Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

रूसी गैस का तोड़ कैसे निकाल सकते हैं यूरोपीय देश?

DW
शनिवार, 23 जुलाई 2022 (11:01 IST)
रिपोर्ट : सोन्या अंगेलिका डीन
 
यूरोपीय संघ के कई देश पहले ही रूसी ईंधन की आपूर्ति में आई कमी का सामना कर रहे हैं। आशंका यह भी है कि रूस पूरी तरह से गैस की आपूर्ति बंद कर देगा। रूसी गैस पर निर्भर देशों के पास खपत में कटौती के क्या उपाय हैं? यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच रूस ने यूरोप के कुछ देशों में गैस की आपूर्ति या तो बंद कर दी है या कम कर दी है।
 
ऐसी आशंका बढ़ गई थी कि वह जर्मनी को नॉर्ड स्ट्रीम वन पाइपलाइन से गैस की सप्लाई बहाल नहीं करेगा, लेकिन गुरुवार को इस पाइपलाइन से गैस की सप्लाई फिर से चालू कर दी गई। लाखों लोग इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हालांकि अधिकारियों की नजर इस बात पर होगी कि पर्याप्त मात्रा में गैस की सप्लाई की जा रही है या नहीं?
 
दरअसल, मरम्मत और देखभाल के नाम पर नॉर्ड स्ट्रीम वन पाइपलाइन से गैस की सप्लाई पिछले कुछ समय से बंद कर दी गई थी। रूस का कहना था कि इसका एक हिस्सा मरम्मत के लिए कनाडा गया है। मरम्मत के लिए बंद करने की समयसीमा गुरुवार को खत्म हो रही थी। इस बीच गैस सप्लाई करने वाली रूसी कंपनी गाजप्रोम ने कहा था कि भविष्य में हम कैसे काम करेंगे, इसके बारे में अभी से बता पाना संभव नहीं है।
 
रूस ने जून के मध्य से यूरोपीय देशों में गैस की सप्लाई में कटौती करनी शुरू कर दी थी। वार्षिक मरम्मत के नाम पर 11 जुलाई से गैस की सप्लाई पूरी तरह बंद कर दी थी। यूरोप के कई देशों को पहले से ही इस बात की संभावना थी कि रूस गैस की सप्लाई में कटौती कर सकता है या पूरी तरह से वह सप्लाई बंद कर सकता है,इसलिए कई यूरोपीय देश इस कटौती से निपटने की तैयारी काफी पहले से ही शुरू कर चुके हैं।
 
सरकार उस संकट से निपटने के उपायों पर विचार कर रही है जिसे लेकर आशंका जताई जा रही है कि इससे मंदी आ सकती है। इसमें उपभोक्ताओं के व्यवहार को बदलना भी शामिल है। यह ऐसा उपाय है जिसे अभी तक पूरी तरह आजमाया नहीं गया है।
 
नीदरलैंड्स ने गैस की खपत को कम कर लिया
 
वर्ष 2022 की शुरुआत के बाद से नीदरलैंड्स अपनी गैस की खपत को लगभग एक तिहाई कम करने में सफल रहा है, वहीं इस साल जनवरी से मई के बीच जर्मनी अपनी खपत को 14 फीसदी ही कम कर सका जबकि इटली 2 फीसदी भी कम नहीं कर सका। यूरोप के अन्य देशों के अलावा ये तीनों देश अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूसी गैस पर काफी ज्यादा निर्भर हैं।
 
डच शोध संगठन टीआरओ में गैस मामलों के विशेषज्ञ रेने पीटर्स ने नीदरलैंड्स की सफलता के पीछे की 3 वजहों को रेखांकित किया- असामान्य रूप से हल्की सर्दी, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के इस्तेमाल पर वापस लौटना और गैस की खपत में बड़ी कमी।
 
पीटर्स ने कहा कि गैस की जगह कोयला से चलने वाली ऊर्जा संयंत्रों के इस्तेमाल और हल्की सर्दी की वजह से गैस की खपत में 5 से 10 फीसदी की कमी हुई। हालांकि इन सबसे बड़ी बात यह रही कि घरों और उद्योग, दोनों जगहों पर गैस के इस्तेमाल को कम किया गया। इसका सबसे ज्यादा असर हुआ और गैस की खपत में कमी आई।
 
नीदरलैंड्स की सरकार ने गैस की खपत को कम करने के लिए अप्रैल महीने में बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत लोगों से अपील की गई थी कि वे घरों और कंपनियों में गैस का इस्तेमाल कम करें। अभियान के दौरान एक वाक्य का इस्तेमाल किया गया था कि नॉब को बंद करें'। नागरिकों से अपील की गई कि वे अपने घरों को कम गर्म करें। इसके साथ ही, घरों और कार्यालयों को बेहतर ढंग से गर्म करने के साथ-साथ कम ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले उपकरणों की खरीद के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन दिए गए थे। 
 
ऊर्जा के उत्पादन, उद्योग और घरों में गैस की खपत कम करना
 
ब्रसेल्स में मौजूद थिंक टैंक ब्रूगल के ऊर्जा शोध विश्लेषक बेन मैकविलियम्स ने पूरे यूरोप के संदर्भ में कहा कि इस बात की संभावना कम है कि अन्य देश इस हद तक गैस की खपत को कम कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'बिजली के उत्पादन के लिए गैस की जगह कोयले का इस्तेमाल करना आर्थिक नजरिए से काफी आसान उपाय है, लेकिन जलवायु के दृष्टिकोण से यह काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण है।
 
गैस की आपूर्ति में कमी होने से औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन में कमी आती है। मैकविलियम्स कहते हैं कि यही वह जगह है, जहां आपको आर्थिक लागत बढ़ी हुई दिखती है। साथ ही, संभावित मंदी की आहट सुनाई देती है। गैस का इस्तेमाल करने वाला तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है घर। यहां तापमान को स्थिर करके और कम ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले उपकरणों की मदद से गैस की खपत को तुरंत कम किया जा सकता है।
 
मैकविलियम्स ने कहा कि तत्काल कार्रवाई को लेकर, राजनेता लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। नेता लोगों को समझाएं कि विशेष रूप से सर्दियों में गैस का छोटा से छोटा हिस्सा बचाना काफी जरूरी होता है, यह लोगों की नौकरियां बचाता है और आखिरकार हमें मंदी से बचाता है। उदाहरण के लिए, नीदरलैंड्स में चलाए गए जन जागरूकता अभियान की तरह ही बेल्जियम और जर्मनी में भी अभियान शुरू किए गए हैं। इटली भी ऐसा करने की योजना बना रहा है।
 
रोम स्थित क्लाइमेट चेंज थिंक टैक ईसीसीओ की रिसर्चर फ्रांसेस्का आंद्रेओली ने कहा कि सार्वजनिक अभियान जरूरी उपाय है। इस तरह का अभियान इटली में भी चलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए लोग पहले से ही कम ऊर्जा की खपत करने वाले उपायों को लागू कर रहे हैं। जिस तरह से कोविड महामारी के दौरान इटली में मास्क पहनने और टीकाकरण जैसे कई कामों के लिए जन जागरूकता अभियान चलाए गए थे, उसी तरह अभियान चलाने से आर्थिक बचत और एकजुटता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
 
इटली रूसी गैस पर अपनी निर्भरता को कैसे कम कर सकता है, इसका विश्लेषण करते हुए ईसीसीओ ने बताया कि ऊर्जा की बर्बादी को कम करने और घर से काम करने के उपायों को बढ़ावा देने के साथ-साथ हीटिंग तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस कम करके ऊर्जा की मौजूदा खपत में 15 फीसदी तक कमी की जा सकती है।
 
गर्मियों में ऊर्जा को बचाने के लिए घर के तापमान को 27 डिग्री सेल्सियस पर सेट करना चाहिए। हालांकि सार्वजनिक भवनों के लिए ऐसी नीति पहले से ही लागू है। ईसीसीओ चाहता है कि यह नियम सभी सार्वजनिक और निजी भवनों के लिए भी लागू हो।
 
इसके साथ ही, लंबी अवधि के लिए भी कई उपाय अपनाने होंगे, जैसे कि गैस बॉयलरों को हीट पंपों से बदलना और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देना। नीदरलैंड्स में लंबे समय से ऐसे कार्यक्रम चल रहे हैं जिसकी वजह से ऊर्जा के इस्तेमाल में कमी आई। नीदरलैंड्स में चलाए जा रहे जनजागरूकता अभियान को लेकर पीटर्स ने कहा कि इस तरह के प्रयास सबसे प्रभावी होते हैं। इनसे संरचनात्मक परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।
 
नुकसान पहुंचाने वाली सब्सिडी को खत्म करना
 
आंद्रेओली ने गैस पर वैट को 22 फीसदी से कम करके 5 फीसदी करने से जुड़ी समस्या की ओर इशारा किया। इटली की सरकार ने अक्टूबर 2021 में ऐसा किया था, लेकिन 2022 की तीसरी तिमाही में इसे फिर से बढ़ा दिया। उन्होंने कहा कि इस सब्सिडी का फायदा उन अमीर लोगों को होता है, जो सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा खपत करते हैं।
 
पीटर्स ने कहा कि दरअसल, ऊर्जा की कम खपत का एक स्याह पक्ष भी है। इससे यह पता चलता है कि ऊर्जा की कमी हो गई है। क्या लोग कम तापमान की वजह से परेशानी का सामना करने लगें, क्योंकि वे ऊर्जा के लिए पैसे नहीं चुका सकते। उन्होंने टीएनओ के अध्ययन में समस्या की खोज की। इसमें पाया गया कि लगभग 8 फीसदी परिवारों ने अपनी आय का 10वां हिस्सा ऊर्जा पर खर्च किया। इससे यह पता चलता है कि देश में पर्याप्त ऊर्जा मौजूद नहीं है।
 
नीदरलैंड्स और इटली के साथ ही अन्य देशों में सरकारें निम्न-आय वाले परिवारों को सब्सिडी देती रही हैं। विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि इस तरह की नीतियां विशेष रूप से उभरते ऊर्जा संकट में कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
 
सर्दी आने वाली है
 
पूरे यूरोप में कोयले के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की तैयारी की जा रही है। जर्मनी अपने परमाणु संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की समयसीमा को आगे बढ़ा रहा है। यह सब ईयू के ऊर्जा के स्रोत में चरणबद्ध तरीके से बदलाव की योजना के विपरीत हो रहा है।
 
अब वाकई में ऊर्जा को बचाने का समय आ गया है। बुधवार को यूरोपीय संघ ऊर्जा पर 'प्रारंभिक चेतावनी' से 'अलर्ट' मोड में चला गया है। यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय संघ में गैस की मांग को तुरंत 15 फीसदी कम करने के लिए आपातकालीन योजनाएं जारी की है।
 
इस प्रस्ताव का शीर्षक है- 'सेव गैस फॉर ए सेफ विंटर'। आयोग का मानना है कि ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल की निगरानी के अलावा सभी सार्वजनिक भवनों की हीटिंग और कूलिंग के लिए तापमान की तय सीमा लागू होनी चाहिए।
 
लीक हुए मसौदे से पता चलता है कि रूस से गैस आपूर्ति पूरी तरह बंद होने पर, यूरोपीय संघ सर्दियों के लिए गैस भंडारण के लक्ष्य में 80 फीसदी पीछे रह सकता है।
 
अगर पुतिन नॉर्ड स्ट्रीम एक से गैस की सप्लाई फिर से रोक देते हैं तो फिलहाल रूसी गैस पर निर्भर देशों को ज्यादा समस्या नहीं होगी, क्योंकि वे अपनी मौजूदा खपत की पूर्ति तरल प्राकृतिक गैस सहित अन्य स्रोतों से कर सकते हैं। हालांकि, गैस का पर्याप्त भंडारण नहीं होने पर सर्दियों में बड़ी समस्या हो सकती है।
 
मैकविलियम्स ने कहा कि मुझे लगता है कि हम सभी यूरोप में बहुत बेपरवाह हैं और हम वास्तव में तैयारी नहीं करते हैं। गर्मियों में कुछ कमी करने से यूरोप में कड़ाके की सर्दी की तैयारी के लिए कुछ किया जा सकता है। हमें स्थिति को गंभीरता से लेने और तैयार होने के लिए, गैस की मांग को कम करने से जुड़े हरसंभव प्रयास करने की आवश्यकता है।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

LIVE: महाराष्‍ट्र में रुझानों में महायुति की सरकार, महागठबंधन का हाल बेहाल

LIVE: झारखंड में रुझानों में हेमंत सोरेन की सरकार, JMM गठबंधन को कितनी सीटें

महाराष्ट्र में क्यों घटा पवार का पावर, क्या शिंदे हैं शिवसेना के असली वारिस?

આગળનો લેખ
Show comments