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भारत में लोकसभा चुनाव का इतिहास

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भारतीय लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। इसमें त्रिस्तरीय चुनाव होते हैं- लोकसभा, विधानसभा तथा नगर/ ग्राम पंचायत चुनाव। इसके अलावा मंडी जैसे निकायों के भी चुनाव संपूर्ण पारदर्शिता के साथ कराए जाते हैं। इन चुनावों में थोड़े-बहुत अपवाद भी हुआ करते हैं।
 
भारतीय चुनावों में मुख्य रूप से मुकाबला कांग्रेस व भाजपा (पुराना नाम जनसंघ) के बीच ही होता आया है। समय-समय पर कई नई क्षेत्रीय पार्टियां भी बनीं, किंतु इनमें से अधिकतर अपना अस्तित्व बचाने में असफल रहीं। जो बची-खुची रहीं भी, वे केंद्र में सबसे ज्यादा बहुमत प्राप्त दल को समर्थन देने को मजबूर हुईं। 
 
जनता से चुने गए प्रतिनिधियों से मिलकर लोकसभा बनी होती है जिन्हें वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाता है। संविधान में उल्लिखित सदन की अधिकतम क्षमता 552 सदस्यों की है। वर्तमान में 543 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होता है, जबकि दो सदस्यों को एंग्लो-भारतीय समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किया जाता है। ऐसा तब किया जाता है, जब राष्ट्रपति को लगता है कि उस समुदाय का सदन में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है।
 
स्वतंत्र भारत में पहली बार 1952 में लोकसभा का गठन हुआ और पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। वे मृत्युपर्यंत (1963) देश के प्रधानमंत्री बने रहे। इनके बाद कांग्रेस के ही नेता गुलजारी लाल नंदा देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। बाद लालबहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। शास्त्रीजी के निधन के बाद इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद का जिम्मा संभाला।
 
आपातकाल लगाने के कारण उन्हें काफी विरोध सहना पड़ा। वे सत्ता से बेदखल हुईं और मोरारजी देसाई (पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री) और बाद में चरणसिंह प्रधानमंत्री बने। 1980 में फिर इंदिरा गांधी की वापसी हुई। 1984 में उनके ही अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। इंदिराजी के बाद कांग्रेस राजीव गांधी को लाई और उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाया। फिर एक बार चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने इंदिरा लहर के चलते रिकॉर्ड बहुमत हासिल किया। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।
 
राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे वीपी सिंह ने बागी होकर बोफोर्स मुद्दा उठाया और देश के अगले प्रधानमंत्री बने। राजीव को सत्ता खोनी पड़ी। भाजपा और वामपंथी दलों के सहयोग से बनी वीपी की सत्ता लंबे समय तक नहीं चल पाई। इसी दौरान कांग्रेस के सहयोग से एचडी देवेगौड़ा और चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री बन गए। इसके बाद पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में फिर कांग्रेस की सरकार बनी। बाद में अटल जी 13 दिन, 13 महीने और बाद पूरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने। इसी बीच, इंद्र कुमार गुजराल भी प्रधानमंत्री बन गए।
 
2004 में कांग्रेस के मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री और लगातार 10 साल यानी 2014 तक प्रधानमंत्री रहे। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कीर्तिमान रचा और पूर्ण बहुमत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।

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