Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

परंपरागत खाने को बचाने की कोशिश

Webdunia
बुधवार, 3 अक्टूबर 2018 (13:02 IST)
ऑस्ट्रिया में नोआ का आर्क संगठन है, लेकिन ये आधुनिक आर्चे नोवा बाइबिल के आर्चे नोवा के विपरीत जानवरों को नहीं बल्कि पौधों को बचा रहा है। इसके 13,000 सदस्य लुप्त होने के कगार पर खड़े पौधों की खेती कर रहे हैं।
 
 
अनोखे और पुराने पौधे
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना से एक घंटे की दूरी पर खूबसूरत सा गांव शिल्टर्न है। यहां आर्चे नोआ संगठन ने एक बगीचा बनाने का फैसला किया जहां लोग परंपरागत फल सब्जियों का आनंद ले सकें और उनका स्वाद चख सकें। इसका मकसद जैविक विविधता का संरक्षण है।
 
 
लाल सफेद धारियां
पिछले दशकों में वैश्वीकरण और खेती के औद्योगीकरण के कारण पौधों की विविधता में कमी आी है। पौध संरक्षण संगठन आर्चे नोआ के अनुसार 75 फीसदी पुरानी फसलें खो चुकी हैं। ये गहरे लाल रंग का चुकंदर पुराने चुकंदर का वंशज है जिसकी खेती 8वीं शताब्दी से हो रही है।
 
 
रूसी खीरा
सबसे बड़े खतरों में एकाधिकारवादी बीज कंपनियों का बढ़ता प्रभाव और जीन तकनीक है। ये रूसी खीरा यूरोप में सबसे पहले 19वीं सदी में आया था। पकने पर यह भूरा हो जाता है और इसी त्वचा फटने लगती है। इसका पौधा जाड़ों में भी जिंदा रहता है और सामान्य तापमान पर फल देता है।
 
 
पौधों के साथ रिश्ता
उपभोक्ताओं को पौधों की विविधता से परिचित करना आर्चे नोआ के लक्ष्यों में शामिल है। इसके लिए संगठन के किचन में खास खाने भी तैयार किए जाते हैं। रंग बिरंगे फूलों वाली ये डाली परंपरागत पौधों के बगीचे की संभावनाओं को दिखाती है। सिर्फ खाना ही नहीं फूलों से घरों को सजाया भी जा सकता है।
 
 
भूली बिसरी यादें
तौर पर उपजाया और खाया जाता था। चीनी का पौधा प्राचीन काल से ही जाना माना है और पुनर्जागरण काल में लोकप्रिय आहार हुआ करता था। यूरोप में बाद में चलकर 16वीं शताब्दी में ज्यादा फसल देने वाले आलू ने इसकी जगह ले ली। अब इसे खाने के शौकीन ही खाते हैं।
 
 
लोकप्रिय बनाने की कोशिश
छोटे स्तर पर खेती बाड़ी का चलन कम होता जा रहा है। इसलिए आर्चे नोआ के सदस्य सिर्फ पुराने बीजों को बचाना ही नहीं चाहते, बल्कि उन्हें और विकसित भी करना चाहते हैं। इस बैर्नस्टाइन चुकंदर के बाहरी लुक को बचाए रखकर उसकी मिठास और स्वाद को बेहतर बनाया गया है।
 
 
खाद्य संरक्षण
ये लत्तीदार वनस्पति यूरोप और दक्षिण पश्चिम एशिया के पहाड़ों से आता है। रोमन काल से इसे हर्बा रोमाना के रूप में उपजाया जाता रहा है। इसके पत्ते विटामिन सी से भरपूर होते हैं और इनका खाने की सीजनिंग में इस्तेमाल होता है। पौध संरंक्षकों का मानना है कि विविधता पौधों को बीमारी से भी बचाती है।
 

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

CM मोहन यादव बोले- आदिवासियों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में रोचक होगा मुकाबला, आदित्य ठाकरे के खिलाफ मिलिंद देवड़ा मैदान में

हैदराबाद में पटाखा दुकान में भीषण आग, कई वाहन जलकर खाक, मची अफरातफरी

આગળનો લેખ
Show comments