Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

रसभरी और बिजली एक साथ एक ही खेत में

रसभरी और बिजली एक साथ एक ही खेत में

DW

, शुक्रवार, 15 जुलाई 2022 (08:13 IST)
पीट एल्बर के खेतों में हर कोई खुश है। उनके खेत में रसभरी के पौधे बड़े आराम से सोलर पैनलों की छाया में पनपते हैं। साथ ही ये खेत ऊर्जा कंपनी बायवा को स्वच्छ बिजली की सप्लाई भी देते हैं, जिनसे 1,200 घरों को ऊर्जा मिलती है।
 
यूरोप में और खासकर नीदरलैंड्स में सौर ऊर्जा उद्योग के सामने एक बड़ी पहेली है। यूरोपीय देशों ने पर्यावरण और ऊर्जा को लेकर जो लक्ष्य तय किए हैं, उनकी मांग बड़ी है। सोलर पैनलों को लगाने की उचित जगह और उसके लिए स्थानीय लोगों को तैयार करने की समस्या सबसे बड़ी है। जर्मन कंपनी बायवा की डच सब्सिडियरी ग्रोयेनलेवेन के मार्टेन डे ग्रूट कहते हैं, "हम हर तरफ जगह की तलाश कर रहे हैं।" अब वे उन जगहों पर ध्यान दे रहे हैं, जहां सोलर पैनल दोहरा काम कर सकें।
 
पौधों के ऊपर सोलर पैनल
एल्बर के मामले में फोटोवोल्टाइक पैनलों को जमीन से तीन मीटर यानी करीब 10 फीट की ऊंचाई पर लगाया गया है। ये पैनल हरित बिजली पैदा करने के साथ ही रसभरी की उनकी अनमोल फसलों को धूप से भी बचाते हैं। डे ग्रूट ने बताया, "हमने देखा कि गर्मियों का मौसम लंबा होता जा रहा है और कई बार फल जल जाते हैं। ये जंगली फल हैं। सूरज की सीधी रोशनी इनके लिए अच्छी नहीं है।"
 
एल्बर हर साल करीब 200 टन रसभरी उगाते हैं। बायवा उन्हें कोई किराया नहीं दे रही हैं, लेकिन पिछले तीन सालों में उन्हें इन पैनलों से दूसरे कई फायदे हुए हैं। तापमान पहले से ज्यादा स्थिर है। 25 फीसदी कम सिंचाई से काम चल रहा है। आंधियों से सुरक्षा है और साथ ही पॉलिटनेल प्लास्टिक की अब जरूरत नहीं रही। पॉलिटनेल, प्लास्टिक की वह शीट है, जो खुली जमीनों में पौधों को सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
 
अगले हफ्ते तापमान 37 डिग्री के पार जाने का पूर्वानुमान है, लेकिन एल्बर को कोई परवाह नहीं। वह बताते हैं, "अगर यह फल पॉलीटनेल में होता, तो मुझे 10-20 फीसदी फेंकने पड़ जाते।" हालांकि, बायवा को इसकी अतिरिक्त कीमत चुकानी पड़ती है।

डे ग्रूट बताते हैं कि पीवी पैनल का आकार मानक नहीं है। उन्हें आमतौर पर जमीन पर लगने वाले पैनलों की तुलना में थोड़ा चतुराई से बनाया गया है। ये थोड़ी कम बिजली पैदा करते हैं, क्योंकि इन्हें अर्ध-पारदर्शी रखा गया है। ऐसा इसलिए, ताकि इनसे छनकर रोशनी का कुछ हिस्सा पौधों तक भी पहुंचे।

डे ग्रूट का कहना है, "इस तरह के दोतरफा काम वाले संयंत्रों का आगे बढ़ना सरकार के सहयोग पर निर्भर करेगा।" एग्रीवोल्टाइक का विस्तार हो रहा है, लेकिन इस तरह की परियोजनाएं अक्सर जमीन पर पैनल लगाने वाले सोलर फार्मों की तुलना में छोटी होती हैं और इनसे राजस्व भी 15-25 फीसदी कम होता है।
 
पानी पर तैरते पैनल
हालांकि, बायवा इस बात पर जोर देती हैं कि ऊर्जा के उभरते समाधान कीमती ही हैं। एल्बर के खेतों से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बायावा ने 17 हेक्टेयर में एक झील पर तैरते हुए सोलर पैनल लगाए हैं। ये पैनल पानी के सतह के करीब आधे हिस्से में हैं। इन पर शुरुआत में जमीन पर लगने वाले विकल्पों की तुलना में काफी ज्यादा निवेश होता है।
 
हालांकि, इन्हें लगाना आसान है। पानी इन्हें जरूरत से ज्यादा गर्म होने से बचाता है और इसलिए इनसे ज्यादा ऊर्जा पैदा होती है। पानी के तल पर ही दर्जन भर ट्रांसफॉर्मर भी लगाए गए हैं, जो केबल से जुड़े हैं और 20,000 वोल्ट की सप्लाई एक सबस्टेशन को देते हैं, जो उन्हें 10,000 घरों तक बिजली पहुंचाते हैं। इस मामले में पावर कंपनी झील के मालिकों को किराया देने के साथ ही कार्बन मुक्त बिजली भी एक स्थिर कीमत पर दे रही है।
 
29।8 मेगावाटा का यह सोलर पीवी पार्क बायवा के मुताबिक एशिया के बाहर दूसरा सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर फार्म है। नीदरलैंड्स में यह बायवा का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इसके बाद भी हर कोई इसका कायल नहीं है।
 
एंगलर विलियम पेटर्स को पानी का तापमान बदलने की चिंता है। उन्होंने बायवा के प्रतिनिधियों से कहा, "हम मछलियों को मापते हैं। फिलहाल थोड़ा विकास हो रहा है, लेकिन हमें थर्मोक्लाइन पर पड़ने वाले असर का डर है। हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते। हम चाहते हैं कि तापमान को मापने की व्यवस्था की जाए, जिसका वादा किया गया था।" थर्मोक्लाइन पानी का वह स्तर है, जो ऊपरी गर्म सतह और गहराई पर मौजूद ठंडी सतह के बीच में है।

बायवा के प्रतिनिधियों ने उन्हें फिर से भरोसा दिलाया और पास की एक झील पर की गई स्टडी का हवाला भी दिया, जिसके तापमान में बहुत कम बदलाव हुआ है। डे ग्रूट कहते हैं, "यह एक छोटा देश है। जब आपके पास कोई प्रोजेक्ट हो, तो आपके पास हमेशा कोई पड़ोसी होता है। हमें सचमुच सोचना होगा कि जगह का इस्तेमाल कैसे करना है।"
 
एनआर/एमजे (एएफपी)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

द्वारका: उस शहर की तलाश जो 'श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद समुद्र में समा गया'