दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित लोधी गार्डन वैसे तो पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है लेकिन हाल के दिनों में प्रकृति से जुड़े लोगों के लिए यह चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां पेड़ों पर लगे क्यूआर कोड सबका ध्यान खींच रहे हैं।
आमतौर पर देशी-विदेशी पर्यटक लोधी गार्डन में मोहम्मद शाह का मकबरा, सिकंदर लोधी का मकबरा, शीश गुंबद और बड़ा गुबंद जैसी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की संरक्षित इमारतें देखने आते हैं। इसके अलावा लोग यहां सुबह और शाम की सैर के लिए भी आते हैं। यहां आने की वजह इसकी हरियाली है। लेकिन इन दिनों यह गार्डन एक खास वजह से भी लोगों को आकर्षित कर रहा है।
22 साल के विशाल पहली बार दिल्ली के लोधी गार्डन आए हैं, वनस्पतिशास्त्र के छात्र विशाल को प्रकृति में काफी दिलचस्पी है। वह कहते हैं, "मैं पहली बार लोधी गार्डन आया हूं, पढ़ाई के कारण मेरी दिलचस्पी वनस्पति में रहती है लेकिन जब हम किसी पार्क या जंगली इलाकों में जाते हैं तो वहां लगे पेड़ों के बारे में अधिक नहीं जान पाते।”
विशाल अपनी जेब से स्मार्टफोन निकालकर पेड़ों पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन पर उसकी पूरी जानकारी हासिल कर उसे अपनी नोटबुक में लिख रहे हैं। लोधी गार्डन में लगे पेड़ों से जुड़ी जानकारी जैसे पेड़ों की प्रजाति, उम्र, बॉटेनिकल नाम, प्रचलित नाम, पेड़ों पर फूल खिलने का मौसम, फल आने का मौसम, चिकित्सा और अन्य इस्तेमाल से जुड़ी जानकारी पल भर में हासिल हो जाएगी।
90 एकड़ में फैले इस विशाल पार्क में हजारों पेड़ हैं लेकिन फिलहाल नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) ने 100 पेड़ों पर ही क्विक रिस्पांस यानी क्यूआर कोड लगाए हैं।
विशाल ने अबतक 15 से 20 पेड़ों की जानकारी मोबाइल के जरिए इकट्ठा कर ली है, जिससे वह उत्साहित हैं। वह कहते हैं, "क्लासरूम या प्रयोगशाला से बेहतर है कि हम प्रकृति के बीच आए और सालों पुराने पेड़ों के बारे में जाने। आमतौर पर पेड़ को देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता की उसकी उम्र कितनी है या फिर उस पर किस मौसम में फल या फूल आते हैं लेकिन इस क्यूआर कोड से हमें मिनटों में ही सारी जानकारी मिल जाती है। हां, एक बात जरूर आपके मोबाइल में इसके लिए इंटरनेट होना जरूरी है।”
शुरुआत में नई दिल्ली नगर परिषद ने एक सौ पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए हैं। आने वाले दिनों में इसकी संख्या बढ़ाई जा सकती है। परिषद के अधिकारियों के मुताबिक जिन पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए गए हैं उनमें से कई पेड़ों की उम्र सौ साल से अधिक है।
अधिकारियों का कहना है कि क्यूआर कोड लगने की वजह से रोजाना सैर करने वालों के साथ-साथ पर्यटकों में भी पेड़ों के प्रति जागरुकता बढ़ी है। अधिकारियों का कहना है कि आम तौर पर क्विक रिस्पांस कोड का इस्तेमाल विभिन्न उत्पादों पर होता आया है लेकिन यह पहला मौका है जब क्यूआर कोड को किसी गार्डन के पेड़ों पर लगाया गया है।
अमेरिका और जापान जैसे देशों में पेड़ों पर क्यूआर कोड या माइक्रो चिप लगाया जाता आया है। लेकिन इस तरह का प्रयोग पहली बार भारत में हुआ है।
पिछले तीन साल से लगातार लोधी गार्डन आने वाले दीपक कहते हैं कि इस गार्डन में मौजूद पेड़ बहुत गुणकारी हैं। वह हर दोपहर कुछ घंटे इसी गार्डन में बिताते हैं। दीपक के मुताबिक, "मुझे यहां आना पसंद है। दिल्ली की हवा दिन ब दिन खराब होती जा रही है। गाड़ियों का प्रदूषण, फैक्ट्रियों का धुआं और लगातार निर्माण के कारण शहर में कुछ ही इलाके बचे हैं जहां आप बेहिचक सांस ले सकते हैं।"
वह कहते हैं, "लोधी गार्डन में कई औषधीय गुणों वाले पौधे भी हैं लेकिन आप देखकर उन्हें पहचान नहीं सकते है। लेकिन क्यूआर कोड की मदद से आप उसे स्कैन कर जानकारी पाकर उसकी छांव में स्वस्थ महसूस कर सकते हैं।” दीपक कहते हैं कि पिछले तीन साल में लगातार लोधी गार्डन आने से उनके अंदर सकारात्मक बदलाव आया है।
लोधी गार्डन में एक जड़ी-बूटी उद्यान, बांस का एक बाग, बॉन्साई गार्डन, तितलियों के लिए विशेष स्थान, कमल का तालाब, मोर का प्रजनन केंद्र और कई संरक्षित इमारतें हैं।