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वैक्सीन पाने जितना आसान नहीं है कोविड वैक्सीन का पेटेंट पाना

DW
रविवार, 16 मई 2021 (14:19 IST)
कोविड-19 वैक्सीन के लिए पेटेंट प्रोटेक्शन पर कुछ समय तक रोक लगाने की भारत और दक्षिण अफ्रीका की मांग का अमेरिका ने समर्थन किया है। दवा कंपनियां इस फैसले से निराश हैं, तो हेल्थ वर्कर और ज्यादा कदमों की मांग कर रहे हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका सहित दर्जनों देश कोरोनावायरस वैक्सीन के लिए इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी (आईपी) प्रोटेक्शन को अस्थायी तौर पर निलंबित करवाने का प्रयास कर रहे हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस प्रयास को अपना समर्थन दिया है। बाइडेन के प्रयास से कोरोना वैक्सीन की खुराक के लिए संघर्ष कर रहे देशों के बीच एक उम्मीद जगी है और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां हताश हुई हैं। हालांकि कुछ समय पहले तक अमेरिका इसके समर्थन में नहीं था।

अमेरिका का बदला हुआ यह रुख तब सामने आया है, जब भारत कोरोनावायरस की दूसरी लहर से काफी ज्यादा प्रभावित है। पिछले कुछ हफ्ते से भारत में हर दिन लाखों लोग कोरानावायरस से संक्रमित हो रहे हैं और हजारों की जान जा रही है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही कमजोर थी और कोरानावायरस की इस दूसरी लहर ने इसे पूरी तरह लाचार बना दिया है। मरीज अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि कोविड 19 वैक्सीन के लिए पेटेंट प्रोटेक्शन में छूट देने से गरीब देशों में दवा बनाने वाली कंपनियों को वैक्सीन का उत्पादन जल्द शुरू करने और महामारी को तेजी से खत्म करने में मदद मिलेगी।

ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी लॉ की प्रोफेसर सपना कुमार कहती हैं, अमेरिका का यह कदम काफी सार्थक है। अमेरिकी सरकार संकट के समय में भी कई बार ऐसे देशों को सजा दे चुकी है जो दवा कंपनियों की अनुमति के बिना दवाओं का आयात या उत्पादन करते हैं। लोगों को ऐसा अहसास हो रहा है कि दवा कंपनियां वैक्सीन की पूरी स्थिति को नियंत्रित कर रही हैं और जनता के हित में काम नहीं कर रही हैं। शायद अब वक्त आ गया है कि सरकार कोई कड़ा कदम उठाए।

सपना कुमार कहती हैं, यहां यह कहना महत्वपूर्ण होगा कि जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी सरकारों ने इस शोध के लिए बहुत अधिक पैसा खर्च किया है। दवा कंपनियों के मुनाफे का केवल एक छोटा हिस्सा कम आय वाले देशों से आता है।

विश्व व्यापार संगठन के साथ बातचीत
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने अक्टूबर में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से संपर्क किया था और एग्रीमेंट ऑन ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी (ट्रिप्स समझौते) के हिस्से को माफ करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि पेटेंट, औद्योगिक डिजाइन, कॉपीराइट और अघोषित सूचना के संरक्षण जैसे अधिकारों के निलंबन से वैक्सीन और दवाओं सहित सस्ते चिकित्सा उत्पादों तक समय पर पहुंच या कोविड से निपटने के लिए आवश्यक चिकित्सा उत्पादों के अनुसंधान, विकास, निर्माण और उसकी आपूर्ति सुनिश्चित होगी।

अमेरिका की पिछली सरकार और ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोपीय संघ के अन्य धनी देशों ने भी भारत और अफ्रीका के इस प्रस्ताव का विरोध किया। उनका कहना है कि पेटेंट प्रोटेक्शन से जुड़ा प्रतिबंध लागू रहने से दवा कंपनियों के बीच खोज को बढ़ावा मिलेगा, जिससे वे अनुसंधान और विकास में भारी निवेश कर सकेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि पेटेंट प्रोटेक्शन में छूट देने से कोराना महामारी के मौजूदा हालात में उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, जबकि लगातार म्यूटेट कर रहे वायरस से निपटने के लिए दवा निर्माताओं को अपने पैरों पर खड़े रहने की आवश्यकता है।

अमेरिका और यूरोप में मतभेद
आमतौर पर, अमेरिका बौद्धिक संपदा अधिकारों का समर्थक रहा है। हालांकि अमेरिका के नए फैसले के बाद भी यह गारंटी नहीं है कि विश्व व्यापार संगठन पेटेंट से जुड़े अधिकारों को कुछ समय के लिए निलंबित कर देगा। इसके लिए सभी 164 सदस्य देशों की सहमति जरूरी होगी। बाइडेन की शीर्ष व्यापार वार्ताकार, कैथरीन टाई ने चेतावनी दी है कि विचार-विमर्श में समय लगेगा, संभवत: महीने भी लग सकते हैं, क्योंकि सदस्य देशों ने छूट देने की एक खास योजना पर बातचीत की है।

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन ने कहा कि ब्रसेल्स अमेरिका समर्थित प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार था। हालांकि, दूसरी ओर जर्मन सरकार ने जोर देकर कहा कि इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी को प्रोटेक्शन दिया जाना चाहिए, ताकि नई खोज में किसी तरह की रुकावट पैदा न हो। वहीं, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने अमीर देशों की चिंताओं को दूर करने के लिए अपने शुरुआती प्रस्ताव को संशोधित करने पर सहमति व्यक्त की है। ट्रिप्स काउंसिल की अगली औपचारिक बैठक जून की शुरुआत में होने वाली है।

दवा कंपनियां निराश
जो बाइडेन की घोषणा से दवा कंपनियां निराश हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति की घोषणा के बाद कोविड 19 वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां जैसे कि मॉडर्ना, नोवावैक्स, और जर्मनी की बायोनटेक के शेयर काफी तेजी से नीचे गिरे। दवा उद्योग की ग्लोबल लॉबी ग्रुप, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड एसोसिएशंस (आईएफपीएमए) ने चेतावनी दी है कि छूट देने से वैक्सीन की आपूर्ति बढ़ने के बजाय वायरस के खिलाफ लड़ने की वैश्विक प्रतिक्रिया कमजोर हो जाएगी।

आईएफपीएमए के महानिदेशक थॉमस क्यूनी ने डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, अत्यधिक प्रभावी वैक्सीन के विकास पर किसी तरह यह धारणा बन गई है कि एक बार एक वैक्सीन विकसित हो जाने के बाद, एक बटन दबाने पर एक अरब खुराक कारखानों से बाहर निकल सकती है। मुझे लगता है कि हमें इस बात को जानना चाहिए कि वैक्सीन का निर्माण करना कितना कठिन और जटिल काम है।

एस्ट्राजेनेका कंपनी की समस्याएं बताती हैं कि वैक्सीन बनाना कितना जटिल काम है। इस ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी ने किए गए अनुबंध के तहत वैक्सीन डिलीवरी करने के अपने दायित्व को पूरा करने के लिए काफी संघर्ष किया है, खासकर सप्लाई चेन के मुद्दे को लेकर। अब इस कंपनी को यूरोपीय संघ ने नोटिस भी जारी किया है। इस कंपनी की सहयोगी भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को भी कच्चे माल की आपूर्ति को लेकर अमेरिकी दूतावास के साथ संघर्ष करना पड़ा जिससे उसके वैक्सीन की डिलीवरी को नुकसान पहुंचा है।

पेटेंट में छूट काफी नहीं
विश्व व्यापार संगठन की वार्ता कुछ इस तरह हो रही है कि एक ओर जहां गरीब देश वैक्सीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर अमीर देश कोविड-19 वैक्सीन की अरबों खुराक जमा करने को लेकर आलोचना का सामना कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन के लिए वैश्विक हाथापाई से महामारी के बढ़ने का खतरा है।

दवाओं तक अधिक से अधिक पहुंच के लिए एक गैर-लाभकारी अभियान ‘मेडिसिन लॉ एंड पॉलिसी' की डायरेक्टर एलन टी होएन कहती हैं, हमें यह समझना होगा कि यह वायरस किसी सीमा को नहीं पहचानता। यह पूरी दुनिया में पहुंच चुका है और इस पर प्रतिक्रिया भी वैश्विक होनी चाहिए। यह अंतरराष्ट्रीय एकजुटता पर आधारित होना चाहिए। बड़े पैमाने पर वैक्सीन बनाने वाली कई कंपनियां विकासशील देशों में स्थित हैं। सभी कंपनियों की पूरी उत्पादन क्षमता का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। और इसके लिए टेक्नोलॉजी को साझा करने की जरूरत होगी।

स्वास्थ्य संगठनों और कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति बाइडेन के समर्थन का स्वागत किया है, लेकिन कहा कि वैश्विक स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और ज्यादा कदम उठाने की जरूरत है। इनमें तकनीक को साझा करना शामिल है। डॉक्टर्स विदाउट बॉडर्स के अमेरिकी चैप्टर के कार्यकारी निदेशक एवरिल बेनोइट का कहना है, यदि अमेरिका सही मायने में इस महामारी को समाप्त करना चाहता है, तो उसे अपनी जरूरत से ज्यादा रखे गए वैक्सीन की खुराक को कोवैक्स के साथ साझा करना होगा।

कोवैक्स, विश्व स्वास्थ्य संगठन और जीएवीआई वैक्सीन के नेतृत्व में कोविड वैक्सीन खुराक-साझाकरण कार्यक्रम है। साथ ही, जब तक दूसरे उत्पादक उत्पादन को नहीं बढ़ा लेते, तब तक उसे वैक्सीन तक लोगों की पहुंच के अंतर को दूर करना होगा। अमेरिका को यह भी मांग करनी चाहिए कि इन वैक्सीन को बनाने के लिए अमेरिकी सहायता पाने वाली दवा कंपनियों को यह टेक्नोलॉजी दुनिया की दूसरी कंपनियों के साथ साझा करे, ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो सके।
रिपोर्ट : आशुतोष पाण्डेय

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