रिपोर्ट आशुतोष पाण्डेय
तमाम चुनौतियां पार कर कोविड-19 वायरस का टीका बनने के बाद भी उसे फॉर्मा कंपनियों की लैब से आम लोगों तक पहुंचाने का सफर कम कठिन नहीं होगा। डिलीवरी कंपनियां इसके लिए बहुत खास तैयारी कर रही हैं।
लंबे-लंबे समानांतर कतारों में खड़े दर्जनों 2 मीटर ऊंचे फ्रिजर में लगातार -80 डिग्री सेल्सियस तापमान बरकरार रखा जाता है। इन्हीं में कोविड-19 के टीके रखे जाएंगे। यहीं से होकर टीके आगे लोगों तक का सफर तय करेंगे। लगभग फुटबॉल के फील्ड जितनी बड़ी ऐसी एक स्टोरेज फेसिलिटी यूरोप के नीदरलैंड्स में अमेरिकी लॉजिस्टिक्स कंपनी यूपीएस ने बनाई है। एक बार टीके बन जाएं तो यहां से उन्हें सुरक्षित तरीके से पूरे विश्व में पहुंचाने की तैयारी तेजी से चल रही है।
ऐसी तैयारियां केवल डिलीवरी कंपनियों के अलावा विश्व स्तर पर तमाम सरकारें, अंतरराष्ट्रीय संगठन और फॉर्मा कंपनियां भी कर रही हैं। महामारी की शुरुआत से अब तक ये सब टीके के विकास, उत्पादन और सप्लाई चेन स्थापित करने में कई अरब डॉलर का निवेश कर चुके हैं। नीदरलैंड्स में स्थित यूपीएस हेल्थकेयर के प्रमुख अनूक हेसेन बताते हैं कि हम अपनी क्षमताओं और अनुभव का इस्तेमाल कर और बड़ा निवेश कर इसकी तैयारी कर रहे हैं ताकि कोविड वायरस से लड़ने में दवा उद्योग की मदद कर सकें।
जर्मनी और अमेरिका में यूपीएस के एयर कार्गो के पास ही ऐसे सेंटर बनाए जा रहे हैं। केवल इन 2 सेंटरों में ही ऐसे करीब 600 फ्रिजर रखे जाएंगे। ऐसे हर एक फ्रिजर में वैक्सीन के 48,000 डोज रखे जा सकते हैं। इसके अलावा और भी संवेदनशील वैक्सीन को स्टोर करने के लिए इन्हीं सेंटरों में डीप फ्रिजर भी बनाए जा रहे हैं। दुनिया में कुछ जगहों पर ऐसे संवेदनशील टीकों पर भी काम चल रहा है, जो मैसेंजर-आरएनए पर आधारित हैं और शरीर में जाकर कोरोनावायरस जैसा प्रोटीन बना सकते हैं। यूपीएस सेंटर के हेसेन ने बताया कि कंपनी कई बड़ी-बड़ी फॉर्मा कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है। फिलहाल अमेरिकी फॉर्मा कंपनियां मॉडर्ना और फाइजर, जर्मन कंपनियां बायोएनटेक और क्योरवैक मैसेंजर आरएनए आधारित ऐसी वैक्सीन पर काम कर रही हैं।
कोरोना के टीके का सफर
तैयार होने के बाद लैब से टीका विशेष इंसुलेटेड डिब्बों में निकलेगा। टीके को ठंडा रखने के लिए इन डिब्बों में सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन डाई ऑक्साइड भरी होगी। फिर इन डिब्बों को यूपीएस केंद्र जैसे फ्रिजर फॉर्म में लाया जाएगा। वहां इन डिब्बों को सावधानी से खोलकर स्ट्रेचर जैसे मेज पर एक मुलायम सतह पर रखा जाएगा, जहां से ये फ्रिजर में रख दिए जाएंगे। डीडब्ल्यू से खास बातचीत में फ्रिजर फॉर्म के प्रमुख हेसेन ने बताया, इन फ्रिजर फॉर्मों में कोई बिना पीपीई किट पहने काम नहीं कर सकता। हमारे कर्मचारियों को सही गियर, दस्ताने, चश्मे वगैरह मुहैया कराए जाएंगे। इनके बिना कोई इतने ठंडे तापमान में चल नहीं पाएगा।
आगे का सफर ऐसा होगा कि जैसे ही ग्राहकों की ओर से टीके की मांग आएगी, टीकों को फिर से वैसे ही इंसुलेटेड डिब्बों में सूखी बर्फ के साथ डालकर पैक किया जाएगा। इन डिब्बों में टीका अधिक से अधिक 96 घंटों तक सही तापमान पर रखा जा सकता है। जिन कमरों में इन्हें पैक किया जाएगा, जरूरत पड़ने पर वहां का तापमान -20 डिग्री तक ठंडा रखा जा सकता है। वैसे आमतौर पर ज्यादातर तरह के मौजूदा टीकों के लिए 2 से 8 डिग्री तक का तापमान आदर्श माना जाता है। पैक किए गए टीकों के डिब्बों को फिर विमानों के द्वारा सुरक्षित तरीके से दुनिया के किसी भी छोर तक पहुंचाया जाएगा।
फिलहाल तो विश्वभर में किसी भी तरह कोविड-19 का टीका बनाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। इस बारे में बहुत कम जानकारी मिल पा रही है कि ये टीके कितने नाजुक या स्थिर होंगे और उन्हें लोगों तक पहुंचाने में कितनी सावधानी से पेश आना होगा? हालांकि आने वाली चुनौती के लिए तैयार रहने की कोशिश में यूपीएस जैसी कंपनियां वैक्सीन के ट्रॉयल फेज में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और अमेरिकी शहर एटलांटा में उनकी एक यूनिट बहुत सख्त दिशा-निर्देशों के तहत क्लिनिकल ट्रॉयल के लिए वैक्सीन पहुंचाने का काम कर रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय विश्व में करीब 170 टीकों पर काम चल रहा है जिनमें से 30 का क्लिनिकल ट्रॉयल चल रहा है। इनमें से सभी टीके ऐसे नहीं हैं जिन्हें -80 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की जरूरत है। लेकिन स्टोरेज कंपनियों की कोशिश है कि चाहे जैसी भी वैक्सीन बने, उसे लोगों तक पहुंचाने में स्टोरेज की कमी के कारण देर नहीं होनी चाहिए।