Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

इस सरकारी स्कूल के आगे फीके हैं प्राइवेट भी

Webdunia
मंगलवार, 6 नवंबर 2018 (11:42 IST)
क्या आपने कभी ऐसा सरकारी स्कूल देखा है जहां स्मार्ट क्लास चलती हो, डिजिटल लाइब्रेरी हो और बच्चे वाई फाई से कनेक्टेड रहते हों? यह स्कूल रिसर्च का विषय बन गया है।
 
 
सरकारी स्कूल का नाम आते ही एक खंडहरनुमा स्कूल, गायब शिक्षक, थोड़े से गांव के मैले कुचैले बच्चे, बैठने के लिए कुछ के पास टाट पट्टी, स्टेशनरी के नाम पर फटी पुरानी किताबें और लगभग शून्य पढ़ाई का ख्याल आता है। लेकिन यही सरकारी स्कूल कमाल कर सकते हैं। प्राइमरी शिक्षा से वे बच्चों को आगे की राह दिखा सकते हैं।
 
 
ऐसा ही एक स्कूल लखनऊ से करीब 125 किलोमीटर की दूरी पर धौरहरा गांव में है। बीते पांच साल में इस स्कूल का कायाकल्प हो गया है। सुविधाएं और पढ़ाई इतनी कि शहर के प्राइवेट स्कूल भी पीछे रह जाएं। लोग अब यहां स्कूल को देखने और इस पर रिसर्च करने आते हैं। इस स्कूल का अपना यूट्यूब चैनल है और अपनी वेबसाइट भी है।

 
दरअसल पांच साल पहले एक शिक्षक रवि प्रताप सिंह इस स्कूल में आए। सरकारी गांव का स्कूल जैसा होता है, यह भी वैसा ही था। एक दिन रवि ने स्केल और स्केच पेन मांगे जिससे वे स्कूल के कार्यालय का काम कर सकें। उनको बताया गया कि वहां चॉक और डस्टर तक नहीं हैं, स्केच पेन तो दूर की बात। रवि बताते हैं, "बस मैंने तभी से ठान लिया कि इस स्कूल को बदलना है। ऐसा स्कूल बनाना है जहां बच्चे खुशी खुशी पढ़ने आएं। तब 138 बच्चे थे और दो शिक्षा मित्र और मैं अकेला अध्यापक।"
 
 
अब क्या क्या है स्कूल में
रवि ने सबसे पहले गांव में घूम घूम कर अभिभावकों को भरोसा दिलाया कि वे बच्चों को स्कूल भेजें। स्कूल में शौचालय नहीं था, पीने का पानी नहीं था, जिस वजह से बच्चे बाहर जाते और पड़ोसी अकसर उन्हें डांट देते। रवि ने अपने पास से और ग्रामवासियों के सहयोग से हैंडपंप लगवाया, स्कूल का फर्श बनवाया और टूटा प्लास्टर ठीक कराया। स्कूल कुछ बैठने लायक हुआ तो फिर दर्जी को बुलाकर बच्चों की फटी ड्रेस ठीक करवाई।
 
 
इतना ही नहीं, स्कूल में पौधों के लिए अपनी बाइक पर लाद कर मिट्टी लाए, लखनऊ से गमले और फूल के पौधे लाए। ऐसे में दूसरे स्कूल के मास्टर रवि को सनकी कहने लगे। दूसरे सारे स्कूलों से टीचर तीन बजे ही चले जाते लेकिन रवि चार बजे स्कूल बंद होने के बाद भी काम किया करते। रवि कहते हैं, "ये मेरे लिए एक मिशन था जिसे मुझे पूरा करना था। अपने वेतन का पैसा मैं स्कूल में लगाने लगा।"
 
 
रवि जानते थे कि सिर्फ बिल्डिंग ठीक करने से कुछ नहीं होने वाला। इसीलिए उन्होंने बच्चों की किताबों की डिजिटल कॉपी बनाई। उन्होंने अपने हिसाब से बच्चों के आसानी से सीखने की मैथ किट भी तैयार की। इस तरह से बच्चों को बाजार से किताबें और किट खरीदने की जरूरत नहीं रही।
 
 
आज इस सरकारी प्राथमिक स्कूल में स्मार्ट क्लास रूम है। यह प्रदेश का पहला इंटरएक्टिव क्लास रूम है। यहां प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाई होती है, सब बच्चों को कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी जाती है, डिजिटल लाइब्रेरी है, ऑनलाइन सीसीटीवी से बच्चों की मॉनिटरिंग होती है, हाई स्पीड इंटरनेट और वाई फाई की सुविधा भी है। बच्चे यहां डायनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं, क्लास में आधुनिकतम फर्नीचर है। सब बच्चे टाई, बेल्ट, यूनिफॉर्म और आइडेंटिटी कार्ड के साथ रहते हैं।
समय समय पर वरिष्ठ अधिकारी इस स्कूल के बारे में सुनकर आते हैं। हर कोई अपने स्तर से सहयोग करने लगा है। जिलाधिकारी ने अब बाउंड्री वॉल भी बनवा दी है और स्थानीय विधायक ने फर्नीचर दिया है। अब प्रदेश लेवल पर शिक्षा विभाग के अधिकारी मानते हैं कि उन्हें रवि प्रताप सिंह जैसे ही "सनकी" टीचर चाहिए। आज स्कूल में चार टीचर और 325 बच्चे हैं।
 
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
साल 2015 में गूगल मैप्स पर स्कूल की गतिविधियां दर्ज की गईं। उसके बाद से यह स्कूल दुनिया की नजरों में आ गया। वर्ल्ड एनिमल केयर यूनिट के हेड क्रिस हेगन यहां आ चुके हैं। हांगकांग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर इस स्कूल की केस स्टडी करने आए। अमेरिका से भी एक दल यहां आया। तीन साल पहले साउथ कोरिया में जैव विविधता दिवस पर स्कूल का काम दिखाया गया। एनसीईआरटी ने तो इस स्कूल की तुलना सिंगापुर, चीन और फिनलैंड के स्कूलों से कर दी है।
 
 
हाल में ही अमेरिका से इस स्कूल के लिए शैक्षिक सामग्री भेजी गई। कुछ अमेरिकी नागरिक, जो इस स्कूल को देख कर गए थे, उन्होंने पैसे जमा कर रबर, पेंसिल इत्यादि भेजे। अब तो स्कूल ने ब्रिटिश काउंसिल से सह-शिक्षा के लिए आवेदन भी कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम से विद्यालय को प्रशस्ति पत्र मिल चुका है।
 
 
आज इस स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए अड़ोस पड़ोस के गांव के लोग अपने बच्चों को लेकर आते हैं। लेकिन जगह कम होने की वजह से रवि प्रताप सिंह को अब मना करना पड़ता है।
 
 
आंकड़ों में प्राथमिक शिक्षा
बीते पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें, तो सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में लगभग 17 लाख बच्चों की कमी आई है। साल 2012-13 में 134.12 लाख, 2013-14 में 130.54 लाख, 2015-16 में 125.48 लाख, तो 2016-17 में 116.93 लाख बच्चे रह गए। लोगों की सरकारी स्कूलों के प्रति धारणा भी अच्छी नहीं है। ऐसा तब है जब सरकार फ्री किताब, यूनिफॉर्म, मिड डे मील, सब कुछ दे रही है।
 
 
बदलाव लाने के लिए लगन और मेहनत की भी जरूरत है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018 के बजट में 181 अरब रुपये सर्व शिक्षा अभियान के लिए आवंटित किए। फ्री किताबों के लिए 76 करोड़ और फ्री यूनिफॉर्म के लिए 40 करोड़। स्कूल में मिड डे मील के लिए 20.5 अरब और बच्चों में फल बंटवाने के लिए 167 करोड़ रुपये दिए। इसके अलावा प्राथमिक विद्यालयों में 500 करोड़ रुपये से फर्नीचर, पीने का पानी और बाउंड्री वॉल बनवाने की बात कही गई है।
 
 
वास्तविक हालात लेकिन भिन्न हैं। कुछ शिक्षक हैं जो रवि प्रताप सिंह की तरह मेहनत करते हैं, लेकिन ज्यादातर शिक्षक कोई पहल नहीं करते। प्राथमिक शिक्षा गांव में ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से चलती है, जिसमें ग्राम प्रधान अध्यक्ष और प्रधानाध्यापक सचिव होता है। बहुत से गांवों में स्कूल का खाता सिर्फ इस वजह से नहीं चल पाता क्योंकि दोनों में बनती नहीं और स्कूल ठप्प हो जाता है।
 
रिपोर्ट फैसल फरीद
 

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

cyclone dana live : दाना ने छोड़े तबाही के निशान, शुरू हुआ भुवनेश्वर एयरपोर्ट

weather update : चक्रवात दाना का कहर, 3 राज्यों में भारी बारिश

NCP अजित पवार गुट में शामिल हुए जिशान सिद्दीकी, बांद्रा पूर्व से लड़ेंगे चुनाव

આગળનો લેખ
Show comments