Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या अमेरिका के फोन से चुनाव जीतेगी बीजेपी

क्या अमेरिका के फोन से चुनाव जीतेगी बीजेपी
, बुधवार, 26 दिसंबर 2018 (12:07 IST)
सर्द रविवार की एक सुबह भारत से 8,800 किलोमीटर दूर एक शांत अमेरिकी उपनगर में मधू बेलम एक लिस्ट देख रहे हैं। इनमें 1500 से ज्यादा भारतीय मतदाताओं के नाम, पते और फोन नंबर हैं। वह फोन में नंबर डायल करते हैं।
 
 
बेलम अपने गृहनगर हैदराबाद के किसी मतदाता को समझाने में जुट जाते हैं। बेलम दो दशक पहले अमेरिका पहुंचे और वहां की नागरिकता पाने के लिए 2011 में भारतीय पासपोर्ट भी त्याग दिया। अब वह अपनी खुद की कंसल्टेंसी चलाते हैं। 47 साल के बेलम मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी भारत की आर्थिक संभावनाओं के द्वार खोलेगी। वह उन कार्यकर्ताओं की फौज में शामिल हैं जो चाहते हैं कि अगले आम चुनाव में जीत कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरा कार्यकाल मिले। उन्हें इसके लिए पार्टी ने लोगों के फोन नंबर मुहैया कराए हैं। बेलम फोन पर लोगों से कहते हैं, "मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूं कि बीजेपी को वोट दीजिए और यह बात पूरे इलाके के लोगों को बताइए।"
 
 
इसके बाद वह मोदी की नीतियों का गुणगान करते हैं, मसलन "मेक इन इंडिया।" बेलम और उनके साथी बीजेपी समर्थक अपने नेटवर्क के जरिए भी लामबंदी कर रहे हैं। वे अपने सहयोगियों, परिजनों और पुराने स्कूल साथियों तक भी यही संदेश पहुंचा रहे हैं।
 
 
ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी नाम के संगठन की अमेरिकी शाखा के करीब 4000 सदस्य हैं। हालांकि इसके प्रमुख कृष्णा रेड्डी का अनुमान है कि संगठन के विस्तृत नेटवर्क में 3 लाख समर्थक हैं। बहुत से लोग जो भारत जा कर वोट नहीं दे सकते, वे अपनी ऊर्जा टेलिफोन पर प्रचार और सोशल मीडिया के जरिए भारत के लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने में लगा रहे हैं।
 
 
भारत के 90 करोड़ वोटरों के एक बहुत छोटे हिस्से पर ही इस प्रचार का असर हो सकता है। फिलहाल तो देश के युवाओं में बेरोजगारी और किसानों में फसल की कम कीमतों के कारण जो निराशा और गुस्सा है, उसका चुनाव पर बड़ा असर पड़ने की बात कही जा रही है।
 
 
भारतीय जनता पार्टी के विदेश मामलों के विभाग के प्रमुख विजय चौथाईवाले का कहना है कि नरेंद्र मोदी के समर्थक 20 देशों में चुनाव अभियान के लिए मदद कर रहे हैं। अमेरिका के अलावा इसमें ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भारतीय लोगों का समुदाय बड़ा है। हालांकि इनमें करीब 40 लाख की तादाद वाले भारतीय अमेरिकी लोगों का असर सबसे ज्यादा है। अमेरिका के सबसे पढ़े लिखे और समृद्ध अल्पसंख्यकों में एक माने जाने वाले इस समुदाय को भारत में भी बहुत इज्जत मिलती है और बीजेपी ने इस समुदाय को अपना समर्थक बना कर एक बड़ी कामयाबी हासिल की है।
 
 
मधु बेलम बताते हैं, "लोगों के पास जब अमेरिका से फोन जाता है तो वे हैरान रह जाते हैं। हम लोग गांव के कुछ लोगों को भी फोन करते हैं। वे हमें बेहद सफल लोगों में मानते हैं, तो ऐसे में हमारे लिए उनको समझाना आसान होता है। वो सोचते हैं कि हम सच बोलते हैं।"
 
 
पहचान की राजनीति
अमेरिका में बीजेपी समर्थकों का कहना है कि वे मोदी के साथ इसलिए हैं क्योंकि वे मानते हैं कि मोदी ऐसी नीतियां लागू कर रहे हैं जो सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत को पावरहाउस में बदल देंगी। हालांकि विदेशों में बीजेपी की सफलता के पीछे पहचान की राजनीति भी है। अमेरिकी समर्थकों की जड़ें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हुई हैं। इसके साथ ही अमेरिका में गुजराती समुदाय भी काफी बड़ा है और उसके पास मोदी का समर्थन करने की अपनी वजहें हैं। 2014 के चुनाव में मोदी ने बड़ी जीत हासिल की और उस वक्त भी उन्हें विदेशों में रह रहे भारतीय लोगों का भरपूर समर्थन हासिल हुआ था।
 
 
मोदी अब भी लोकप्रिय हैं और बहुत से लोग यह भी मान रहे हैं कि उन्हें पांच साल के लिए एक और कार्यकाल मिल सकता है लेकिन 2019 का चुनाव उनके लिए मुश्किल होगा। बहुत से मतदाता चुनाव प्रचार में "सबका विकास" के नारे लगाने वाले मोदी से खुद को छला मान रहे हैं। हालांकि भारत से बाहर रहने वाले मोदी समर्थकों में अभी उत्साह बाकी है।
 
 
बीजेपी ने हाल में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में चुनावी हार देखी है। ये राज्य उसके गढ़ भी माने जाते रहे हैं। रेड्डी के मुताबिक अमेरिकी समर्थक आम चुनाव तक पांच लाख फोन कॉल करेंगे। सदस्य बड़े राज्यों और अपने शहरों के लोगों को फोन कर रहे हैं। इससे उन्हें अपनी स्थानीय भाषा और समुदाय से जुड़े मुद्दों के बारे में बात करने में आसानी होती है।
 
 
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में राजनीति पढ़ाने वाले देवेश कपूर ने भारतीय अमेरिकी लोगों पर दो किताबें लिखी है। उनका कहना है कि अमेरिका से फोन करके वोटरों का मन नहीं बदला जा सकता लेकिन समर्थन जुटाने में मदद जरूर मिल सकती है। कपूर ने कहा, "मुझे लगता है कि उनका असर थोड़ा ही होगा और यह लोगों का सीधे मन बदलने की बजाय उन्हें वोट देने के लिए ज्यादा तैयार करेगा।"
 
 
विदेशों में बीजेपी के लिए इस हवा के बीच कांग्रेस पार्टी भी अपने लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में है। पिछले साल राहुल गांधी ने अमेरिका यात्रा के दौरान प्रवासियों को भारत की "रीढ़" कहा था। कांग्रेस के विदेश मामलों के विभाग के प्रमुख सैम पित्रोदा ने बताया कि 2019 के चुनाव के लिए सदस्यों से सोशल मीडिया पर कांग्रेस का समर्थन करने और भारत में अपने दोस्तों और परिवावालों से बात करने के लिए कहा जा रहा है। हालांकि वोटरों को फोन करने जैसी बातें नहीं कही गई हैं।
 
 
सैम पित्रोदा ने कहा, "मैं आप पर दबाव नहीं डालूंगा। मैं आपसे यह नहीं कहने जा रहा हूं कि मैं महान हूं, सफल हूं मेरी बात सुनो मैं किसी गरीब किसान से यह कह सकता हूं कि मैं सफल हूं। ज्यादा से ज्यादा आप कह सकते हैं कि क्या आप आजादी में भरोसा करते हैं? क्या आप समावेश में विश्वास करते हैं? तो फिर आप कांग्रेस पार्टी को वोट देना चाहते हैं।" सैम पित्रोदा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सलाहकार रहे हैं और अब शिकागो में रहते हैं।
 
 
एनआर/एके (रॉयटर्स)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

बीजेपी-कांग्रेस के ख़िलाफ़ केसीआर का अभियान मोर्चेबंदी है या खेमेबंदी? : नज़रिया