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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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भारत में क्या क्रिकेट जैसी होगी फुटबॉल की दीवानगी

भारत में क्या क्रिकेट जैसी होगी फुटबॉल की दीवानगी
भारत को क्रिकेट देने वाले देश ब्रिटेन से आया एक अंग्रेज कोच आजकल क्रिकेट के दीवाने हो चुके देश में नेशनल फुटबॉल टीम को खेल के गुर सिखा रहा है। खुद भी कोच के रूप में स्टीफन कॉन्सटेंटाइन का करियर उन्हें ब्रिटेन के मिलवॉल से लेकर अफ्रीका के मलावी तक ले गया है और अब वे यूएई में चल रहे एशिया कप में भारतीय फुटबॉल टीम के अच्छे प्रदर्शन की आशा कर रहे हैं।


ओपनिंग मैच में थाईलैंड को 4-1 से हराकर भारत ने सबको चौंका दिया था। बीते 50 सालों में इस टूर्नामेंट में यह भारत की पहली जीत थी। इसके बाद मेजबान टीम यूएई के हाथों 2-0 से हारने के बाद भी कोच स्टीफन कॉन्सटेंटाइन मानते हैं कि फुटबॉल से उम्मीदें जुड़ी हैं। उन्होंने कहा, भारतीयों को क्रिकेट से प्यार तो है ही लेकिन अब आप फुटबॉल को लेकर यह कायापलट होते देख रहे हैं। ऐसा होता देखकर वाकई गर्व होता है। अब वे एशिया कप मुकाबले में भारत की टीम को नॉकआउट स्टेज तक पहुंचते देखना चाहते हैं। लेकिन ऐसा ना हो पाने की स्थिति में भी टीम का क्वालिफाई करना, फिर पहले दो मैचों में अच्छा प्रदर्शन करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जाना चाहिए।

ब्लू टाइगर्स कहे जाने वाले भारतीय फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों में अनुभवी स्ट्राइकर सुनील छेत्री के नाम अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में दागे गए गोलों का एक प्रभावशाली रिकॉर्ड है। थाईलैंड से खेले गए मैच में गोल दागने के बाद छेत्री गोलों की संख्या के हिसाब से अर्जेंटीना के स्ट्राइकर लियोनेल मैसी से भी आगे निकल गए। टॉप पर 85 गोलों के साथ रोनाल्डो हैं और छेत्री के नाम 67 गोल हैं। हालांकि जैसी दमदार टीमों के सामने मैसी ने अपने गोल जड़े हैं, उनसे छेत्री के गोलों की तुलना करना समान बात नहीं है।

खुद छेत्री ने कहा, मैसी, रोनाल्डो से मेरी कोई तुलना ही नहीं हो सकती। लेकिन हां ऐसी तुलना से मैं बहुत बहुत सम्मानित महसूस करता हूं। एक टीम के तौर पर एशिया कप में अंतिम 16 में जगह बनाना भारत का लक्ष्य है। कॉन्सटेंटाइन कहते हैं, मेरे विचार में भारत में फुटबॉल काफी लोकप्रिय है, लेकिन उसके बारे में ज्यादा लिखा नहीं जाता। चार साल पहले भारतीय टीम के कोच की जिम्मेदारी संभालने वाले कॉन्सटेंटाइन ने ऐसी ही भूमिका में मलावी, सूडान और रवांडा की टीमों के साथ रहते हुए हिंसा, संघर्ष, खूनखराबा और हर तरह का मानवीय कष्ट करीब से देखा है।

वे कहते हैं, आज हम बड़ी टीमों के साथ खेल पा रहे हैं और उन्हें कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। जब मैं आया था तब तो ऐसे हालात नहीं थे। हम एक ठोस टीम हैं और खेल के हर पहलू पर काफी काम कर रहे हैं। एक दिन बड़ी से बड़ी टीम को चोट पहुंचाने की हालत में होंगे। सन् 2013 से भारत में चल रही इंडियन सुपर लीग ने भी देश में फुटबॉल को थोड़ा लोकप्रिय बनाया है। 1.3 अरब की आबादी वाला देश भारत अब भी दुनिया के फुटबॉल के मानचित्र पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है।

भारतीय टीम 1964 में पहली बार एशिया कप खेली थी, जिसमें वह फाइनल खेली, तब केवल चार टीमें ही मुकाबले में थीं और कप इसराइल ने जीता था। उसके बाद सीधे 2011 में ही टीम क्वालिफाई कर पाई और शुरु में ही ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, दक्षिण कोरिया जैसी टीमों से बुरी तरह हारकर बाहर हो गई। अब हालात अलग हैं। भारतीय टीम विश्व की टॉप 100 टीमों में शामिल है। टीम की सफलता का श्रेय खिलाड़ियों की प्रतिभा के अलावा कोच कॉन्सटेंटाइन के स्पोर्ट्स साइंस, पोषण और फिटनेस की समझ को भी दिया जा रहा है।

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