Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

लो फिर से आ गया नया साल...

लो फिर से आ गया नया साल...
webdunia

डॉ. आशीष जैन

शनै: शनै: कड़ी - 12
बधाइयों और शुभकामनाओं का जब ‘व्हाट्स एप’ पर यकायक तांता लग जाए और मोबाइल की घंटी अनवरत घनघनाने लगे तो नया साल आ ही गया समझो। जिनसे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है, और न आगे होने की कोई संभावना है, उनके भी संदेश पके फल की भांति टपक पड़ते हैं। न जाने किस-किस के संदेश!! कार मैकेनिक जिससे गत वर्ष नंबर प्लेट ठीक करवाई थी, उसका भी संदेश आया। यहां तक कि एक बार जो फ्लिपकार्ट का पार्सल देने आया था, उसका भी संदेश था। मुझे किसी से भी बधाइयां लेने अथवा देने में कोई संकोच नहीं है, पर जब न संदेश लेने वाला जानता है, न पाने वाला, न इसे मतलब है न उसे, न लेना एक न देना दो... फिर काहे को?
 
मैं अपने अनुभव से आपको बता सकता हूँ, नया साल भी चाइनीज़ मोबाइल के जैसा है, जो एक साल से ज्यादा नहीं टिकता। और 1 जनवरी को किए गए नव-वर्ष-संकल्प यदि सप्ताहभर भी चल जाएँ, तो बहुत समझिए। कम से कम होली पर कपड़े गंदे और दिवाली पर घर साफ तो हो जाते हैं, पर नए साल में तो कुछ भी नया नहीं होता। हाँ, यदि आप कहें कि जाता हुआ वर्ष अपने अंतिम पलों में दीपक की फड़फड़ाती हुई लौ की भांति लोगों में कुछ समय के लिए ऊर्जा भर देता है, तो बात कुछ गले भी उतरती है। और फिर अचानक नए साल की फड़फड़ाती हुई धमाकेदार घोषणा होते ही सभी अपने-अपने घर को प्रस्थान कर जाते हैं, जैसे पाली की समाप्ति होने पर श्रमिक फैक्टरी से जाते हैं- चलो काम समाप्त हुआ, मानो यदि आज हम न नाचते तो नववर्ष का आगमन ही नहीं होता। पृथ्वी की अपनी धुरी पर गति बनाए रखने के लिए इन मध्यरात्रि नर्तकों का योगदान महती है।
 
आज नए साल को आए एक सप्ताह भी नहीं हुआ है। नर्तकों की थकान भी नहीं मिटी है, पाचन-तंत्र पर किए गए नवीन प्रयोग एवं घोर अपराध के पश्चात अभी सामान्य हुआ नहीं है, अतिउत्साहित युगल अभी भी उनींदे ही विचरण कर रहे हैं, सेल में खरीदे गए अनावश्यक, अनुपयोगी कपड़े अपने यथास्थान अलमारी में जाने की बजाय अभी भी सोफ़े पर ही पड़े हैं, मिंत्रा, फ्लिपकार्ट से थोक में की गई खरीदी को लौटाने की प्रक्रिया भी चालू नहीं हो पाई कि गत वर्ष के तेवर दिखने भी लगे। यह मध्यरात्रि के उन्माद का उफान जितनी तीव्रता से ऊपर चढ़ा था उससे अधिक द्रुतगति से नीचे बैठ रहा है।
 
क्या बदला है? कौन बदला है? कैलेंडर को छोड़कर नया क्या है- वो भी आजकल उपयोग में आता नहीं है? रास्ता वही, दफ्तर वही, वही लोग, वही राजनीति, वही व्यवसाय, वही तौर-तरीके। हाँ, दिल्ली में कुछ ठंड अवश्य बढ़ गई है। यदि नववर्ष उसका श्रेय लेना चाहे तो में दे सकता हूँ। उत्साह में, साथियों के प्रभाव में और स्वयं को बहलाने के लिए किए गए नव-वर्ष-संकल्प अब दिनांक परिवर्तन के साथ ही धुआँ-धुआँ होने लगे हैं जिसके कारण वातावरण में धुंध का प्रकोप भी बढ़ गया। उफ़्फ़्! न लोग इतने प्रपंच करते, और न ही ट्रेन और हवाई यात्राएं प्रभावित होतीं।
 
साहब, यह मनुष्य प्रजाति के जीव हैं, अपनी आदतें इतनी आसानी से नहीं छोड़ते। ये तभी बदलेंगे, जब हमारे पूर्वज वानर गुलाटी मारना बंद कर देंगे। पूरी सरकार बदलने से व्यवस्था नहीं बदली, नोटबंदी से भ्रष्टाचार नहीं बदला, स्वच्छ सर्वेक्षण से शहरों की सूरत नहीं बदली, मंदिर-मंदिर जाने से सरकार नहीं बदली, ट्रंप के ट्वीट से पाकिस्तान की नीयत नहीं बदली, किम जोंग की धमकी से ट्रंप के तेवर नहीं बदले, राज्यसभा के लिए तमाम उठापटक के बावजूद कुमार की किस्मत नहीं बदली, महाराष्ट्र की जातीय हिंसा बताती है कि आम चुनाव में लड़ने के लिए की जाने वाली तैयारी नहीं बदली। यहाँ तक कि मेरे व्यंग्य लेखों के तंज़ भी नहीं बदले, क्या बदल गया? कुछ भी तो नहीं।
 
यह एकता कपूर के सीरियलों की अनगिनत कड़ियों की भांति है। हर बार लगता है, कुछ नया आएगा, पर कथा भी वही होती है, कथानक भी, चरित्र भी वही और चरित्रहीन भी वही। नववर्ष आपके जीवन में मात्र क्रमश: है। हाँ, पर यही एक दिन होता है, जब समस्त कालखंडों में पूरी दुनिया की आबादी एक साथ नववर्ष के स्वागत के लिए उन्मादित और उत्साहित होती है, जो अपने आप में एक अनूठी घटना है। किसी अन्य विषय पर समूची दुनिया का एकसाथ आना संभव नहीं हुआ है, न भविष्य में होने की संभावना है। इस एक आशावादी कारण के लिए आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं। ॥इति॥
 
(लेखक मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में श्वास रोग विभाग में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

डर तो कायम हुआ, सजा नाकाफी है