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अंटार्कटिक के नीचे पानी की धारा पर मंडराता खतरा

DW
रविवार, 2 अप्रैल 2023 (09:29 IST)
एक नए शोध में कहा गया है कि तेजी से पिघलने वाली अंटार्कटिक बर्फ महासागरों को "आने वाली सदियों तक" प्रभावित कर सकती है। जर्नल नेचर में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक तेजी से पिघलने वाली अंटार्कटिक की बर्फ से दुनिया के महासागरों में गहरी धाराओं के धीमे होने का खतरा है, जिससे जलवायु, ताजे पानी और ऑक्सीजन के प्रसार के साथ-साथ जीवनदायी पोषक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
 
पानी की गति पर प्रभाव
जर्नल नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार अंटार्कटिक के आसपास गहरे पानी की धाराएं अगले 30 वर्षों में 40 प्रतिशत से अधिक धीमी हो सकती हैं।
 
न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर मैथ्यू इंग्लैंड का कहना है कि उनके अध्ययन में पेश मॉडल गहरे अंटार्कटिक महासागर में पानी के प्रवाह को "ऐसी गति से दिखाता है जो आपदा की ओर बढ़ रहा है।"
 
अंटार्कटिक पर बर्फ के पिघलने का प्रभाव
शोध के मुताबिक उच्च उत्सर्जन के मामले में 2050 तक गहरे महासागरों में पानी का प्रसार 40 प्रतिशत तक धीमा हो जाएगा, जिसका प्रभाव "आने वाली सदियों तक" रहेगा। यह न केवल जलवायु, ताजे पानी और ऑक्सीजन को प्रभावित करेगा बल्कि जीवन को बनाए रखने वाले पोषक तत्वों को भी खतरनाक हद तक प्रभावित करेगा।
 
शोध में जिस मॉडल का इस्तेमाल किया गया उससे संकेत मिलता है अगर वैश्विक कार्बन उत्सर्जन अधिक रहता है तो अंटार्कटिक बर्फ तेजी से पिघलती है जिससे महासागरों के सबसे गहरे हिस्सों में पानी के संचलन में "पर्याप्त सुस्ती" आ सकती है।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल अंटार्कटिक के आसपास खरबों टन बेहद ठंडा, नमकीन, ऑक्सीजन युक्त पानी बहता है, जो भारतीय, प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के उत्तर में गहरे पानी की धारा भेजता है। जैसे ही यह धारा गहरे समुद्र में टूटेगी, 4000 मीटर से नीचे के महासागर में धाराएं ठप्प हो जाएंगी। इस कारण गहरे समुद्र में पोषक तत्वों का बनना रुक जाएगा और सतह के पास समुद्री जीवन को बनाए रखने वाले उपलब्ध पोषक तत्व कम जाएंगे। और अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो दुनिया को एक प्रसिद्ध बड़ी जल आपूर्ति के संभावित दीर्घकालिक विलुप्त होने के खतरे का सामना करना पड़ेगा।
 
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
चित्र सौजन्य : अंटार्कटिक गर्वनमेंट ट्विटर अकाउंट

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