Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

बिहार के पंचायत चुनावों में जनता ने बजाया बदलाव का बिगुल

बिहार के पंचायत चुनावों में जनता ने बजाया बदलाव का बिगुल

DW

, शुक्रवार, 7 जनवरी 2022 (07:43 IST)
बिहार में 24 सितंबर से 12 दिसंबर 2021 तक 11 चरणों में संपन्न पंचायत चुनाव के परिणाम से जाहिर है कि करीब 80 प्रतिशत नए चेहरे, खासकर मुखिया का चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं।
 
उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी पंचायत चुनाव में वंशवाद व परिवारवाद का खेल लंबे समय से चलता आ रहा है। पंचायत चुनाव राजनीति की प्राथमिक पाठशाला मानी जाती है। विधायकों, सांसदों, पूर्व सांसदों-विधायकों की बहू-बेटियां चुनाव लड़तीं और जीतती रही हैं। किंतु, इस बार के चुनाव में बहुत कुछ अप्रत्याशित तौर पर बदल गया।
 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन काल का यह चौथा पंचायत चुनाव था। यह सही है कि यहां पंचायतों के लिए विभिन्न पदों पर होने वाले चुनाव राजनीतिक दलों के टिकट पर नहीं लड़े जाते, किंतु यह सबको पता रहता है कि कौन किसका वोट बैंक है। इसलिए चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों में जोर-आजमाइश का दौर शुरू हो गया था। पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों ने पार्टी के बैनर, झंडे-पोस्टर के बिना ही अपना दमखम दिखाया। किंतु, चुनाव परिणाम ने काफी हद तक भविष्य की राजनीति की एक झलक तो दिखा ही दी। परोक्ष रूप से ही सही, सत्ता पक्ष पर विपक्ष हावी रहा।
 
बदलाव की बयार
पंचायत चुनाव के परिणाम से यह साफ हो गया है कि राज्य में गांवों की सरकार बदलने के लिए लोग बेताब थे। इसलिए बदलाव की इस आंधी में महज 20 प्रतिशत मुखिया ही अपनी सीट बचा पाए। लोगों ने 80 प्रतिशत नए चेहरों पर ऐतबार किया। जाहिर है, चेहरों पर कामकाज की रिपोर्ट भारी पड़ी।
 
पूरे राज्य में ट्रेंड में बदलाव दिखा। मतदाताओं ने विकास के मुद्दे पर वोट किया। जाति की कोटरों से निकल कर एक हद तक साफ-सुथरी राजनीति को तवज्जो दी। यही वजह रही कि जिस मुखिया के कामकाज से जहां-जहां लोग संतुष्ट नहीं थे, वहां-वहां उन्हें बदल दिया। पंचायत चुनाव के दौरान ही कई जगह जहरीली शराब से मौत का मामला सामने आने पर कहा गया कि वोटरों को लुभाने के लिए पैसे के साथ-साथ शराब बांटी गई है। लेकिन, मतदाता प्रलोभन में नहीं फंसे।
 
उत्तर बिहार में पंचायत चुनाव पर नजर रख रहे पत्रकार सुधीर कुमार मिश्रा बताते हैं, ‘‘इस बार लोगों ने चुनाव में ग्रामीण योजनाओं में गड़बड़ी तथा पंचायत स्तर तक फैल चुके भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया। सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त कमीशनखोरी से लोग वाकई परेशान हो गए थे। कई जगह अगर दस प्रत्याशी थे तो पुराने मुखिया ने सर्वाधिक प्रलोभन दिया था, लेकिन लोगों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।''
 
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से विकास की कई योजनाएं पंचायतों के पास पहुंच गई हैं। नल-जल योजना, पंचायत सरकार भवन, सोलर लाइट, सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार व गली-नाली योजना समेत जल जीवन हरियाली से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन पंचायतों के माध्यम से हो रहा है। कई जगहों से इस संबंध में लगातार शिकायतें मिल रहीं थीं।
 
पंचायती राज एक्ट के तहत अभी तक जिला परिषद अध्यक्ष, प्रखंड प्रमुख, मुखिया, उप मुखिया और सरपंच को उनके पद से बर्खास्त करने का प्रावधान है, किंतु वॉर्ड सदस्य, प्रखंड विकास समिति (बीडीसी) सदस्य, जिला परिषद सदस्य तथा पंच को हटाने का कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए सरकार ने भी आजिज आकर पंचायती राज एक्ट संशोधन का मसौदा तैयार किया, ताकि भ्रष्टाचार के आरोपियों को हटाया जा सके।
 
नए हाथों में गांवों की कमान
मकर संक्रांति के बाद से राज्य के गांवों में नई सरकार काम करने लगेगी। इस बार कमान नए लोगों के हाथों में होगी। इनमें कई युवा होंगे, जिनमें इंजीनियर, वकील, एमबीए, डॉक्टर जैसे पेशेवर तथा विश्वविद्यालयों से निकले छात्र शामिल हैं। लोगों ने युवा व शिक्षित नए उम्मीदवारों को तरजीह दी। इसलिए कई दिग्गजों के परिजन तक चुनाव हार गए।
 
नालंदा जिले के सरमेरा प्रखंड के सभी आठ मुखिया पद महिलाओं को मिले। मुखिया निर्वाचित हुई भौतिकी से स्नातक 21 साल की आकांक्षा कहती हैं, ‘‘गांव-देहात में बुनियादी सुविधाओं का अभाव तो है ही, सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर है। मेरा लक्ष्य सर्वप्रथम अपने पंचायत में स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाना है।''
 
इसी तरह मुखिया चुनी गई 22 वर्षीया संगीता का लक्ष्य पंचायत में शहर जैसी सुविधाएं मुहैया कराना तथा अपराध मुक्त बनाना है जबकि बेंगालुरू से बीटेक करने वालीं मुखिया अनुष्का अपने पंचायत कुशहर को नशा व भ्रष्टाचार मुक्त तथा शिक्षित बनना चाहती हैं। पुणे यूनिवर्सिटी से एमबीए पासआउट 29 वर्षीया बिंदु गुलाब यादव सबसे कम उम्र में मधुबनी जिला परिषद की चेयरमैन चुनी गई हैं। उनका कहना है, ‘‘युवाओं ने मुझे चुना है। मैं एक विजन के साथ आई हूं, पांच साल में जनता को मेरा काम दिखेगा।''
 
2021 के पंचायत चुनाव में राजनीति के दिग्गजों की परवाह भी लोगों ने नहीं की। मंत्रियों-विधायकों की बात तो छोड़िए, दो उप मुख्यमंत्रियों के संबंधियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। उप मुख्यमंत्री रेणु देवी के दोनों भाई अनिल कुमार व रवि कुमार पश्चिम चंपारण जिले में जिला परिषद का चुनाव भी नहीं जीत पाए। उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के चचेरे भाई को भी कटिहार जिले में पराजय का मुंह देखना पड़ा।
 
पत्रकार अनिल कुमार कहते हैं, ‘‘इशारा साफ है। इतने बड़े पैमाने पर हुआ बदलाव व्यवस्था से जनता के गुस्से का इजहार ही तो है। नाराजगी का आलम यही रहा तो इसका असर लोकसभा व विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। पंचायती राज एक्ट में संशोधन इसी आग को ठंडा करने की कोशिश है।''
 
जिलों में आधी आबादी का दबदबा
पंचायत चुनाव में चुने गए इन 11 हजार से अधिक पंचायत समिति सदस्यों तथा 1160 जिला परिषद सदस्यों ने अपने बीच से पंचायत समिति प्रमुख, उप प्रमुख तथा जिला परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव किया। राज्य में जिला परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के 38-38 पद हैं, इनमें 18 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। किंतु बीते तीन जनवरी को हुए चुनाव में महिलाओं ने 18 की बजाय 29 सीटों पर कब्जा जमा लिया। तीन चौथाई पदों पर काबिज होकर इन्होंने आरक्षित सीटों से इतर सामान्य सीटों पर भी अपना दमखम दिखाया। हालांकि, यह बात दीगर है कि इनकी जीत की पटकथा पुरुषों ने ही लिखी।
 
भविष्य में होने वाले सांसदी व विधायकी के चुनाव के मद्देनजर कई जिलों में इस चुनाव में दलीय निष्ठा भी तार-तार हो गई। जाति व समर्थक भी पीछे छूट गए। स्थानीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए कहीं सत्ताधारी तो कहीं विपक्षी दलों ने एक-दूसरे के लिए फील्डिंग सजाई।
 
राजनीतिक विश्लेषक रोहित सेन कहते हैं, ‘‘यह सही है कि जिला परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। किंतु, उस इलाके के सांसद, मंत्री व विधायक इसमें पूरी दिलचस्पी लेते हैं। इसके वोटरों के मोल-भाव पर नजर रखते हैं और इसके लिए वे धन भी लगाते हैं।''
 
नवाचारों का भी रहा असर
बिहार में इस बार पंचायत चुनावों में हुए नवाचारों ने भी अपना असर दिखाया है जिसकी सराहना पूरे देश में हो रही है। कई राज्यों ने पंचायत चुनाव में इस्तेमाल की जा रही नई तकनीकों के इस्तेमाल को देखने के लिए अपनी टीम को भी भेजा। इन तकनीकों के इस्तेमाल ने नामांकन से लेकर मतगणना तक को सरल, सुगम व पारदर्शी बना दिया।
 
पंचायत चुनाव में पहली बार ईवीएम का प्रयोग किया गया। प्रत्याशियों को ऑनलाइन नॉमिनेशन की सुविधा दी गई। मतदान केंद्रों की लाइव वेबकास्टिंग की गई। बोगस वोटिंग रोकने के लिए वोटरों की बायोमीट्रिक उपस्थिति दर्ज कराई गई। वहीं, मतगणना के दौरान ऑप्टिकल रीडर कैमरे से डिजीटल फोटोग्राफी के साथ वीडियोग्राफी हुई, परिणाम की ऑनलाइन इंट्री की गई, ताकि किसी तरह गड़बड़ी की गुंजाइश न रह जाए।
 
काउंटिंग के दौरान ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉगनाइजेशन (ओसीआर) मशीन के उपयोग से इसकी लाइव जानकारी मिल रही थी कि किस ईवीएम से कितना वोट किस उम्मीदवार को मिला। पहली बार ईवीएम रखे जाने वाले स्थानों पर इलेक्ट्रॉनिक लॉक का इस्तेमाल किया गया। रोहित सेन के अनुसार मतदाताओं का बायोमीट्रिक सत्यापन तथा ईवीएम इस बार के पंचायत चुनाव में बड़ा गेम चेंजर बना। वह कहते हैं, ‘‘इस वजह से वोटर बेहतर तरीके से अपनी मर्जी के अनुसार जन प्रतिनिधियों को चुन सके। बोगस वोटिंग पर लगाम लग गई। नए चेहरों की जीत की यह बड़ी वजह रही।''
 
रिपोर्ट : मनीष कुमार

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

टोनी ब्लेयर से नाइटहुड छीनने वाली याचिका को करीब 7 लाख लोगों का समर्थन