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बिटकॉइन की बहार, आखिर क्या है वजह?

बिटकॉइन की बहार, आखिर क्या है वजह?

DW

, गुरुवार, 8 अप्रैल 2021 (09:30 IST)
रिपोर्ट : विनम्रता चतुर्वेदी
 
इन दिनों बिटकॉइन को लेकर चर्चा काफी तेज है। आए दिन खबर आती है कि बिटकॉइन की कीमत आसमान को छू रही है या इसे लेकर किसी बड़ी कंपनी ने कोई घोषणा की है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि बिटकॉइन के दिन फिर गए।
 
कोरोना महामारी बिटकॉइन के लिए वरदान साबित हुई है। बिटकॉइन यानी डिजिटल करेंसी है जिस पर किसी बैंक या सरकार का नियंत्रण नहीं है। पिछले एक साल में बिटकॉइन ने गजब की तरक्की दिखाई है। मार्च 2020 में बिटकॉइन की कीमत $4,000 के नीचे थी, आज करीब $60,000 है और उम्मीद जताई जा रही है कि 2021 के अंत तक कीमत $1,00,000 को छू लेगी। इस तरक्की की एक बड़ी वजह ये है कि लोग निवेश के लिए विकल्प खोज रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान वर्क फ्रॉम होम आम हो चला और अपने मोबाइल पर एक क्लिक से बिटकॉइन खरीदने-बेचने का सिलसिला शुरू हो गया। कहा गया कि जब जिदंगी ही जूम और गूगल मीट पर डिजिटल हो चुकी है, तो करेंसी डिजिटल क्यों न हो।
 
इस बदलते ट्रेंड को बड़ी टेक कंपनियों ने कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में ही पहचान लिया था। हाल ही में दुनिया के सबसे अमीर शख्स और इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने घोषणा की कि अब टेस्ला कार भी बिटकॉइन में खरीदी जा सकेगी। इसके पहले उन्होंने करीब डेढ़ अरब डॉलर का निवेश बिटकॉइन के लिए किया था। मस्क उन शख्सियतों में से रहे हैं जिन्होंने डिजिटल करेंसी का हमेशा से समर्थन किया है। तब भी जब बड़े अर्थशास्त्री और टेक कंपनियां इसके विरोध में थीं।
 
बैंकों का समर्थन
 
डिजिटल करेंसी या क्रिप्टोकरेंसी के एक अन्य समर्थक ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी हैं। उन्होंने हाल ही में अपना पहला ट्वीट एनएफटी (नॉन फंजिबल टोकन-एक किस्म की डिजिटल करेंसी) के जरिए करीब 29 लाख डॉलर में बेचा है। यही नहीं, बैंकिग सिस्टम को खुली चुनौती देने वाली डिजिटल करेंसी को अब बैंकों का ही समर्थन हासिल होने लगा है। अमेरिकी बैंक गोल्डमैन सैक्स ने पिछले दिनों घोषणा की कि वह अपने खास क्लाइंट्स को बिटकॉइन ऑफर करेगी। एक साल पहले तक ऐसा सोचना नामुमकिन था क्योंकि गोल्डमैन सैक्स का मानना था कि बिटकॉइन सिर्फ एक बुलबुला है जो जल्दी फूट जाएगा और इसे शेयर, बॉन्ड या सोने में निवेश के तौर पर न देखा जाए।
 
डिजिटल करेंसी को बड़ी टेक कंपनियों और बैंकों का समर्थन मिलना बताता है कि उन्होंने ब्लॉकचेन, यानि वह तकनीक जिस पर बिटकॉइन व अन्य डिजिटल करेंसी काम करती हैं, को समझा है। आसान भाषा में ब्लॉकचेन वह तकनीक है जिस पर डेटा सेव होता है और उससे छेड़छाड़ नामुमकिन है और इसलिए यह भरोसेमंद है। टेस्ला और ट्विटर के समर्थन ने बिटकॉइन की इमेज बदल कर रख दी है।
 
डिजिटल करेंसी की छवि
 
बिटकॉइन के ट्रांजेक्शन के वक्त क्योंकि बैंक जैसा कोई बिचौलिया नहीं होता है, इसलिए इसकी छवि हमेशा से संदेह के दायरे में रहती थी। बिटकॉइन को डार्क वेब, आतंकी गतिविधियों, ड्रग्स के लेन-देन जैसे कारनामों में भी इस्तेमाल होते देखा गया है। इसके अलावा, टैक्स को लेकर कोई एक राय न बन पाने से सरकारें इसे रेगुलेट नहीं कर पा रही हैं।
 
इसके अलावा, जो सबसे चिंताजनक बात है, वह है बिटकॉइन के निर्माण के दौरान खर्च होने वाली बिजली। जिस तरह रुपये या डॉलर के नोट को सेंट्रल बैंक ईश्यू करता है, उसी तरह बिटकॉइन को भी क्रिएट किया जाता है। इसे बिटकॉइन माइनिंग कहते हैं। बिटकॉइन माइनिंग के दौरान अलग-अलग कंप्यूटरों पर एक खास किस्म के हार्डवेयर के साथ दुनियाभर में हो रहे बिटकॉइन ट्रांजेक्शन को वेरिफाई किया जाता है। इसे करने वाले आईटी एक्सपर्ट होते हैं जो करीब 10 मिनट के अंदर मैथमैटिकल प्रॉब्लम को सुलझा कर हर लेन-देन को वेरिफाई करते हैं। इसके बदले उन्हें पैसे मिलते हैं, जो बिटकॉइन में होते हैं। इस तरह, हर बिटकॉइन के लेन-देन के वेरिफिकेशन के बाद कई अन्य बिटकॉइन पैदा होते हैं।
 
पर्यावरण को नुकसान
 
यह प्रक्रिया सुनने में जितनी दिलचस्प लगती है, हकीकत में उतनी ही खर्चीली और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली होती है। बिटकॉइन के निर्माण में एक-दो नहीं बल्कि हजारों कंप्यूटर एक साथ इस्तेमाल किए जाते हैं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के मुताबिक, बिटकॉइन माइनिंग इतनी बिजली खपाता है जितनी स्विट्ज़रलैंड एक साल में बिजली पैदा करता है।
 
क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण को लेकर मुखर लोग बिटकॉइन के पूरी थ्योरी को ही नकारते हैं। उन्हें इसका इस्तेमाल समझ नहीं आता क्योंकि दुनियाभर में अमीरी-गरीबी की खाई इतनी गहरी है और समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां तक अभी तक बिजली जैसी बुनियादी जरूरत नहीं पहुंच पाई है। पर्यावरणविदों का मानना है कि डिजिटल करेंसी को लेकर ऐसा पागलपन और एक खास तबके का बिजली का यूं लापरवाही से इस्तेमाल करना, अन्याय है। इसमें कोई हैरानी नहीं होगी अगर अगले क्लाइमेट समिट में बिटकॉइन के विरोध में नारे लगें।
 
टेस्ला और बिटकॉइन का मेल
 
लेकिन पर्यावरणविदों के इन अभियान पर टेस्ला के मालिक इलान मस्क ने पानी फेर दिया है। इलेक्ट्रिक कार बनाने वाले कंपनी टेस्ला हमेशा से ग्रीन एनर्जी की समर्थक रही है। क्रिप्टो एक्सपर्ट प्रो। डेविड येरमैक का कहना है कि आज किसी भी करोड़पति का लगाव टेस्ला कार और बिटकॉइन दोनों के लिए है और वह दोनों को रखना चाहता है। उनका मानना है कि जल्द ही बिटकॉइन को लेकर आम लोगों की धारणा और बदलेगी। बिटकॉइन माइनिंग के लिए हाइड्रो इलेक्ट्रिक या जियो थर्मल पावर का इस्तेमाल बढ़ रहा है, जो सराहनीय है।
 
इसमें कोई शक नहीं है कि बिटकॉइन जिसे भविष्य की करेंसी कहा जाता है, अब अपने ऊंचाई की ओर बढ़ चला है। इसकी कीमत में तेजी से उछाल और ढलान ही इसकी खासियत है। आने वाले दिनों में टेक कंपनियों के दखल से इसे मुख्यधारा में आने का मौका मिलेगा और यह पारंपरिक बाजार के नक्शे को बदल सकता है।

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