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आ गया कपड़ों का पावर हाउस

आ गया कपड़ों का पावर हाउस
, शनिवार, 26 अगस्त 2017 (12:46 IST)
एक नए हाई टेक रेशे की खोज हुई है जो खींचने या फिर मोड़ने पर बिजली पैदा कर सकता है। रिसर्चरों का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर भविष्य में समंदर की लहरों से भी शहर रोशन करने लायक बिजली पैदा होगी।
 
वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल का कहना है कि उन्होने एक ऐसा लचीला रेशा बनाने में कामयाबी पायी है जो कार्बन नैनोट्यूब से बना है। इन बेहद छोटे छोटे कार्बन कणों का आकार इंसान के बाल की तुलना में 10 हजार गुना छोटा है। यह कई प्राकृतिक स्रोतों से बिजली पैदा करने में सक्षम है। यह सागर की लहरों और इंसानी गतिविधियों का इस्तेमाल कर ऊर्जा पैदा करता है। साइंस जर्नल में छपी स्टडी के प्रमुख लेखक कार्टर हाइन्स का कहना है, "ट्विस्ट्रॉन हार्वेस्टर्स के बारे में आसानी से आप इस तरह सोच सकते हैं कि आपके पास एक रेशा है। आप इसे खींचते हैं और इसमें से बिजली निकलती है।"
 
जर्नल के मुताबिक नैनोट्यूब क्षमता का उपयोग करके उपकरण स्प्रिंग जैसी गति को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है। इसे कई जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लैब में टेस्ट के दौरान एक मक्खी से भी कम वजनी रेशे ने छोटी सी एलईडी लाइट जलाने लायक ऊर्जा पैदा की।
 
जब इन्हें टीशर्ट में लगाया गया तो यह सांसों की गति के साथ सीने के उठने और बैठने का इस्तेमाल कर ब्रीदिंग सेंसर चलाने लायक ऊर्जा पैदा करने में कामयाब रहा। ब्रीदिंग सेंसर का इस्तेमाल बच्चों पर निगरानी रखने में किया जाता है। डैलस की टेक्सस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रे बाउमन इस रिसर्च में भी शामिल थे। उनका कहना है कि इन रेशों का इस्तेमाल इंटरनेट से जुड़े रहने वाले स्मार्ट कपड़ों को बनाने में किया जा सकता है।
 
उन्होंने कहा, "इलेक्ट्रॉनिक कपड़ों में व्यापार जगत की गहरी दिलचस्पी है लेकिन आप उन्हें ऊर्जा कैसे देंगे। इंसान की गति से विद्युत ऊर्जा पैदा करने से बैटरी की जरूरत खत्म हो जाएगी।" हालांकि ट्विस्ट्रॉन का सबसे शानदार गुण है समंदर के पानी में काम करना और सागर की लहरों से भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा करना। दक्षिण कोरिया में हुए परीक्षण के दौरान देखा गया कि एक छोटा सा ट्विस्ट्रॉन जब एक डूबने उतराने वाली चीज के बीच में लगाया गया, तो हर लहर के साथ रेशे खिंचने पर उसने बिजली पैदा की।
 
बाउमन का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में समुद्री बिजली घरों को बनाने में किया जा सकता है और तब यह पूरे शहर को रोशन करने लायक बिजली भी पैदा कर सकता है। हालांकि फिलहाल यह तकनीक काफी महंगी है। पेरिस जलवायु समझौते के तहत अमीर और गरीब देशों ने ग्रीन हाउस गैसों की भारी मात्रा में कटौती की कसम खायी है। आमतौर पर ये गैस जीवाश्म ईंधन को जलाने से पैदा होती हैं और वैज्ञानिक इन्हें धरती के बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार मानते है। ट्विस्ट्रॉन इंसानों की जीवाश्म ईंधन पर से निर्भरता कम कर सकता है।
 
- एनआर/आरपी (रॉयटर्स) 

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