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रुपया ऑल टाइम निचले स्तर पर, मोदी राज में सबसे ज्यादा नुकसान, जानिए क्यों कमजोर हो रही है भारतीय मुद्रा?

रुपया ऑल टाइम निचले स्तर पर, मोदी राज में सबसे ज्यादा नुकसान, जानिए क्यों कमजोर हो रही है भारतीय मुद्रा?
, शुक्रवार, 23 सितम्बर 2022 (12:49 IST)
मुंबई। अमेरिकी डॉलर में मजबूती के बीच निवेशक जोखिम उठाने से बच रहे हैं जिसके चलते शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 44 पैसे की गिरावट के साथ पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 81 के स्तर को पार कर गया और 81.23 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंचा। मनमोहन सिंह के 10 साल में रुपया 13 रुपए गिरा तो मोदी राज के 8 साल में करीब 23 रुपए की गिरावट दर्ज की गई।
 
क्यों गिर रहा है रुपया : मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड के दरों में बढ़ोतरी करने और यूक्रेन में भूराजनीतिक तनाव बढ़ने की वजह से निवेशक जोखिम उठाने से बच रहे हैं। इसके अलावा विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती, घरेलू शेयर बाजार में गिरावट भी रुपए को प्रभावित कर रहे हैं।
 
फेडरल रिजर्व ने प्रमुख नीतिगत ब्याज दर 0.75 फीसदी बढ़ाई है, वहीं बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी गुरुवार को अपनी प्रधान ब्याज दर बढ़ाकर 2.25 प्रतिशत कर दी। स्विस नेशनल बैंक ने भी ब्याज दर 0.75 फीसदी बढ़ाई है।
 
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.08 पर खुला, फिर और फिसलकर 81.23 पर आ गया जो पिछले बंद भाव के मुकाबले 44 पैसे की गिरावट दर्शाता है। गुरुवार को रुपया 83 पैसे टूटकर 80.79 के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था।
 
इस बीच 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.05 प्रतिशत चढ़कर 111.41 पर आ गया। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.57 प्रतिशत गिरकर 89.94 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था। शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने गुरुवार को शुद्ध रूप से 2,509.55 करोड़ रुपए के शेयर बेचे।
 
कमजोर होता चला गया रुपया : 15 अगस्त 1947 में एक डॉलर की कीमत 4.16 रुपए थी। इसके बाद डॉलर लगातार मजबूत होता चला गया और रुपए की स्थिति बेहद कमजोर हो गई। 1991 में खाड़ी युद्ध और सोवियत संघ के विघटन के कारण भारत बड़े आर्थिक संकट में घिर गया और डॉलर 26 रुपए पर पहुंच गया। 1993 में एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 31.37 रुपए लगते थे। साल 2008 खत्म होते रुपया 51 के स्तर पर जा पहुंचा। 
 
26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी ने एनडीए के प्रचंड बहुमत के बाद देश की बागडोर संभाली थी, उस समय डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत करीब 58.93 रुपए थी। मोदी राज में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर ही बना रहा। डॉलर तेजी से कुलाचे भरता रहा और जुलाई 2022 में इसने 80 का आंकड़ा छू लिया। 
 
सबके लिए घाटे का सौदा नहीं होता गिरता रुपया : भले ही गिरता रुपए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात हो लेकिन कई सेक्टर्स ऐसे भी है जहां रुपए का गिरना चिंता की बात नहीं है। एक्सपोर्ट व्यवसाय से जुड़े लोगों को डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरने से फायदा होता है। अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसी कंपनी के लिए काम करता है। तो उसे डॉलर में भुगतान मिलेगा। करेंसी एक्सचेंज में अब उसे ज्यादा पैसा मिलेगा।
 
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में विदेशों से साल 2020 में 83 अरब डॉलर से अधिक धन भेजा गया था। वहीं, 2021 में 87 अरब डॉलर की रकम भारत आई थी। विदेश से आने वाले पैसे से देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है। 
 
क्या 100 रुपए पर पहुंचेगा रुपया : कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने जुलाई 2022 में एक बयान में कहा था कि यह वही रुपया है, जिससे प्रधानमंत्री की आबरू और प्रतिष्ठा जुड़े होने का दावा खुद मोदी जी करते थे। पर आज तो डर यह है कि जिस तेज़ी से रुपया गिर रहा है - कहीं पेट्रोल की तरह, यहां भी शतक की तैयारी तो नहीं?
 
कांग्रेस प्रवक्ता के अनुसार, 2014 के पहले रुपए की मजबूती के लिए मोदी ज़रूरी है का दावा करने वाले प्रधानमंत्री तो हमारे रुपए के लिए बड़े हानिकारक साबित हुए। इन तथाकथित मजबूत प्रधानमंत्री ने इतिहास में रुपए को सबसे कमजोर बना दिया।

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