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गर्भवती महिलाओं की परेशानियां बढ़ा रहा है कोरोना

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बुधवार, 6 मई 2020 (08:13 IST)
रिपोर्ट अपूर्वा अग्रवाल
 
31 साल की लक्ष्मी इन दिनों बेसब्री से अपने होने वाले बच्चे का इंतजार कर रही हैं। डॉक्टर ने डिलीवरी के लिए 20 मई की तारीख दी है। बेचैनी की वजह सिर्फ आने वाला बच्चा ही नहीं, बल्कि पुणे में हर दिन कोरोना के बढ़ते मामले भी हैं।
 
पेशे से आईटी इंजीनियर लक्ष्मी और उनके पति देहरादून से हैं और तकरीबन 3 साल से पुणे के पिम्पले सौदागर इलाके में रह रहे हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान कराया जाने वाला रूटीन चेकअप लक्ष्मी पुणे के एक क्लिनिक में कराती रहीं।
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उनकी योजना थी कि दोनों 3 अप्रैल को देहरादून के लिए रवाना हो जाएंगे। देहरादून में लक्ष्मी के परिवार ने अस्पताल में डिलीवरी से लेकर बच्चे के कपड़े तक की हर छोटी-बड़ी तैयारी कर रखी थी। लेकिन 25 मार्च को हुए लॉकडाउन के बाद दोनों पति-पत्नी पुणे में ही रह गए।
 
लक्ष्मी ने बताया कि जिस डॉक्टर से मैं रूटीन चेकअप कराती थी, उससे फिट टू फ्लाई सर्टिफिकेट मिलने के बाद हमने फ्लाइट का टिकट कराया। परिवार वाले वहां इंतजार कर रहे थे। लेकिन सब अचानक बंद हो गया। जब लॉकडाउन हुआ तो दोनों के सामने सबसे बड़ी समस्या थी किसी अच्छे अस्पताल और डॉक्टर को ढूंढना। लक्ष्मी बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद सबसे ज्यादा मुश्किलें सोनोग्राफी में आईं, कहीं सोनोग्राफी ही नहीं हो पा रही थी।
 
लक्ष्मी जिस क्लिनिक में अपना चेकअप करा रही थीं, वहां की डॉक्टर उनकी डिलीवरी करने के लिए तैयार थी लेकिन वे किसी अनुभवी डॉक्टर के पास जाना चाहती थीं। काफी मेहनत-मशक्कत के बाद उन्हें डॉक्टर तो मिल गई लेकिन यह शिकायत है कि अब डॉक्टर ज्यादा समय नहीं देते। अधिकतर काम नर्सों पर रहता है।
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अस्पताल जाने के अपने अनुभव पर लक्ष्मी कहती हैं कि अस्पताल के अंदर जाकर डर लगता है। डॉक्टर कम समय देते हैं। डॉक्टर तो मास्क में दिखते हैं लेकिन कई बार नर्स बिना मास्क के दिखती हैं। हर तरह के मरीज नजर आते हैं तो घबराहट होने लगती है। लेकिन अब और कोई विकल्प ही नहीं है। हम हर तरह से पॉजिटिव रहने की कोशिश कर रहे हैं।
 
क्यों होता है दर्द?
 
उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के वरिष्ठ सर्जन डॉ. अमरसिंह चूंडावत के अनुसार गर्भाशय का विस्तार होने के साथ चूंकि मां के अंग शिफ्ट हो जाते हैं और साथ ही अस्थिबंधन एकसाथ फैल रहे होते हैं, ऐसे में पेटदर्द स्वाभाविक है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि पेटदर्द को कब गंभीरता से लिया जाए।
 
इन सबके अलावा लक्ष्मी के सामने खुद को फिट रखना भी एक बड़ी चुनौती बन गया है। वे सैर करने के लिए अपने फ्लैट से बाहर नहीं जा पा रही हैं। साथ ही सब्जियां, फल भी अब आसानी से नहीं मिल रहे हैं। घर में साफ-सफाई में मदद करने के लिए भी कोई नहीं है जिसके चलते घर का काम काफी बढ़ गया है।
 
लक्ष्मी कहती हैं कि अभी तो हम जैसे-तैसे मैनेज कर रहे हैं लेकिन बच्चा आने के बाद हमारा काम और बढ़ेगा। बच्चे के कपड़े तक नहीं हैं। अगर लॉकडाउन बढ़ा तो पता नहीं, हम क्या करेंगे? अभी कोई हमारी मदद के लिए भी नहीं आ सकता।
 
कुछ ऐसा ही हाल मुंबई के ठाणे इलाके में रहने वाली सरिता का भी है। डॉक्टर ने उन्हें डिलीवरी के लिए 10 मई की तारीख दी। सरिता डिलीवरी के लिए अपनी मां के पास सागर जाने वाली थीं। ट्रेन के टिकट थे लेकिन लॉकडाउन के चलते पति-पत्नी सागर नहीं जा पाए। सरिता बताती हैं कि मार्केट बंद हैं, तो कुछ सामान नहीं ले पाए। वीडियो कॉल में अपनी मां से पूछकर तो कभी यूट्यूब पर देखकर अपने पुराने कुर्तों और साड़ियों से फीडिंग गाउन और बच्चे के कपड़े बनाए।
 
हालांकि सरिता को डॉक्टर की तो ज्यादा समस्या नहीं हुई लेकिन सोनोग्राफी में इन्हें भी परेशानी आई। सरिता ने बताया कि अकेले सब मैनेज करना मुश्किल था। कोरोना के बढ़ते मामले हर दिन घबराहट बढ़ा रहे थे। इसलिए उनके पति ने काफी प्रयास किए और परमिशन लेकर 7 घंटे कार में सफर कर 26 अप्रैल को दोनों अपने रिश्तेदारों के पास कोल्हापुर पहुंच गए।
 
फिलहाल सरिता कोल्हापुर में अस्पताल तलाश रही हैं और लक्ष्मी की तरह खुद को पॉजिटिव रखने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं, वहीं मीलो दूर बैठे लक्ष्मी और सरिता के परिवार चिंता के साथ-साथ हर पल सब कुछ अच्छा होने की दुआ कर रहे हैं!

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