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सबसे ज्यादा बारिश वाले मेघालय में भी पानी की किल्लत

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DW

, रविवार, 5 मई 2024 (08:11 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
पूर्वोत्तर भारत के पर्वतीय राज्य मेघालय के लू की चपेट में आने के कारण राज्य में पीने के पानी की भारी किल्लत हो गई है। यह हाल तब है जब दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह सोहरा इसी राज्य में है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल की अंधाधुंध कटाई और बारिश के पानी के संरक्षण की नीति सही ढंग से लागू नहीं होने के कारण ही राज्य को इस संकट का सामना करना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल असर ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है।
 
मेघालय बीते कई दिनों से लू की चपेट में हैं। राज्य के कई इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। खासकर राजधानी शिलांग और दूसरे सबसे बड़े शहर तूरा में ज्यादातर झरनों और झीलों के सूख जाने के कारण पीने के पानी की समस्या गंभीर हो गई है।  इस समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने बुधवार को एक उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई थी। 
 
भूजल में भारी कमी
राज्य के पीएचई मंत्री मारक्यूस एन। मराक ने बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा था कि भूजल का स्तर तेजी से घट रहा है और झरनों और झीलों जैसे प्राकृतिक संसाधन सूख रहे हैं। अकेले तूरा में पानी का स्तर 20 फीसदी कम हो गया है। उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह समस्या ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। ऐसे में हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। अगर एक महीने के भीतर बारिश नहीं हुई तो परिस्थिति बेहद गंभीर हो जाएगी।"
 
राज्य सरकार ने मौजूदा संकट को ध्यान में रखते हुए लोगों से जल संरक्षण के उपायों को गंभीरता से लागू करने की अपील की है। पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग (पीएचई) के चीफ इंजीनियर बी।एम। लिंडेम ने डीडब्ल्यू को बताया, "गर्मी और दूसरे कई कारणों से शिलांग को पानी की सप्लाई करने वाले उमिया नदी के बांध का जलस्तर काफी कम हो गया है। इसके उद्गम स्थल पर पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई और ऊपरी इलाकों में पत्थर की खदानों की कारण स्थिति गंभीर हो गई है।"
 
वेस्ट गारो हिल्स के जिला प्रशासक ने तो पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए तूरा नगरपालिका में धारा 144 के तहत कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। फिलहाल यह पाबंदियां 15 मई तक लागू रहेंगी। इसके तहत लोगों से सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही गाड़ियों की धुलाई करने को कहा गया है। प्रशासन लोगों से पानी का सोच-समझ कर इस्तेमाल करने की अपील कर रहा है। कई जगहों पर पानी की सप्लाई दिन में सिर्फ दो बार ही की जा रही है। कुछ इलाकों में तो टैंकर से पानी की सप्लाई देने की भी नौबत आ गई है।
 
लगातार घटती बारिश
मेघालय में मौसम विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, "अप्रैल के दौरान बीते साल के मुकाबले बहुत कम बारिश हुई। मई की शुरुआत में भी यही स्थिति है। इस दौरान औसत साप्ताहिक बारिश की मात्रा 8।5 मिलीमीटर रही जबकि अप्रैल के महीने में साप्ताहिक 81।6 मिलीमीटर बारिश को सामान्य माना जाता है।"
 
मेघालय के रिसर्चर और पर्यावरण कार्यकर्ता बानियातेलंग मजाव के हालिया रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में बीते पांच वर्षों के दौरान बारिश की मात्रा में 15 फीसदी तक की कमी आई है। उनका कहना है कि मौजूदा परिस्थिति के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन के अलावा पेड़ों की कटाई और जल प्रबंधन उपायों को ठीक से लागू नहीं करना शामिल हैं।
 
दुनिया भर में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह सोहरा में भी पानी की किल्लत होने लगी है। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 1861 में पूरे साल के दौरान 22,987 मिलीमीटर बारिश के साथ इसने दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश का रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन अब यहां बारिश की मात्रा आधी से भी ज्यादा घट कर 11,359।4 मिलीमीटर रह गई है।
 
बिजली विभाग ने चेतावनी दी है कि जलस्तर में तेजी से गिरावट के कारण उमियाम पनबिजली परियोजना के भी बंद होने का खतरा पैदा हो गया है। इसी बिजली घर से राजधानी शिलांग में बिजली की सप्लाई होती है।
 
जलनीति पर ईमानदारी से पालन नहीं हुआ
मेघालय देश का पहला राज्य है, जिसने वर्ष 2019 में जल नीति तैयार की थी। उसके तहत तमाम इमारतों में छतों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी बारिश के पानी के संरक्षण की बात कही गई थी। इस नीति को कड़ाई से लागू किया जाना था। हालांकि राजनेताओं की मिलीभगत से अब भी सैकड़ों की तादाद में ऐसी इमारतें बन रही हैं जहां इस नीति की अनदेखी की गई है।
 
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2021 के मुताबिक, वर्ष 2019 से 2021 के बीच राज्य में 73 वर्ग किलोमीटर जंगल साफ कर दिए गए। उसके बाद का आंकड़ा फिलहाल उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट में पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक आपदा और विकास मूलक गतिविधियों को इसका प्रमुख कारण बताया गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से साफ होते जंगल और कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन के कारण इलाके की जलवायु पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस समस्या के और गंभीर होने का अंदेशा बना हुआ है।

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