भारत में कोरोना के खिलाफ टीका लगवाकर प्रवासी श्रमिक काम की तलाश में अपने राज्यों से निकल रहे हैं। महामारी के दौरान कई लाख लोग बेरोजगार हो गए थे। जैसे ही स्वास्थ्य कर्मचारी ने कार्तिक बिस्वास की बांह पर कोरोना का टीका लगाया, कार्तिक ने राहत की लंबी सांस ली। कार्तिक केरल के उन लोगों में शामिल हैं जो समाज के सबसे हाशिए पर हैं- प्रवासी मजदूर। राज्य की सरकारें भारत के एक बड़े तबके को वैक्सीन देने की कोशिश में जुटी हुईं हैं जिसे प्रवासी श्रमिक के तौर पर भी जाना जाता है।
हाल के हफ्तों में दक्षिणी तटीय राज्य के अधिकारी कार्यस्थलों पर कोरोना का टीका उपलब्ध करा रहे हैं। अधिकारी कोशिश कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग टीका लें। इसके लिए टीकाकरण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, शिविर लगाए जा रहे हैं और स्थानीय भाषाओं में जन स्वास्थ्य के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। इन सब के जरिए प्रवासी श्रमिकों को वायरस से बचने करने का आग्रह किया जा रहा है।
रोजगार मिलना आसान
44 साल के बिस्वास कहते हैं कि मैं लॉकडाउन के दौरान 1 साल के लिए घर पर था और मुझे बहुत मुश्किल के बाद नौकरी मिली है। अगर मेरी तबीयत खराब होती तो मेरे परिवार का कौन ख्याल रखेगा? मैं टीका लगवाने के लिए दृढ़ था। बार-बार तालाबंदी ने उद्योग-धंधे को बंद ठप कर दिया जिससे लाखों लोगों की नौकरी चली गई जबकि मई में कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को प्रभावित किया।
काम की तलाश में लौटते प्रवासी
प्रवासी श्रमिक महामारी के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। महामारी के दौरान लाखों प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों की ओर लौट गए। वे शहरों में रहकर बिना कमाए किराए देने और खाना खरीदने में असमर्थ थे। हालांकि राज्यों द्वारा पाबंदियों में ढील के कारण अधिकांश आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो गई हैं। स्वतंत्र थिंक-टैंक के आंकड़े बताते हैं कि इसी के साथ बेरोजगारी दर धीरे-धीरे गिर रही है।
आंध्रप्रदेश में एक मल्टीप्लेक्स में काम कर चुके ताहिर हुसैन तालुकदार की नौकरी लॉकडाउन के दौरान चली गई। असम के एक गांव के रहने वाले 25 साल के तालुकदार बताते हैं कि उनके गांव में काम नहीं है और जब वे ठेकेदार को काम के लिए फोन करते हैं तो उन्हें वैक्सीन लेकर आने को कहा जाता है। तालुकदार के मुताबिक 'मुझे काम के लिए वैक्सीन चाहिए, नहीं तो मुझे कोई काम नहीं देगा।'
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)