Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

अब धरती का बस एक चौथाई हिस्सा ही जंगल है

अब धरती का बस एक चौथाई हिस्सा ही जंगल है
, सोमवार, 5 नवंबर 2018 (11:53 IST)
पृथ्वी के महज एक चौथाई हिस्से पर ही अब सचमुच का जंगल बचा है। इस जंगल का मतलब जमीन या समंदर के ऐसे इलाके से है जो इंसानों के विध्वंस और भोजन के साथ प्राकृतिक संपदाओं की कभी ना तृप्त होने वाली भूख से बचा रह गया हो।
 
 
पृथ्वी पर मौजूद सूनसान बीहड़ों का करीब 70 फीसदी हिस्सा महज पांच देशों की सीमाओं में है। इन जंगली इलाकों में हजारों ऐसे जीवों को आश्रय मिला है जो जंगलों की कटाई या जरूरत से ज्यादा मछली के शिकार की वजह से लुप्त होने की कगार पर हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली मौसमी घटनाओं के खिलाफ यह सबसे अच्छी सुरक्षा दे रहे हैं। साइंस जर्नल नेचर में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि इस अनछुए जंगल का दो तिहाई हिस्सा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, रूस और अमेरिका में है।
 
 
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में संरक्षण विज्ञान के प्रोफेसर जेम्स वाटसन इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हैं। उन्होंने बताया, "पहली बार हमने जमीनी और समुद्री दोनों बीहड़ों का नक्शा तैयार किया है जो बताता है कि अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है। महज कुछ ही देश हैं जो इस अनछुई जमीन के मालिक हैं और उन पर इसे बचाए रखने की भारी जिम्मेदारी है।"

 
रिसर्चरों ने बीहड़ों पर इंसान के असर के आठ सूचकों के बारे में मौजूद आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इनमें शहरी वातावरण, कृषि भूमि और बुनियादी निर्माण की परियोजनाएं भी शामिल हैं। उन्होंने समुद्र के लिए मछली के शिकार, औद्योगिक पोत परिवहन और पानी में उर्वरकों के बहाव को मानवीय गतिविधियों की कसौटी माना।
 
 
ज्यादातर देशों में पर्यावरणवादी सरकारों पर जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में सुस्त रहने के आरोप लगते हैं। रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब वैज्ञानिक ज्यादा उपभोग के कारण जीवों के लुप्त होने की चेतावनी दे रहे हैं।

 
रूस के विशाल टाइगा जंगल में ऐसे पेड़ों की तादाद खरबों में है जो वातावरण से कार्बन सोख कर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के असर को कम कर देते हैं। हालांकि बीते साल राष्ट्रपति पुतिन ने यह कह कर इनके संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता को कमजोर कर दिया कि जलवायु परिवर्तन के लिए इंसान जिम्मेदार नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पेरिस की ऐतिहासिक डील से अमेरिका को बाहर ले जा चुके हैं और ब्राजील ने एक दक्षिणपंथी और सेना के ऐसे पूर्व कैप्टेन को राष्ट्रपति चुना है जिसने अमेजन के वर्षावनों की सुरक्षा के मौजूदा कानूनों को कमजोर करने की शपथ ली है।
 
 
वाटसन का कहना है कि इन जंगलों के लिए "खतरे की घंटी" बज चुकी है लेकिन "अब व्यवहार को बदलने और नेतृत्व दिखाने की जरूरत है क्योंकि इन बीहड़ों को बचाने के लिए उद्योगों और लोगों को यहां पहुंचने से रोकना होगा।"
 
 
जीवाश्म इंधन, लकड़ी और मांस के भारी इस्तेमाल के साथ ही तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण पृथ्वी की महज 23 फीसदी जमीन ही अब ऐसी है जो कृषि और उद्योगों के असर से अछूती है। एक सदी पहले ऐसी जमीन का हिस्सा करीब 85 फीसदी था। केवल 1993 से 2009 के बीच ही करीब भारत के आकार का बियाबान इंसानी बस्तियों, खेतों और खदानों में बदल गया। संरक्षणवादी गुट डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने चेतावनी दी है कि पिछले 40 सालो में मछलियों, चिड़ियों और उभयचरों, सरीसृपों और स्तनधारियों की आबादी औसतन 60 फीसदी कम हो गई। वाटसन ने रिपोर्ट में लिखा है कि पृथ्वी के जंगल लुप्त हो रहे जीवों की तरह ही खतरे का सामना कर रहे हैं

 
उत्तरी कनाडा का बोरियल फॉरेस्ट भी इसी तरह का एक जंगल है, जो ना सिर्फ जैव विविधता के लिए किसी स्वर्ग बल्कि कार्बन के एक विशाल हौज जैसा है। इसे संघीय कानून के जरिए संरक्षित किया गया है जो जलवायु परिवर्तन से इंसानों को बचाने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। वैज्ञानिक ऐसे अनछुए जंगलों को उद्योगों और इंसानों से बचाने के लिए ज्यादा कानूनों की मांग कर रहे हैं।
 
 
एनआर/आईबी (एएफपी)


Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

क्यों सरकार के निशाने पर हैं गैरसरकारी संगठन?