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भारत क्या आबादी के आर्थिक फायदे उठा सकेगा

भारत क्या आबादी के आर्थिक फायदे उठा सकेगा

DW

, मंगलवार, 2 मई 2023 (08:28 IST)
आर्थर सुलीवान
अप्रैल के आखिर में भारत आधिकारिक रूप से दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और युवा आबादी क्या उसके लिए बड़े आर्थिक फायदे लेकर आयेंगे।
 
जनगणना के आंकड़ों, जन्म और मृत्यु दर से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के आकलनों के आधार पर भारत की जनसंख्या अब 1.425 अरब से ज्यादा है। 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने जनगणना का रिकॉर्ड रखना शुरू किया और तब से अब पहली बार भारत की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। भारत ने जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है।
 
हालांकि इस खबर को दुनिया में हर जगह भारत के वैश्विक ताकत के रूप में उभरने के संकेत के रूप में नहीं देखा जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने यह कह कर विवाद को जन्म दिया कि भारत में ज्यादा लोग हो सकते हैं, लेकिन चीन के पास अब भी ज्यादा "प्रतिभा" है।
 
जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल ने जनसंख्या में भारत के चीन से आगे निकलने की खबर पर एक कार्टून छापा था, जिसमें एक जरूरत से ज्यादा भीड़ वाली भारतीय ट्रेन को 21वीं सदी की चीन की हाई स्पीड ट्रेन से आगे निकलते दिखाया गया।
 
बहुत से राजनेता और दूसरे लोगों ने इस कार्टून को नस्लभेदी करार दिया है। पंजाब सरकार के पूर्व मुख्य सचिव सर्वेश कौशल ने ट्वीट किया है, "विकसित देश भारत की कमर के नीचे हमला करने और यहां के लोगों को नीचा दिखाने का कोई भी मौका क्यों नहीं छोड़ते? उनकी चिंता का कारण साफ हैः वो पुरानी महिमा का मजा ले रहे हैं, जबकि अंधेरा भविष्य उनकी ओर देख रहा है।"
 
इस चर्चा से यह सवाल उठता है कि प्रतीकों से अलग दुनिया में भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले देश बनने में आखिर क्या बात मायने रखती है?
 
भारत के सामने आबादी का फायदा उठाने की चुनौती
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर चायना स्टडीज के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडपल्ली का कहा है कि कुछ प्रतिक्रियाएं पूर्वाग्रहों से भरी हैं और भारत के खिलाफ नस्लभेदी हैं। कोंडपल्ली ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम समझते हैं कि आबादी एक संपत्ति है, समस्या नहीं।"
 
भारत की औसत आयु 27 साल है, जो वैश्विक औसत से कम है। इसकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि यह देश को "आबादी के फायदे" उठाने में मदद करेगा। कोंडपल्ली का कहना है, "बुनियादी प्रतीक आगे बढ़ रहे हैं, हमारी साक्षरता की दर बढ़ रही है, हमारे स्वास्थ्य सेवाओं के संकेत बेहतर हो रहे हैं। आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे।"
 
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है और विश्वबैंक का अनुमान है कि 2023 में यह 6।9 फीसदी की दर से बढ़ेगा। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अगले पांच साल में 6.1 फीसदी की दर से विकास का अनुमान लगाया है।
 
हालांकि एक ओर जहां देश के युवाओं को संसाधन के रूप में देखा जाता है, वहीं उनमें बेरोजगारी की ऊंची दर भी एक बड़ी समस्या है। बीते दिसंबर में शहरी बेरोजगारी की दर 10।1 प्रतिशत थी। महामारी के बाद बड़ी संख्या में हुई छंटनी से समस्या और बड़ी हुई है। प्रशिक्षित युवाओं को ऊंची आमदनी वाली नौकरियों की खासी कमी का सामना करना पड़ रहा है। उत्पादन केंद्रों में  सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। कुछ मामलों में तो यह 20 फीसदी तक पहुंच गई है।  बेरोजगारी और महंगाई अगले साल के आम चुनाव में सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने की उम्मीद की जा रही है। ये चुनाव मई 2024 में होने हैं।
 
कोंडापल्ली का कहना है कि यह साफ है कि सरकार की नीतियों को किन चीजों पर ध्यान देना होगा, अगर वो आने वाले सालों में बढ़ती आबादी का फायदा उठाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "बुनियादी ढांचे में सुधार, कौशल विकास, लोगों के लिए काम के मौके, काम के वातावरण को बेहतर बनाना और मानव संसाधन विकास के बुनियादी संकेतों को बेहतर बनाने पर काम करना होगा।"
 
चीन के लिए भारत का आबादी में उससे आगे निकलने का सिर्फ सांकेतिक मतलब नहीं है। चीन की अर्थव्यवस्था भारत से चार गुनी बड़ी होने के बाद भी वहां घटती और बूढ़ी होती आबादी को लेकर चिंता है। 65 साल से ज्यादा उम्र के चीनी लोगों की तादाद 2050 तक दोगुनी हो जायेगी। इन सब का बोझ मौजूदा दौर में काम करने वाले लोगों पर ही पड़ेगा। चीन की सत्ताधारी पार्टी ने देश में जन्मदर को बढ़ाने के लिए कई उपाय किये हैं। आबादी में भारत के चीन से आगे निकलने को जिस तरह से चीन की सरकारी मीडिया में छापा गया उसमें उनकी निराशा साफ झलक रही है। 
 
बड़ा है, लेकिन सुपरपावर नहीं
कोंडापल्ली का कहना है कि चीन भारत से साक्षरता की दर, स्वास्थ्य सेवाओं समेत कई मामलों में आगे है, लेकिन फर्क अब उतना नहीं है जितना चीन दिखा रहा है। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि आबादी बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि भारत सुपरपावर बनेगा ही। उनका कहना है, "सुपर पावर बनते हैं जीडीपी के आधार पर, तकनीक के आधार पर, सैन्य ताकत पर या सॉफ्ट पावर के आधार पर। कोई भी देश आबादी के आधार पर सुपरपावर नहीं बिनता।
 
उनका यह भी मानना है कि चीन विचारधारा के मामले में भारत से बिल्कुल अलग है। कोंडपल्ली ने कहा, "भारत की महत्वाकांक्षा सुपरपावर बनने की नहीं है। हमने शी जिनपिंग को यह कहते देखा है कि चीन केंद्र पर कब्जा करना चाहता है और मध्य में आना चाहता है, लेकिन किसी भारतीय नेता ने नहीं कहा कि वह सुपरपावर बनना चाहता है।
 
चीन का रुतबा जिन चीजों पर टिका था, उनमें से एक तो उसके हाथ से निकल गया। अब भारत जब इस नयी पहचान का आदी हो जायेगा, तो शायद उसकी भी महत्वाकांक्षाएं बदला जायेंगी।
 

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