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सरकारें कर रहीं हैं ऑनलाइन जानकारी में हेरफेर

सरकारें कर रहीं हैं ऑनलाइन जानकारी में हेरफेर
, बुधवार, 15 नवंबर 2017 (11:28 IST)
इंटरनेट पर गलत सूचनाओं और हेरफेर से जुड़े मामलों में चीन और रूस का नाम तो अक्सर लिया जाता है। लेकिन हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के 30 देशों की सरकारों ने ऐसे हेरफेर किये हैं।
 
 
65 देशों से जुड़ी इंटरनेट फ्रीडम रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 30 देशों की सरकारों ने ऑनलाइन सूचनाओं में हेरफेर किये हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 23 था जो इस साल बढ़कर 30 तक पहुंच गया है। सूचनाओं के इस हेरफेर में ट्रोल और बॉट्स के साथ-साथ प्रायोजित कमेंट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
 
ह्यूमन राइट्स ग्रुप फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट, "फ्रीडम ऑन द नेट 2017" में यह बात सामने आयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचनाओं के इस हेरफेर ने पिछले साल 18 देशों के चुनावों को प्रभावित किया, जिसमें अमेरिका भी शामिल है। फ्रीडम हाउस के अध्यक्ष माइकल आब्ररामोव्टिज के मुताबिक, पेड कमेंटटेटर और बॉट्स का सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल चीन और रूस जैसे देशों ने ही शुरू किया लेकिन अब यह प्रक्रिया वैश्विक हो गयी है। इन तकनीकों का तेजी से फैलना लोकतंत्र और जन आंदोलनों के लिए अच्छा नहीं है।
 
 
फ्रीडम ऑन नेट प्रोजेक्ट की निदेशक संजा कैली कहती हैं, "इस तरह के हेरफेर का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। अगर पता लगा भी लिया जाये तो इसे रोकने के लिए क्या किया जाये यह भी बड़ी समस्या है।" संस्था के मुताबिक इंटरनेट फ्रीडम में गिरावट पिछले सात सालों से लगातार नजर आ रही है।
 
चीन का फिर खराब रिकॉर्ड
फ्रीडम हाउस के मुताबिक चीन लगातार तीसरे साल इंटरनेट आजादी पर पाबंदी लगाने वाले देशों में सबसे आगे है। चीन में ऑनलाइन सेंसरशिप के नियम कायदों को कड़ा कर दिया गया है। यहां पर कई मामलों में यूजर्स को जेल भी भेजा गया है। अन्य देशों में भी ऑनलाइन जानकारी की सेंसरशिप और उन्हें तोड़मरोड़ कर पेश करने के मामले बढ़े हैं। मसलन फिलिपींस में सरकार के द्वारा किसी खास मामले में समर्थन हासिल करने के लिए लोगों को 10 डॉलर रोजाना की नौकरी पर रखा गया। इसी तरह तुर्की ने सोशल मीडिया पर सरकार के विरोधियों से निपटने के लिए 6 हजार लोगों का इस्तेमाल किया।
 
 
हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका और यूरोपीय चुनावों में रूस के दखल जैसी बातें सामने आने के बाद रूस ने आंतरिक नियमन और नियंत्रण को और भी कड़ा कर दिया है। अब रूस में ऐसे सभी ब्लॉगर्स जिनके फॉलोअर्स की संख्या 3 हजार से भी ज्यादा है, उन्हें अपना पंजीकरण कराना अनिवर्य हो गया है। इसके साथ ही नये सर्च इंजन और न्यूज एग्रीगेटर्स ने अनरजिस्टर्ड पार्टीज के माध्यम से सामग्री लेने पर पाबंदी लगा दी है।
 
 
हेराफेरी को रोकने की कोशिश
इस स्टडी में यह भी देखा गया कि 14 देशों की सरकार ने तो इंटरनेट नियम कायदों को इसलिए कड़ा किया है ताकि जानकारी और सूचनाओं का हेरफेर न हो सके। मसलन यू्क्रेन ने रूस से जुड़ी सेवाओं को रोक दिया है। यहां तक कि देश में सोशल नेटवर्क साइट्स और सर्च इंजन में भी इन्हें बंद कर दिया गया है।
 
फ्रीडम हाउस ने वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) पर लगायी जा रही अतिरिक्त पाबंदी पर भी चिंता व्यक्त की है। वीपीएन, सेंसरशिप के बजाय किसी साइट के इस्तेमाल की अनुमति देता है। यह सेवा फिलहाल 14 देशों में सक्रिय है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भी इंटरनेट फ्रीडम का दायरा सिकुड़ा है। इसमें कहा गया है कि जिन भी पत्रकारों ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आलोचना की है, उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।
 
एए/आईबी (एएफपी)

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