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टूटे चावल पर कूटनीतिक रणनीति पकाता भारत

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सोमवार, 3 जुलाई 2023 (11:33 IST)
-पूजा यादव
Rice diplomacy of India: बीते कुछ सालों में भारत ने चावल दान या निर्यात करके अपनी खाद्य कूटनीति का भरपूर इस्तेमाल किया है। चुनौतियों के बावजूद भारत दुनिया भर के कई देशों में चावल और गेहूं भेज रहा है।
 
धुनिक कूटनीति ऐसा बहुरंगी हथियार है, जिसका इस्तेमाल करके एक देश राष्ट्रीय हितों को साधने के जतन करता है। इसमें खाद्य कूटनीति भी शामिल है जिसका इस्तेमाल भारत भी करता है। बीते कुछ सालों में भारत ने चावल दान या निर्यात करके अपनी खाद्य कूटनीति का भरपूर इस्तेमाल किया है। हाल ही में, सरकार ने कुछ देशों के गेहूं और टूटे चावल भेजने के अनुरोधों के बाद निर्यात को मंजूरी देने का फैसला किया है।
 
भारत ने पहले स्थानीय कीमतों को स्थिर करने के प्रयास में 2022 में गेहूं और टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। टूटे चावल का इस्तेमाल जानवरों के चारे के लिए किया जाता है। हालांकि, सरकार ने अब इस वित्त वर्ष में इंडोनेशिया, सेनेगल और गाम्बिया को टूटे चावल के निर्यात का फैसला लिया है। इसके अलावा, भारत ने गेहूं भेजने की इजाजत भी दी है। इसी अवधि में नेपाल को भी निर्यात किया जाएगा।
 
अमेरिका ने भी खाद्य कूटनीति का खूब इस्तेमाल किया है। उसने शीत युद्ध के दौरान अविकसित देशों में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए एक कूटनीतिक हथियार के रूप में खाद्य सहायता का उपयोग किया। 1964-66 के दौरान भारत भी अमेरिकी खाद्य सहायता हासिल करता था, जब बड़ी मात्रा में गेहूं का आयात हुआ। अमेरिका ने 1973 में सोवियत संघ को सब्सिडी वाले गेहूं और मक्का की भी आपूर्ति की, जिसका वैचारिक महत्व था।
 
इसी तरह, भारत आज अपने खपत से ज्यादा उपलब्ध अनाज भंडार को राजनयिक और आर्थिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल कर रहा है। वह खाद्य संकट का सामना कर रहे देशों के साथ इस अधिशेष को दान करने या व्यापार की हर संभावना को तलाश रहा है।
 
चावल और खाद्य कूटनीति : खाद्यान्न भेजने के मामले में चीन के बाद भारत दुनिया भर में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसका विश्व व्यापार में 40% हिस्सा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चावल का उत्पादन 1980 में 5.36 करोड़ टन से बढ़कर 2020-21 में 12 करोड़ टन हो गया।
 
घरेलू चावल की कुछ सबसे पुरानी किस्मों में पूर्वी हिमालय की तलहटी में  पैदा होने वाला 'इंडिका' और दक्षिणी चीन में उगने वाला 'जापोनिका' शामिल हैं। भारत बासमती चावल का प्रमुख निर्यातक है।
 
वित्तीय वर्ष 2022-23 में, देश ने 17.3 मीट्रिक टन की तुलना में 17.79 मीट्रिक टन गैर-बासमती चावल का निर्यात किया, जबकि टूटे हुए चावल का निर्यात 3 मीट्रिक टन से 23% कम था। पिछले साल सितंबर में भारत ने टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और गैर-बासमती किस्मों पर 20% निर्यात शुल्क लगाया था। ऐसा घरेलू आपूर्ति की कमी को दूर करने और खराब फसल के बाद कीमतों को नियंत्रित करने के लिए लागू की गई थी।
 
इसी साल मार्च में, भारत सरकार ने चार देशों को अपने कूटनीतिक खाद्य सहायता कार्यक्रम के मुताबिक गेहूं और चावल जैसे लगभग एक करोड़ टन अनाज के निर्यात को मंजूरी दी। 
 
चावल के जरिए बनते संबंध : 2019 की तुलना में अप्रैल 2022 से अगस्त 2022 के बीच टूटे चावल के निर्यात में 417 प्रतिशत की बढ़त हुई। निर्यात मुख्य रूप से चीन, सेनेगल, वियतनाम, जिबूती और इंडोनेशिया को होता है। देश ने पिछले पांच महीनों में करीब 21.31 लाख मीट्रिक टन टूटे चावल का निर्यात किया। हालिया फैसले से फायदा उठाने वाले देशों में से एक इंडोनेशिया है जहां अल नीनो के मौसमी प्रभाव के चलते घरेलू आपूर्ति में दिक्कत बनी हुई है। इंडोनेशिया ने करीब 1 करोड़ टन चावल आयात करने के लिए भारत से डील की है।
 
जानकारों का अनुमान है कि इस फैसले से ना केवल शामिल देशों को लाभ होगा बल्कि भारत में कृषि क्षेत्र के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। इसी साल मार्च में भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने कई देशों में बड़ी मात्रा में टूटे चावल के शिपमेंट को मंजूरी दी। करीब 100,000 टन टूटा हुआ चावल गाम्बिया और 250,000 टन सेनेगल को विशेष रूप से भेजा जाएगा। जबकि, 9,990 टन टूटे चावल का एक और शिपमेंट जिबूती और इथियोपिया को निर्यात करने की मजूरी दी गई।चावल निर्यात पर भारत की रोक से दुनियाभर में अफरा-तफरी
 
दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान सूखे, सत्ता पलट और अस्थिरता के कारण भोजन की गंभीर कमी का सामना कर रहा है, जबकि श्रीलंका भी आर्थिक मंदी  के दौर में भोजन के संकट से जूझ रहा है। अमेरिका के पीएल-480 कार्यक्रम की तरह भारत ने स्थानीय मुद्रा में भुगतान स्वीकार करते हुए, अफगानिस्तान को गेहूं और श्रीलंका को चावल की मानवीय सहायता की पेशकश करता हुआ नजर आया।
 
इसके अलावा, भारतीय कंपनी ने क्यूबा और पड़ोसी लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन देशों को 300,000 मीट्रिक टन चावल और अन्य वस्तुओं की आपूर्ति के लिए एक डील की है।
 
चुनौतियों के पार : विश्व व्यापार समझौते के नियमों के अनुसार, घरेलू कल्याण कार्यक्रमों के लिए रखे गए सरकारी अनाज का निर्यात नहीं किया जा सकता है। इसलिए, केवल कूटनीतिक रास्ते से मानवीय सहायता के लिए सरकारी भंडार से निर्यात किया जा सकता है। निर्यात पर रोक के बावजूद, यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य संकट और कीमतों पर प्रभाव के चलते भारत को पिछले साल एक दर्जन से अधिक देशों से खाद्य शिपमेंट के अनुरोध आए। इस लिस्ट में बांग्लादेश, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, अफगानिस्तान समेत कई देश शामिल है।
 
मई में जारी आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन (2022-23) के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 52.06 मिलियन टन चावल की खरीद की, जिसकी वजह से एक करोड़ से ज्यादा किसानों को 1.6 लाख करोड़ रुपए का भुगतान हुआ। टूटे चावल पर प्रतिबंध और गैर-बासमती किस्मों पर निर्यात कर जैसी चुनौतियों के बावजूद, भारत के चावल के निर्यात में वृद्धि जारी रही है। हालांकि, विशेषज्ञ संभावित खतरों के बारे में आगाह कर रहे हैं जो प्रमुख निर्यातक के तौर पर भारत की स्थिति पर असर डाल सकते हैं। इनमें अल नीनो का प्रभाव और कीटनाशकों से जुड़ी चिंताएं शामिल हैं।
 
एक अन्य कारक जो भारत की स्थिति को प्रभावित कर सकता है, भुगतान का तरीका। 2019 में अमेरिकी प्रतिबंध से ईरान के साथ व्यापार बाधित हुआ, जो पहले भारत से बासमती चावल का सबसे बड़ा खरीदार था। भारतीय निर्यातकों को ईरान भेजे गए माल के लिए कीमत हासिल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिससे व्यापार में गिरावट आई। फिर भी, भारत के गैर-बासमती चावल के निर्यात में महत्वपूर्ण बढ़त देखी गई है। वित्त वर्ष 2013-14 से 2021-22 तक 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

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