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अरब सागर में लगातार बढ़ रहा है मौत का इलाका

अरब सागर में लगातार बढ़ रहा है मौत का इलाका
, बुधवार, 18 जुलाई 2018 (11:39 IST)
अरब सागर के पानी में स्कॉटलैंड के आकार का "मौत का इलाका" लगातार बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि इसके पीछे जलवायु में परिवर्तन जिम्मेदार हो सकता है।
 
 
आबू धाबी की अपनी प्रयोगशाला में जौहर लश्कर ओमान की खाड़ी के एक रंगीन कंप्यूटर मॉडल पर मेहनत कर रहे हैं। इसमें तापमान में बदलाव, समुद्र तल और ऑक्सीजन का जमाव देखा जा सकता है। उनके मॉडलों और हाल के रिसर्चों में एक चिंता पैदा करने वाली बात दिखी है।
 
 
समुद्र में मौत का इलाका या डेड जोन ऐसे हिस्से को कहते हैं जहां ऑक्सीजन की कमी होती है और ऐसी स्थिति में मछलियों के लिए वहां जिंदा रह पाना संभव नहीं होता। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी आबू धाबी में वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि अरब सागर का डेड जोन दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रचंड है। समाचार एजेंसी एएफपी से लश्कर ने कहा, "यह 100 मीटर से शुरू हो कर नीचे करीब 1500 मीटर तक जाता है, तो लगभग पानी के पूरे हिस्से में ही ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गया है।"
 
 
डेड जोन प्राकृतिक रूप से पूरी दुनिया में होते हैं लेकिन अरब सागर के जिस डेड जोन की बात हो रही है उसका 1990 के दशक में पता चला था और तब से यह लगातार बढ़ता जा रहा है। लश्कर और दूसरे रिसर्चरों को लगता है कि दुनिया की गर्मी तेज होने के साथ इस इलाके का विस्तार हो रहा है और इससे स्थानीय इकोसिस्टम के साथ ही मछलीपालन और पर्यटन उद्योग को काफी नुकसान होगा।
 
 
डेड जोन की खोज रोबोटिक डाइवरों ने की। इन्हें ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया ने ओमान के सुल्तान काबूस यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर इस इलाके में खोज के लिए डाला। ऐसी जगहों पर रिसर्चर खुद नहीं जा सकते। 2015-16 के दौरान जमा हुई जानकारियों को इस साल अप्रैल में जारी किया गया।


इन्हें देखने से साफ पता चलता है कि अरब सागर के डेड जोन का इलाका और प्रभाव बढ़ गया है। 1996 की रिसर्च में जो जानकारी मिली थी उसके मुताबिक डेड जोन का सबसे निचला हिस्सा उसके मध्य भाग में ही सीमित था जो कि यमन और भारत में आता है। अब डेड जोन का विस्तार पूरे सागर में हो गया है। प्रमुख रिसर्चर बास्टियान क्वेस्टे का कहना है, "अब हर जगह यह न्यूनतम गहराई तक जा पहुंचा है और इससे नीचे नहीं जा सकता।
 
 
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी आबूधाबी से जुड़े लश्कर बताते हैं कि डेड जोन एक चक्र में फंस गया है। यहां सागर की गर्मी ऑक्सीजन को खत्म कर रही है और इस तरह से गर्मी और बढ़ रही है। मस्कट से लेकर मुंबई तक के पोर्ट अरब सागर की जद में है। तटवर्ती शहर और इनमें रहने वाली आबादी पर डेड जोन के विस्तार का असर होगा।
 
 
इन इलाकों में मछली भरण पोषण का प्रमुख स्रोत है। डेड जोन का विस्तार होने से गहरे पानी से लेकर सतह के नीचे वाले हिस्से तक में मछलियों के आवास सिमट जाएंगे। ऐसे में उनके लिए खतरा पैदा हो जाएगा। एक तरफ जहां भोजन और दूसरी जरूरतों के लिए उनकी मांग बढ़ जाएगी वहीं दूसरी तरफ एक ही जगह ज्यादा मछलियों के रहने से उनका शिकार भी ज्यादा होगा। लश्कर का कहना है, "मछली पकड़ना आय का एक बड़ा स्रोत है और इस पर ऑक्सीजन का सीधा असर होगा।" सिर्फ इतना ही नहीं मूंगों पर भी इसका असर होगा और पर्यटन भी प्रभावित होगा।
 
 
2015 के ग्लोबल एजेंडे में यह मुद्दा बेहद अहम था, उसी वक्त पेरिस समझौते में कार्बन उत्सर्जन घटाने पर दुनिया में सहमति बनी थी। हालांकि इस ऐतिहासिक समझौते को पिछले साल बड़ा झटका लगा जब अमेरिका ने इससे बाहर होने का एलान कर दिया।
 
 
एनआर/एमजे (एएफपी)
 

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