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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हिजाब मामला : इमां मुझे रोके है...

हिजाब मामला :  इमां मुझे रोके है...
राज मिश्रा  
 
लेस या कहें फ़ीते अच्छी तरह कस कर जब तैयार हों तो एक विशिष्ट सक्रियता महसूस होती है। जूते आपके शरीर का ही हिस्सा महसूस होने लगते हैं। जयपुर में नौकरी के दौरान आलम यह था कि सुबह नौ बजे कसे गए तस्मे रात 11 के बाद ही खुलते थे।
 
गांधीनगर में रहते हों तो जवाहर कला केंद्र के कॉफी हाउस से बेहतर नाश्ता कहाँ मिल सकता है। ऐसे ही किसी दिन जब पारा शून्य तक जाने की जिद पर था यही शेड्यूल लेकर निकले कि 2 बजे दफ़्तर पहुंचने से पहले रोज़ की तरह कुछ हिस्से तो पैदल नाप लिए जाएं।
 
सफेद झक्क ड्रेस वाला वड़ा किचन से टेबल तक लाए तब तक सांभर ठंडा हो चुका था और खाते तक तो गार। वॉल के अंदर का शहर रोज़ कोई नया राजस्थानी मीनू सजा कर बाट जोहता इसलिए जल्दी ही फिर निकल पड़े। 
 
यूनिवर्सिटी कैंपस ऊंघ ही रहा था लेकिन उसके सामने यानी सीधे हाथ पर हरे बगीचों के बीच शफ्फ़ाक़ बिड़ला मंदिर जाग चुका था। तय पाया कि आज ही इस खूबसूरती का कोर्स पूरा कर लिया जाए। ज़ेबरा लाइन पार की और मंदिर कैंपस के अंदर। चार कदम आगे बढ़े तो वह जगह जहां जूते का स्टैंड बना हुआ था बिना किसी तर्क कुतर्क के जूते उतारे और मोजे भी। इसके बाद ज्यों ही पहला कदम उस मरमरी इमारत के फ़र्श पर रखा दिमाग तक के तंतु झनझना गए। संगमरमर इस कदर ठंडा होता है कि बस। 
 
मुझे दो ही विकल्प नज़र आ रहे थे कि या तो फिर फ़ीते बांधे जाएं या इसी तरह आगे बढ़ें। तब तो दूसरा विकल्प चुन लिया लेकिन अब जाकर लगा कि एक और विकल्प था। मुझे जूते सहित ही आगे जाने की जिद करनी थी यूँ तो कोई चौकीदार या पुजारी रोकने को नहीं थे लेकिन हों भी तो जिद से कौन रोक सकता है? आखिर मौलिक अधिकार भी कोई बला है और उसके आगे नियमों, कायदों या सम्मान देने की आदत की क्या बिसात? 
 
अब तक यही होता था कि गुरुद्वारा गए तो सिर पर कपड़ा लेना ही है या अज्ञारी में जाएं तो उनके नियम मानते हुए दूर ही खड़े रहे। लगता था कि सम्मान देना, बनाए गए नियम मानना कर्तव्य हैं। अधिकार वाली बात दिमाग मे घुसी ही नहीं थी। आखिर स्कूल के कायदे क्यों माने जाएं और कॉलेज तो हैं ही नियमों को धता बताने के लिए। 
 
अब हर बात पर सवाल उठाइए हर बात से विरोध के स्वर खड़े करिए। इस पूरे सिस्टम को कटघरे में लाइए और फिर कहिए कि अब दुनिया नए कायदे से चले। परीक्षा में प्रश्न पृथ्वी की गोलाई का आए तो जवाब में बताइए कि मदरसे में चपटी धरती रटाई गई है। स्कूलों से गोल ग्लोब निकाल फेंकिए। फ़ीते जूते के हों या दिमाग के, जब आप खोल कर पैर बाहर निकालेंगे तो दिमाग तक हकीकत का एक झटका लगेगा और यदि यह कबूल कर लिया तो संगमरमरी फ़र्श के शफ्फ़ाक़ दालान आपके लिए हैं।
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