Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

दक्षिण के देशों में सहयोग के लिए बने ब्रिक्स में बढ़ता आंतरिक कलह

दक्षिण के देशों में सहयोग के लिए बने ब्रिक्स में बढ़ता आंतरिक कलह

DW

, सोमवार, 10 मई 2021 (09:24 IST)
रिपोर्ट राहुल मिश्र
 
कोविड महामारी की शुरुआत पर दुनियाभर में चल रही बहस के बीच चीन की भूमिका संदेह में है। इस दौरान भारत के साथ उसके सीमा विवाद ने ब्रिक्स के भविष्य पर सवाल उठाए थे। अब ब्राजील ने भी कोरोना के प्रसार के लिए उसकी आलोचना की है।
 
जहां बहुत से लोग कोरोना महामारी का स्रोत चीन में वुहान के जंगली जानवरों के बाजार और चमगादड़ और जंगली जानवरों के मीट के सेवन से जोड़ते हैं तो वहीं बहुत से लोग इसके तार वुहान की वायरस अनुसंधान प्रयोगशाला से जोड़ते हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो मानते हैं कि कोविड वायरस वुहान की प्रयोगशाला संबंधी दुर्घटना से जुड़ा है। हालांकि शुरू से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और इसके महानिदेशक टेड्रोस अधानोम गेब्रेसस के चीन पर नरम रुख की आलोचना होती रही है लेकिन अब कोविड महामारी का नाम लिए बिना उसे सीधे चीन और चीनी प्रयोगशाला से मुखर तौर पर जोड़ने वाले लोगों में ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो भी शामिल हो गए हैं।
 
राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने हाल में एक बयान में कहा कि हो न हो, कोरोनावायरस प्रयोगशाला में जैविक हथियार बनाने में हुई गलती से ही उत्पन्न हुआ है। बोल्सोनारो इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने यह भी जोड़ा कि 'इसकी जड़ में प्रयोगशाला थी या अखाद्य जानवर कोई नहीं कह सकता। लेकिन सेनाएं अच्छे से जानती हैं कि जैविक, रासायनिक युद्ध और उनकी तैयारियां कैसे होती हैं।' बोल्सोनारो इस ओर इशारा करना नहीं भी भूले कि कोविड महामारी के दौरान चीन की अर्थव्यवस्था घटने के बजाय और बढ़ी है और वह भी सबसे तेज गति से?
 
बोल्सोनारो के इस बयान से अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हलकों में गहमागहमी का माहौल है। चीन, ब्राजील का सबसे प्रमुख आर्थिक और वाणिज्यिक साझेदार है। गौरतलब बात है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अलावा दुनिया के किसी नेता ने कोविड महामारी को लेकर सीधे चीन पर ऐसी टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन अपनी छवि के अनुरूप व्यवहार करते हुए बोल्सोनोरो ने अपनी मन की बात कह ही दी, चाहे इसका अंजाम चाहे जो भी हो।
 
ब्राजील के लिए मुश्किल समय
 
सवाल यह है कि आखिर बोल्सोनोरो को यह बात कहने की नौबत कैसे आ गई? दक्षिणपंथी पापुलिस्ट नेता बोल्सोनारो के लिए कोविड एक राष्ट्रीय संकट के साथ-साथ एक राजनीतिक आपदा बनकर भी आया है। कोविड से निपटने में बोल्सोनारो को बिलकुल असफल माना गया है और बात उनके खिलाफ सीनेट जांच तक पहुंच गई है। ब्राजील में कोविड से मारे जाने वाले लोगों की संख्या 4 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है। देश में स्वास्थ्य आपूर्तियों की कमी है और सरकारी व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।
 
बोल्सोनारो के बयान के बाद डर यह भी है कि चीन, ब्राजील को वैक्सीन की आपूर्ति में कमी कर सकता है। एक आम चीनी माल की तरह वैक्सीन के भी निम्नस्तरीय होने की भी अफवाहें आ रही हैं। कुल मिलाकर बोल्सोनारो की हर समस्या की सुई चीन पर जाकर ही अटक जा रही है। बोल्सोनोरो का यह बयान उसी झुंझलाहट और कुछ न कर पाने की बेबसी को व्यक्त करता है।
 
जहां तक बोल्सोनोरो की बयानबाजी के अंजामों का सवाल है तो जैसा कि सर्वविदित है कि शी जिनपिंग का चीन अपने ऊपर किए किसी भी कटाक्ष व किसी भी आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर पाता। इसी असहिष्णु रवैये के चलते चीनी राजनय में एक नई परंपरा चल निकली है जिसे 'वुल्फ वॉरियर' डिप्लोमेसी की संज्ञा दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और पश्चिम के तमाम देश चीन की 'वुल्फ वॉरियर' डिप्लोमेसी के तीर खा चुके हैं और इस बात की प्रबल संभावना है कि ब्राजील भी चीन की कड़ी प्रतिक्रिया का शिकार बनेगा। द्विपक्षीय सबंधों में फिलहाल कुछ खटास भी आए तो चीन को परवाह कम ही होगी।
 
बदलेंगे क्षेत्रीय समीकरण
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो यह साफ है कि बोल्सोनोरो की बात धीरे-धीरे वैश्विक जनमानस की बात बनती जा रही है। ब्राजील, चीन के काफी नजदीक माना जाता था और इस बदलते रुख का क्षेत्रीय समीकरणों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। भारत के उलट ब्राजील के काफी कोशिशें करने के बावजूद अभी तक अमेरिका ने उसकी मदद करने में कोई खास तेजी नहीं दिखाई है। वैसे बोल्सोनारो कहते आ रहे हैं कि अमेरिका जल्दी ही ब्राजील को व्यापक पैमाने पर वैक्सीन और अन्य मदद पहुंचाएगा लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हुआ है। क्षेत्रीय और द्विपक्षीय स्तर पर इसके प्रभाव से अलग हटकर इस घटना को अगर अंतरराष्ट्रीय राजनीति के आयामों में देखा जाए तो साफ है कि इससे न सिर्फ चीन की नेतृत्व क्षमता और नीयत पर और सवालिया निशान उठ रहे हैं बल्कि कोविड महामारी की उत्पत्ति पर भी एक बार फिर से निष्पक्ष जांच की बात सामने आएगी।
 
ग्लोबल नॉर्थ के विकसित पश्चिमी देशों के विकल्प के तौर पर बने 5 प्रमुख विकासशील देशों- चीन, रूस, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के बहुपक्षीय संगठन ब्रिक्स के बारे में भी ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनोरो की बयानबाजी काफी कुछ बयान कर जाती है। तमाम टिप्पणीकारों के ब्रिक्स की सफलता के कसीदे पढ़ने के बावजूद सच्चाई यही है कि ब्रिक्स में सब कुछ सही नहीं चल रहा।
 
जहां चीन के भारत-चीन सीमा पर अनधिकृत अतिक्रमण से भारत उससे दूर खिंच रहा है और उसकी सुरक्षा जरूरतें उसे अमेरिका के और नजदीक ला रही हैं तो वहीं रूस भी चीन और भारत के बीच बढ़े विवाद से पसोपेश में पड़ा है। हालांकि रूस ने मध्य एशिया में बढ़ते चीनी दबदबे पर कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन इस बात ने रूस को बहुत खुश तो नहीं ही किया है। अब ब्राजील की खुलेतौर पर चीन की आलोचना से यह तो स्पष्ट है कि इन 5 देशों के बीच सामंजस्य का संतुलन नहीं है।
 
इसके बावजूद फिलहाल ब्रिक्स पर खतरे के बादल फौरी तौर पर नहीं दिख रहे हैं। लेकिन वह अपनी भूमिका सही तरह निपटा पाएगा, इसमें संदेह उभरने लगा है। दक्षिण एशिया सहयोग के लिए बने इस संगठन का भविष्य तब तक बेहतरी की ओर नहीं मुड़ेगा, जब तक चीन अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर ब्रिक्स देशों के साझे उद्देश्यों को पूरा करने की कोशिश नहीं करेगा।
 
कोविड महामारी के झंझावात से झूलते ब्राजील को भी चीन और अन्य ब्रिक्स देशों की मदद की जरूरत है। यह वक्त दुनिया के तमाम देशों के एकसाथ काम करने का है, जो देश और नेता कोविड से निपटने की जिम्मेदारी से पीछे हटेंगे, उन्हें इतिहास माफ नहीं करेगा। बोल्सोनारो यह बात जानते हैं और इसीलिए वे अपनी मजबूरियों में चीन का नाम शुमार कर रहे हैं।
 
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

दक्षिण के देशों में सहयोग के लिए बने ब्रिक्स में बढ़ता आंतरिक कलह