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जो बिडेन के नेतृत्व में कैसे होंगे भारत-अमेरिका रिश्ते

जो बिडेन के नेतृत्व में कैसे होंगे भारत-अमेरिका रिश्ते

DW

, शुक्रवार, 13 नवंबर 2020 (13:01 IST)
रिपोर्ट चारु कार्तिकेय
 
अमेरिकी चुनावों में जो बिडेन की जीत के साथ सभी देश अमेरिका से अपने रिश्तों को नई दिशा देने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में व्हाइट हाउस में नए प्रशासन के भारत के प्रति रुख को लेकर क्या उम्मीदें हैं?
 
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके साथ अपनी दोस्ती के प्रदर्शन की काफी असामान्य कोशिशें की थीं। सत्तारूढ़ बीजेपी ने तो चुनावों में जीत के लिए ट्रंप का समर्थन तक कर दिया था। इसके अलावा ट्रंप के कार्यकाल के दौरान विपक्ष में रहे डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के साथ भी भारत के रिश्ते अच्छे नहीं रहे। जैसे जैसे बिडेन अपनी सरकार के उदघाटन की तरफ बढ़ रहे हैं, भारत में इस सवाल का जवाब ढूंढने में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है क्या कि क्या ये सब बातें बिडेन के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के रिश्तों पर असर डालेंगी।
 
इसके अलावा व्यापार जैसे मुद्दों पर तो मोदी और ट्रंप के आपसी रिश्तों के बावजूद ट्रंप के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों में तनातनी बनी ही रही। भारत एक अहम व्यापार संधि पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद लगाए बैठा रहा और ट्रंप भारत पर अमेरिका की व्यापार नीतियों का गलत फायदा उठाने का आरोप लगाते रहे। तो ऐसे में नए राष्ट्रपति के रूप में बिडेन की भारत के प्रति नीति कैसा रूप लेगी?
 
बिडेन को विदेश नीति का लंबा अनुभव है। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल याद दिलाते हैं कि बिडेन ने भारत-अमेरिका परमाणु संधि का समर्थन किया था और वो दोनों देशों के रिश्तों के सार को समझते हैं। सिब्बल ने एक लेख में लिखा है कि दोनों देशों के संबंध मजबूत हैं और दोनों के बीच समान हितों के विषय बढ़ते जा रहे हैं। कुछ समीक्षकों को भारत में मानवाधिकारों की कुछ चुनौतियों को लेकर चिंताएं हैं।मानवाधिकारों को लेकर चिंता
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माना जा रहा है कि बिडेन मानवाधिकारों के मोर्चे पर रूस और चीन को घेरने की कोशिश कर सकते हैं और ऐसे में भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को वो नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे। भारत सरकार ने 2019 में कश्मीर में कई कड़े कदम उठाए थे, तब डेमोक्रेट सांसद प्रमिला जयपाल ने अमेरिकी संसद में कश्मीर पर एक प्रस्ताव पेश किया था। जयपाल ने अपने प्रस्ताव में मोदी सरकार से अपील की थी कि वो 'कश्मीर में संचार माध्यम पर से पाबंदियां हटाए, राजनीतिक बंदियों को रिहा करे और सभी कश्मीरियों की धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा करे।'
 
भारत ने इस प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की थी और इसे भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया था। यहां तक कि आधिकारिक दौरे पर अमेरिका गए विदेश मंत्री एस जयशंकर को जब पता चला कि जिस संसदीय प्रतिनिधि मंडल से वो मिलने वाले हैं उसमें जयपाल भी शामिल हैं तो उन्होंने उस प्रतिनिधिमंडल से ही मिलने से इनकार कर दिया था। तो क्या कश्मीर, नागरिकता संशोधन कानून, साम्प्रदायिक हिंसा जैसे मानवाधिकारों के विषय भारत-अमेरिका रिश्तों पर हावी रहेंगे?
 
जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफेसर श्रीराम चौलिया का मानना है कि अमेरिका में कश्मीर को लेकर चिंताएं जरूर हैं लेकिन अमेरिकी नीति निर्धारक यह भी समझते हैं कि भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के स्थिति उतनी गंभीर नहीं हैं जितनी रूस या चीन में हैं। श्रीराम चौलिया ने डीडब्ल्यू को बताया कि वैसे भी विदेश नीति में जियोपॉलिटिक्स मानवाधिकारों की चिंताओं पर हावी होती है, नहीं तो सऊदी अरब और अमेरिका के बीच इतनी मित्रता नहीं होती।
 
चीन के प्रति नजरिया
 
सामरिक दृष्टि से दोनों देश लगातार करीब ही आते जा रहे हैं और इस प्रक्रिया पर दोनों देशों में सरकारों के बदलने का कोई असर नहीं पड़ा है। अमेरिका में चीन के खिलाफ आक्रामक विदेश नीति अपनाने के प्रति राजनीतिक सर्वसम्मति है। जहां तक भारत का सवाल है, गलवान मुठभेड़ के बाद भारत और चीन के बीच जो अभूतपूर्व गतिरोध पैदा हो गया है, उसकी वजह से अब भारत भी चीन के प्रति सजग हो गया है और ऐसे में चीन भारत-अमेरिका के बीच सहयोग का एक विषय बन गया है।
 
दोनों देश जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिल कर 'क्वॉड' समूह के बैनर तले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक मोर्चे को आगे भी बढ़ा रहे हैं। लेकिन क्या बिडेन चीन के प्रति ट्रंप की आक्रामकता को जारी रखेंगे? चौलिया का मानना है कि संभव है कि बिडेन चीन के साथ अमेरिका के रिश्तों को एक नए नजरिए से देखने की कोशिश करें और ऐसे में अमेरिका चीन पर दबाव बनाए रखे यह सुनिश्चित करना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
 
हालांकि चौलिया को 'क्वॉड' के फैलने-फूलने की पूरी उम्मीद है और उनका अनुमान है कि जल्द ही इसमें वियतनाम जैसे और देशों को भी शामिल किया जा सकता है। जहां तक व्यापार का सवाल है, तो सिब्बल को बिडेन प्रशासन से किसी विशेष नर्मी की उम्मीद नहीं हैं। उनका मानना है कि अमेरिका की व्यापार नीति तय करने वाली संस्था यूएसटीआर पारंपरिक रूप से भारत को उकसाती रही है। वहीं चौलिया मानते हैं कि बिडेन के कमान संभालते ही भारत और अमेरिका कुछ महत्वपूर्ण संधियों पर तुरंत ही हस्ताक्षर कर सकते हैं।

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