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अब सरीसृपों में भी संभव हुई जीन एडिटिंग

अब सरीसृपों में भी संभव हुई जीन एडिटिंग
, गुरुवार, 29 अगस्त 2019 (12:05 IST)
जॉर्जिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पहली बार सरीसृपों में जीन एडिटिंग करने में सफलता पाई है। इसके जरिए वैज्ञानिकों ने लैब में इंसान की तर्जनी के आकार की छिपकली पैदा की है।
 
जीन एडिटिंग की एक उन्नत तकनीक है सीआरआईएसपीआर (क्लस्टर्ड रेगुलर्ली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रोमिक रिपीट्स)। इस तकनीक से चूहों, पौधों और यहां तक कि इंसानों की जीन एडिटिंग में बड़ी कामयाबी हासिल हुई लेकिन अब तक इसे सरीसृपों पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था क्योंकि उनके प्रजनन में बड़ा फर्क है।
 
अब जॉर्जिया यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इन बाधाओं को पार कर अलबिनो अनोल छिपकिली बनाने में कामयाबी पाई है। इसका फायदा रंजकहीन इंसानों की नजर की समस्या को समझने में किया जा सकेगा। रंजकहीन इंसान वो हैं जिनकी त्वचा, बाल और आंखों का रंग सफेद या रंगहीन नजर आता है।
 
डौग मेनके इस रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक हैं, उनका कहना है, "कुछ समय से हम लोग सरीसृपों के जिनोम को बदलने और उनके जीन में फेरबदल करने के लिए जूझ रहे थे, लेकिन हम यहीं फंसे हुए थे कि कैसे प्रमुख मॉडल तंत्र में जीन एडिटिंग की जाए।" प्रमुख मॉडल तंत्र का मतलब आमतौर पर उन जीवों से होता है जिन पर लैब में अध्ययन किया जाता है जैसे कि चूहा, फलों पर बैठने वाली मक्खियां और जेब्राफिश।
 
सीआरआईएसपीआर जीन एडिटिंग आमतौर पर ताजे निषेचित अंडों या फिर एक कोशिकीय युग्मकों पर किया जाता है लेकिन अंडे देने वाले जीवों में इसका उपयोग करना मुश्किल होता है। इसकी वजह यह है कि स्पर्म लंबे समय तक मादा कीओवरी से यूटरस तक जाने वाली नली ओविडक्ट में रहता है। ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल होता है कि निषेचन कब होगा।
 
मेनके और उनके साथियों ने नोटिस किया कि ओवरी के ऊपर मौजूद एक पारदर्शी झिल्ली की मदद से वो यह देख सकते हैं कि कौन सा अगला अंडा अब निषेचित होने वाला है और फिर उन्होंने तय किया कि सीआरआईएसपीआर रिएजेंटों को इसके ठीक पहले इंजेक्ट करना है। यह तरीका ना सिर्फ कारगर साबित हुआ बल्कि उनकी उम्मीदों के आगे जा कर माता और पिता दोनों से मिलने वाले डीएनए में गया। पहले उन्हें लगा था कि यह सिर्फ माता से मिलने वाले डीएनए में ही जाएगा।
 
लेकिन वैज्ञानिकों ने अलबिनो छिपकली बनाने की क्यों सोची? मेनके का कहना है कि पहला कारण तो यह था कि वे टायरोसिनेज जीन को धक्का देना चाहते थे जो रंजकहीनता के रूप में सामने आता है और जानवरों के लिए घातक नहीं होता। दूसरा कारण यह था कि रंजकहीन इंसानों में दृष्टि की भी समस्या होती है, ऐसे में रिसर्चर तर्जनी के आकार वाली छिपकलियों को मॉडल के रूप में इस्तेमाल कर यह जानना चाहते थे कि रेटीना के विकास पर जीन कैसे असर डालते हैं।
 
मेनके का कहना है, "इंसान और दूसरे प्राइमेट की आंखों में एक आकृति होती है जिसे गर्तिका या फोविया कहते हैं, यह रेटिना में एक गड्ढे जैसी संरचना होती है जो दृष्टि को तीक्ष्ण बनाने के लिए जरूरी होती है। यह गर्तिका प्रमुख मॉडल तंत्र में गायब है लेकिन अनोल छिपकलियों में मौजूद होता है क्योंकि कीड़ों का शिकार करने के लिए ये उच्च तीक्ष्णता वाली नजर पर भरोसा करती हैं।"
 
रिसर्चरों की टीम का कहना है कि इस तकनीक को चिड़ियों पर भी आजमाया जा सकता है, जिनकी पहले जीन एडिटिंग हो चुकी है लेकिन बेहद जटिल प्रक्रिया का इस्तेमाल करके। करीब एक दशक पहले सीआरआईएसपीआर सामने आया और तब से इसका कई चीजों के लिए इसका इस्तेमाल हो चुका है। इनमें चूहों की जेनेटिक बहरेपन से लेकर विवादित रूप से इंसानी बच्चों को एचआईवी से इम्यून बनाना तक शामिल है। 
 
मेनके की दलील है कि जिन जीवों पर इस तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है उसका दायरा बढ़ाना जरूरी है। वो कहते हैं, "अगर हम समय लेकर जीन एडिटिंग करने के तरीके विकसित करें, तो हर जीव के पास कुछ है जो वह हमें बता सकता है।"
 
 एनआर/एमजे (एएफपी)

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