नई दिल्ली। त्योहारों से पहले जनता के लिए राहतभरी खबर सामने आई है। खाद्य तेलों में गिरावट दर्ज की गई। मांग कमजोर होने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सभी तेल-तिलहन की कीमतें औंधे मुंह गिर गई।
बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से खाद्य तेल उद्योग, आयातक और किसान काफी परेशान हैं, खासकर आयातकों के सामने बर्बादी का खतरा मंडरा सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन महीनों में जिस कच्चा पामतेल का आयात भाव लगभग 2,007 डॉलर प्रति टन था, उसका कांडला बंदरगाह पर मौजूदा भाव सिर्फ 990 डॉलर प्रति टन रह गया है। ऐसे में बाकी तेल तिलहन कीमतों पर भी भारी दबाव है।
सूत्रों ने कहा कि थोड़ी-बहुत पूंजी रखने वाले कारोबारियों ने अब तेल कारोबार छोड़ने का मन बना लिया है और बैंकों में अपना साख पत्र (लेटर आफ क्रेडिट) देने वाले कारोबारी ही खाद्य तेल कारोबार में अटके हुए हैं।
उन्होंने कहा कि इस गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं को गिरावट का यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि खुदरा कारोबार में अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पहले से ही थोक भाव के मुकाबले 40-50 रुपए अधिक रखे जाने से खुदरा व्यापारी और मॉल वाले ग्राहकों से अधिक कीमत वसूल रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि जब कांडला बंदरगाह पर सीपीओ 88 रुपए किलो बिकेगा तो उसके सामने अगले मार्च के लगभग आने वाली सरसों किस तरह टिक पाएगी। आगामी रबी फसल के लिए सरकार द्वारा सरसों की नई फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाने की संभावना को देखते हुए सरसों तेल का लागत मूल्य 125-130 रुपए लीटर होने की उम्मीद है।
सस्ते आयात के सामने देशी तेल-तिलहन टिक नहीं पाएंगे। सरकार अधिकतम 20-30 लाख टन ही सरसों की खरीद कर पायेगी तो सरसों की बाकी उपज के निपटान को लेकर आशंका रहेगी।