत महत्वपर्ण हो जाएगी। चंद्रशेखर राव चुनाव के बाद फेडरल फ्रंट बनाने की कोशिश में कई क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं से मिल चुके हैं।  

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