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आईए ,कभी गधा बन कर देखिए

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श्याम यादव
राजनीति में अब गधे भी शामिल हो गए। अरे आप गलत समझ रहे हैं, मैं वो नहीं कह रहा हूं जो आप समझ रहे हैं। खैर मर्जी आपकी, जो समझना है समझ लीजिए। मैंने तो वही कहा जो आपके साथ सबने सुना। यानी बात गधे के प्रचार की है, अब बेचारा गधा खुद तो अपना प्रचार कर नहीं सकता। उसको न तो इंसान की तरह शब्दों की जादूगरी आती है और न आदमी की तरह चिकनी चुपड़ी बातें करना। उसके पास तो अपना राग अलाप ही है। सूखी घास खाने वाले गधे के पास पसीना बहाने के अलावा के सावन में भले ही हरी घास के दर्शन का ही मौका मिलता हो, प्रचार का सुनहरा अवसर नही।

मैं किसी गधा पच्चीसी की बात नहीं कर रहा, गधा अभी तक न घर का न घाट का कि कहावतों तक ही सीमित रहता यदि उसे हिंदी साहित्य में शामिल न किया गया होता। एक गधे की आत्मकथा नहीं आती तो गधा, गधा ही रहता। गधे की उपमा स्कूल से मिलती रही है। बचपन में कई बार हम सबको गधे की उपमा मिलती रही है। गधा तो बस नाम ही है जनाब नाम में क्या रखा है। यूं ही थोड़े कहा गया है, गधा नाम जरुर है पर गधा है बड़े काम का। गधे की कीमत तुम क्या जानो शहरी बाबू...। कीमत जानना है तो गांव में जाकर देखो। गधा, गधा नहीं है। गधा स्वामीभक्त की बड़ी मिसाल है। आज के जमाने में भी जब कोई किसी का सगा नहीं है, तब भी गधा मालिक का ही है। मालिक के डंडे खाकर वो ढेंचू-ढेंचू चिल्ला लेगा, मगर आएगा मालिक के घर ही। मालिक चाहे छोड़ दे, मगर मर्जी गधे की नहीं होती। जितना चाहे उस पर उतना लाद दो। अब तक समझ से परे है कि गधा है इसलिए लदा है या लदा रहता है इसलिए गधा है।
 
गधे को लेकर तमाम किवदंतिया हो सकती हैं, मगर गधा खुश रहता है कि उसके तुलना में आदमी को भी गधा कहा जाता है, यह मनुष्य रूपी गधे अनेक स्वरूप में पाए जाते हैं। गधा इंसान से दुखी है, कारण उसका चारा अब राजनीति के घोटाले में शामिल हो गया। वहां तक तो ठीक था मगर अब उसे राजनीति में घसीटा जा रहा है। उसके लिए जो लोग प्रचार कर रहे है उन्हें प्रचार न करने के लिए कहा जा रहा है। आदि काल से इंसान की इतनी सेवा करने के बाद यदि थोड़ा प्रचार इंसान गधे का भी कर दे तो उस पर भी आपत्ति।

गधे, गधे जरूर है मगर समझते सब हैं जनाब। इंसान के साथ-साथ रहते-रहते गधा भी अब इंसान में तब्दील हो गया। शरीर रूप में न सही, मगर गधे के रूप में ही इंसान गधा हो गया। इस बात पर गहन अध्ययन किया जा सकता है कि किसने किसका रूप अख्तियार किया है। हां गधा ढेंचू-ढेंचू चिल्लाने के अलावा अपनी एक और खासियत रखता है जो उसका पेटेंट था दुलत्ती मारने का। जब गधा नाराज हो जाता है तो वह अपने इस   ब्रम्ह अस्त्र को चला ही लेता है। फिर उसके पीछे उसका मालिक ही क्यों न हो। बदलते युग में उसके उसका यही हथियार बचा है जो उससे नहीं छीना जा सका । इंसान होना आसान है, गधा होना बड़ा मुश्किल। यकीन नहीं आए तो कभी गधा बन कर देखिए?
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