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कौन तय करेगा लड़कियां क्या पहनेंगी?

कौन तय करेगा लड़कियां क्या पहनेंगी?
, गुरुवार, 2 मई 2019 (11:58 IST)
एक तरफ बुरकिनी और हिजाब वाली मॉडल के लिए मैग्जीन 'स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड' तारीफें बटोर रही है, तो दूसरी ओर हिजाब वाली हुडी पर बवाल मचा है। आखिर कौन तय करेगा कि लड़कियों को क्या पहनना चाहिए।
 
 
महिलाएं कब क्या पहनें यह अकसर चर्चा का विषय बना रहता है। भारत में लड़कियों के कपड़ों को उनके शोषण के लिए जिम्मेदार ठहराने वाले बयानों की कोई कमी नहीं है। क्या सही है, इस पर हर देश, हर समुदाय की अपनी ही राय है। फिर चाहे लड़कियों की मर्जी कुछ भी हो। उससे क्या फर्क पड़ता है? कहीं तन ना ढंकने पर विवाद हो जाता है, तो कहीं उसे ढंक लेने पर।
 
फ्रांस में स्पोर्ट्स का सामान बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक डेकाथलॉन को लोगों के अपशब्दों का सामना इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि वह हिजाब के स्टाइल वाली हुडी बाजार में ले आई। "हिजाब दे रनिंग" यानी दौड़ते वक्त काम में आने वाला हिजाब फ्रांस के लोगों को पसंद नहीं आया। देश हिजाब, नकाब, बुरके और किसी भी तरह के धार्मिक पहनावे के खिलाफ है। इस पर वहां कानून भी है। लेकिन फ्रांस का कानून चेहरा छिपाने पर प्रतिबंध लगाता है। सिर ढंकने पर रोक सिर्फ उन लोगों को है जो सरकारी नौकरियों में हैं। ये लोग भी अपने निजी समय में चाहें तो सिर ढंक सकते हैं। पर ये तो हुई नियम कायदों की बात। समाज की सोच नियम कायदों से बंधी नहीं होती।
 
सोशल मीडिया पर इस हिजाब की खूब आलोचना हुई। ना केवल जनता, बल्कि नेताओं ने भी बढ़ चढ़कर इसका विरोध किया। पार्टियों की विचारधाराएं एक दूसरे से कितनी भी अलग क्यों ना हों लेकिन इस मुद्दे पर लगभग सभी नेता एक ही सुर अलापते दिखे। आखिरकार कंपनी को बाजार से हिजाब हटाना पड़ा। कंपनी ने अपने बयान में कहा कि उसे अपने स्टाफ की सुरक्षा की चिंता है और इसलिए यह फैसला लिया गया है।
 
इसके बाद फ्रांस की न्याय मंत्री निकोल बेलोबे को माफी भी मांगनी पड़ी। एक रेडियो शो में इंटरव्यू देते हुए उन्होंने कहा, "इस मामले पर बहस पागलपन की हद तक पहुंच गई और मुझे इसका खेद है।" उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से कंपनियों को स्पोर्ट्स हिजाब बेचने की पूरी छूट है। अब डेकाथलॉन सिर्फ अपनी वेबसाइट पर इसे बेच रही है, क्योंकि वहां स्टाफ पर हमले का खतरा नहीं है। वैसे फ्रांस के लोग शायद इस बात से अनजान हैं कि डेकाथलॉन पहली कंपनी नहीं है जो स्पोर्ट्स हिजाब बेचती है। नाइकी की फ्रेंच वेबसाइट पर भी इसे 30 यूरो में खरीदा जा सकता है और लड़कियां तीन रंगों में से अपने पसंदीदा रंग का "रनिंग हिजाब" चुन सकती हैं।
 
बहरहाल फ्रांस में यह इस तरह का पहला मामला नहीं है। 2016 में वहां बुरकिनी पर बवाल मचा था। बुरके और बिकिनी का मिलाजुला रूप बुरकिनी एक ऐसा स्विमिंग कॉस्ट्यूम होता है जिसमें हाथों, पैरों और चेहरे के अलावा तन का कोई हिस्सा एक्सपोज नहीं होता। इसे जहां एक तरफ मुस्लिम लड़कियों के लिए पुरुषों के बराबर आने और स्विमिंग पूल में उतरने के एक अच्छे मौके के रूप में देखा जाता है, तो वहीं फ्रांस जैसे कुछ देशों में इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का हनन बताया जाता है।
 
इसके विपरीत अमेरिका की मैगजीन "स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड" इसलिए चर्चा में है कि पहली बार उसमें बुरकिनी पहने किसी मॉडल की तस्वीर छपने जा रही है। 1964 से यह पत्रिका हर साल एक "स्विमसूट इशू" निकालती रही है। इस सालाना संस्करण में स्विमिंग कॉस्ट्यूम और बिकिनी के नए नए ट्रेंड दिखाए जाते हैं। पिछले कुछ दशकों से यह मैगजीन बिकिनी के डिजाइन के लिए कम और अर्ध नग्न मॉडलों की तस्वीरों के लिए ज्यादा चर्चित रही है। लेकिन अब इस पत्रिका के 55 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि ऊपर से नीचे तक पूरी तरह ढंकी हुई एक मॉडल की तस्वीर इसमें छपने जा रही है।
 
21 साल की सोमाली मूल की अमेरिकी मॉडल हलीमा एडेन 2019 के संस्करण में बुरकिनी और हिजाब में नजर आएंगी। हलीमा वही मॉडल है जिसने 19 साल की उम्र में अमेरिका की मिस मिनेसोटा प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था और दुनिया ने पहली बार इस शो में किसी लड़की को हिजाब पहने देखा था। हलीमा प्रतियोगिता जीत तो नहीं पाईं थीं लेकिन सेमिफाइनल तक जरूर पहुंची थीं। इसके बाद हलीमा की तस्वीर ब्रिटेन की मशहूर मैगजीन "वोग" के कवर पर छपी और वह न्यूयॉर्क फैशन वीक में हिजाब पहने कैटवॉक करती भी नजर आईं।
 
हलीमा का जन्म केनिया के एक रिफ्यूजी कैंप में हुआ था और सात साल की उम्र में वह अमेरिका आई थीं। स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्हें यह कहते हुए देखा जा सकता है कि अमेरिका में बड़े होने के दौरान उन्हें कभी नहीं लगा कि कोई उनका प्रतिनिधित्व कर रहा है क्योंकि उन्होंने कभी किसी मैगजीन में हिजाब पहने लड़कियों की तस्वीर नहीं देखी। आज हलीमा फैशन जगत में बदलाव का एक ऐसा प्रतीक बन गई हैं जिसकी शायद फ्रांस कल्पना भी नहीं कर सकता और अगर करे तो शायद वह उसे एक बुरे सपने का नाम दे देगा। वैसे जॉगिंग के दौरान जैकेट में लगी हुडी से सिर ढंकने पर फ्रांस के लोग आहत नहीं होते।
 
लड़कियां खेल कूद के दौरान क्या पहनेंगी, यह महज एक निजी सवाल तो कभी रहा ही नहीं। कहीं इस पर राजनीति होती है, तो कहीं कंपनियां अपने आर्थिक फायदे के लिए कभी बिकिनी और कभी बुरकिनी का प्रचार करती हैं। बाजार मुनाफे पर चलता है, नैतिकता पर नहीं। ऐसे में लड़कियों को सरकारों और बाजारों पर निर्भर ना रहते हुए, यह फैसला अपने ही हाथों में लेना होगा क्योंकि उनके अलावा और किसी को यह तय करने का हक नहीं है कि वे कब क्या पहनेंगी।
 
रिपोर्ट ईशा भाटिया सानन
 

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