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डॉक्टरों पर भी हो रहा है कोरोना संकट का असर

डॉक्टरों पर भी हो रहा है कोरोना संकट का असर
, गुरुवार, 16 अप्रैल 2020 (12:47 IST)
रिपोर्ट महेश झा
 
आप डॉक्टर की प्रैक्टिस में इलाज कराने गए हों और वेटिंग रूम में आपके पास बैठा मरीज खांस रहा हो तो आप क्या सोचेंगे? कोरोना ने जर्मनी में भी डर का माहौल बना रखा है। नतीजा यह हुआ कि लोग डॉक्टर के पास जाने से घबरा रहे हैं।
 
डॉयचे वेले के पास ही आंखों का एक बहुत ही लोकप्रिय क्लिनिक है। आमतौर पर 4 मंजिला प्राइवेट क्लिनिक हमेशा आंख दिखाने या ऑपरेशन कराने आए मरीजों से खचाखच भरा रहता है। लेकिन कोरोना के समय में हालात बदल गए हैं। लोग डर के कारण क्लिनिक में नहीं आ रहे। बहुत से लोग अपना महीनों से तय एपॉइंटमेंट कैंसिल कर रहे हैं तो कई सारे तो एपॉइंटमेंट के बावजूद नहीं आ रहे हैं।
स्पेशिलिस्ट डॉक्टरों का एपॉइंटमेंट मिलना जर्मनी में पिछले सालों में बहुत ही मुश्किल हो गया थ लेकिन कोरोना ने हालत बदल दी है। लोग 3 महीने पर या सालाना चेकअप के लिए भी नहीं आ रहे हैं। उन्हें चेकअप से आश्वस्त होने के बदले डॉक्टर के यहां संक्रमित होने का डर सता रहा है।
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ये हाल सिर्फ आंखों के डॉक्टर का नहीं है। ऑर्थोपेडी, स्पोर्ट्स मेडिसिन और गायनेकोलॉजी के डॉक्टरों का भी यही हाल है। ये सब ऐसे स्पेशिलिस्ट क्लिनिक हैं, जो आमतौर पर भरे होते हैं। एक ओर जो क्लिनिक खुले हैं, वहां मरीज नहीं आ रहे तो दूसरी ओर बहुत सारे क्लिनिक को डॉक्टर या कर्मचारियों के संक्रमण के कारण बंद करना पड़ा है। उन्हें क्वारंटाइन में भेज दिया गया है।
पिछले हफ्तों में बहुत से डॉक्टरों की प्रैक्टिस को तो इसलिए बंद करना पड़ा था कि डॉक्टरों और सहायक स्टाफ के लिए कोरोना वायरस से बचने के लिए सुरक्षा सामग्रियां नहीं थीं। देश में मास्क का अभाव हो गया था।
 
बहुत से अस्पतालों में भी पर्याप्त संख्या में मास्क नहीं थे। इस बीच देश की कई कंपनियां मास्क बना रही हैं और विदेशों से भी आयात किया जा रहा है। हालांकि भारत या बांग्लादेश जैसे देशों में स्थानीय लॉकडाउन के कारण मास्क सप्लाई नहीं पा रहा है।
 
डॉक्टरों को संक्रमण से बचाने की कोशिश
 
जैसे-जैसे कोरोना से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है। उनकी भूमिका कोरोना संक्रमण के शिकार कम गंभीर मरीजों का इलाज कर उन्हें अस्पताल जाने से रोकने की है। अगर वे अपने मरीजों को सही समय पर सही सलाह न दे सकें तो अस्पतालों पर बोझ और बढ़ जाएगा और इस समय सारी कोशिश यह है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की मदद से संक्रमण की गति को धीमा किया जा सके और अस्पतालों तथा डॉक्टरों पर बोझ को कम किया जा सके ताकि इटली या अमेरिका जैसी नौबत न आए।सरकारी बीमा कंपनियों से जुड़े डॉक्टरों का संघ मरीजों और अस्पतालों के बीच दीवार का काम करना चाहता है। इसलिए वह एक ओर अपने डॉक्टरों को भी ट्रेनिंग दे रहा है ताकि वे खुद सुरक्षित रहें और अपने मरीजों को भी सही सलाह देकर सुरक्षित रहने में मदद करें।
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संक्रमित डॉक्टरों और नर्सों के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर कोई जानकारी भी मौजूद नहीं है। जर्मनी में कुल 400 जिलास्तरीय हेल्थ ऑफिस हैं। सरकारी टेलीविजन चैनलों द्वारा पूछे जाने पर सिर्फ 150 दफ्तरों ने संक्रमित चिकित्साकर्मियों के बारे में जानकारी दी। बहुत से दफ्तर काम के बोझ के कारण जवाब देने की हालत में नहीं थे तो कई दफ्तरों में इस तरह की सूचना इकट्ठा ही नहीं जा रही है।
केंद्रीय स्तर पर भी चिकित्साकर्मियों के संक्रमण से संबंधित कोई जानकारी नहीं है। कई राज्यों में तो इस तरह के आंकड़े जमा ही नहीं किए जा रहे हैं। महामारी के लिए जिम्मेदार रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट के अनुसार 2 हफ्ते पहले तक करीब 2,300 चिकित्साकर्मी संक्रमण का शिकार थे।
 
टेलीमेडिसिन का सहारा
 
जर्मनी के डॉक्टरों के प्रैक्टिस में घुसने से पहले डिसइंफेक्टेंट की बोतलें तो पहले से ही हुआ करती थीं, अब मरीजों का बॉडी टेंपरेचर मापना भी अनिवार्य कर दिया गया है। कोविड-19 का शक हो तो प्रैक्टिस के अंदर आने की इजाजत ही नहीं होती, सीधे टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है या फिर घर पर इंतजार करने के लिए कहा जाता है।
 
कई डॉक्टरों ने तो सामान्य मरीजों और संदेह वाले मरीजों से बातचीत के लिए अलग-अलग वेटिंग रूम और कंसल्टेंसी वाले कमरे तय कर दिए हैं। इस समय कोरोना संदिग्धों के लिए अलग प्रैक्टिस तय करने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हो रही है।
 
सबसे बढ़कर कोरोना के लक्षणों वाले मरीजों से घर पर रहने और टेस्ट का इंतजार करने को कहा जा रहा है। वे अपने निजी डॉक्टर के अलावा हॉटलाइन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। बीमा कंपनियों से जुड़े डॉक्टरों के संघ के प्रमुख आंद्रेयास गासेन के अनुसार रोजाना कई हजार टेलीफोन आ रहे हैं।
 
हालांकि हॉटलाइन पर मरीजों को सलाह तो मिल जाती है, लेकिन घर बैठे डॉक्टर से सलाह लेना, दवा लिखवाना और जरूरत पड़ने पर सिकनेस सर्टिफिकेट लेना अभी आम नहीं है। लेकिन कोरोना संकट के चलते डॉक्टर के साथ वीडियो कंसल्टेशन आम हो सकता है।
 
अब तक डॉक्टरों को सिर्फ 20 फीसदी मामलों में मरीज के साथ वीडियो पर बातचीत करने की अनुमति थी, लेकिन अब इस रोक को हटा लिया गया है। नतीजा यह हुआ कि मार्च में डॉक्टर-मरीज पोर्टल 'यमेदा' पर इसके बारे में पता करने वालों की तादाद 1 महीने पहले के मुकाबले 1,000 फीसदी बढ़ गई। वीडियो कंसल्टेशन के लिए तैयार डॉक्टरों और फिजियोथेरैपिस्टों की तादाद भी 4 गुना बढ़ गई है।
 
इस समय कोरोना का इलाज करने के लिए भारत में भी टेलीमेडिसिन के प्रयोग किए जा रहे हैं। भारत में वीडियो कॉल के जरिए हो रहे इलाज में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। स्विट्जरलैंड या स्वीडन जैसे देशों में टेलीमेडिसिन की व्यवस्था पुरानी है, लेकिन कोरोना ने यहां भी उसकी मांग बढ़ा दी है।
 
टेलीमेडिसिन कंपनी मेडगेट को मिलने वाले फोन कॉल्स की संख्या 20 फीसदी बढ़ गई है जबकि एक दूसरी कंपनी सैंटी24 के डॉक्टर करीब एक-चौथाई ज्यादा मरीजों का ऑनलाइन इलाज कर रहे हैं। 
 
ऑनलाइन कंसल्टेंसी के समर्थकों का कहना है कि इस सिस्टम से डॉक्टरों की प्रैक्टिस में आने वाले वायरस और कीटाणुओं की संख्या घटेगी, बीमार लोग अपने घरों में रह सकते हैं और दूरदराज के इलाकों में रहने वालों को शहरों में डॉक्टरों के पास आने की जरूरत नहीं रहेगी।

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